सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाए भारतीय रेलवे

राहुल लाल । Nov 23, 2016 12:11PM
एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल औसतन 300 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएँ होती हैं। जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है, मुआवजे की घोषणा कर उसे भुला दिया जाता है। हमें इस प्रवृत्ति से बाहर आना होगा।

20 नवंबर की सुबह देश की नींद पुखरायां रेल हादसे के दुखद सूचना से खुली। भारतीय परिवहन का प्रमुख तंत्र रेलवे पुन: एक बड़ी दुर्घटना के चपेट में आ गया। देश में रेल दुर्घटनाएँ क्यों होती हैं? कैसे होती हैं? इसके कारण और निदान नीति निर्माता से लेकर आम आदमी सभी को पता हैं। फिर भी हर वर्ष ये दुर्घटनाएँ होती हैं, उसके जाँच होती हैं, बैठकें होती हैं, मुआवजे की घोषणाएँ होती हैं लेकिन स्थायी समाधान नहीं होता।

दरअसल रेल दुर्घटनाओं का असर किसी भी अन्य दुर्घटनाओं से काफी ज्यादा होता है। भारतीय रेलवे अंतर्देशीय परिवहन का सबसे बड़ा माध्यम है। दुनिया के इस सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारत में हर रोज सवा दो करोड़ से भी ज्यादा लोग रेल की सवारी करते हैं। ऐसे में भारतीय रेल को दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तीव्रतम प्रयास करने होंगे तथा तब तक प्रयत्नशील होना होगा, जब तक रेलवे दुर्घटनाओं को शून्य तक नहीं पहुँचा दे।

रेलवे ने हादसे के जांच के आदेश दिए हैं। हादसे का प्रारंभिक कारण पटरी के टूटने को माना जा रहा है। हादसे के समय रेल काफी स्पीड में थी तथा पटरी टूटने के कारण रेल के डिब्बे पटरी से उतर गए एवं डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़ गए। कोच क्रमांक एस-1, 2, 3, 4, 5 एवं 6 क्षतिग्रस्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त ए-2, बी-1, बी-3, बी ई एक्सट्रा कोच भी दुर्घटनाग्रस्त हैं। सामान्य श्रेणी के भी दो कोच और एसएलआर भी दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। इससे संपूर्ण दुर्घटना की भयावहता को भी स्पष्ट समझा जा सकता है। लगभग 15 डिब्बे पटरी से उतरे हैं जबकि तीन डिब्बे बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं। रेल सूत्रों के अनुसार ठंड में पटरियाँ टूटने की घटना सामान्य है। प्राय: ऐसा होता रहता है। इस घटना में रेल के आगमन के पूर्व इन टूटी पटरियों को खोजा नहीं जा सका, जिसके फलस्वरूप बड़ी दुर्घटना सामने आई। रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने भी दुर्घटनास्थल का दौरा कर रेल की टूटी पटरियों को ही इसका प्रारंभिक कारण माना। उन्होंने उस टूटी पटरी का भी निरीक्षण किया।

अगर ठंड से रेल पटरी का टूटना इस दुर्घटना का कारण है तो यह मामला और भी दुर्भाग्यजनक है। बताया जा रहा है कि ठंड में प्राय: ऐसा होता है। विश्व के कई भागों में माइनस तापमान पर भी आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर रेलों का सफलतम परिचालन होता है। ऐसे में यहाँ इस दुर्घटना का कारण ठंड को देकर रेलवे कहीं मामले को भटकाने का प्रयास तो नहीं कर रही, यह देखना होगा। इसके अतिरिक्त प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस दुर्घटना के आधे घंटे पूर्व भी रेल में एक बड़ा झटका सा आया था। उन लोगों को रेल के चक्के जाम होने की आशंका लग रही थी। इस दुर्घटना के सही कारणों का पता जाँच रिपोर्ट के बाद ही लग सकेगा।

सबसे दुखद बात यह है कि रेलवे पूर्व में हुई दुर्घटनाओं से कोई सीख नहीं ले रहा है। जाँच समितियों की रिपोर्ट पर बाद में रेलवे द्वारा प्रभावी क्रियान्वयन की कमी से स्थिति में बदलाव नहीं आता है। ये रिपोर्ट बस धूल खाती रहती हैं। आज वैश्विक स्तर पर तकनीक के द्वारा दुर्घटनाओं को न्यूनतम करने के प्रयास हो रहे हैं, परंतु भारतीय रेलवे में ऐसे समुचित प्रयास कम ही हुए हैं। अगर सूक्ष्मता पूर्वक भारतीय रेल की दुर्घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो करीब 80 प्रतिशत भारतीय रेल दुर्घटनाओं का कारण मानवीय भूल या चूक होती है। इस दुर्घटना के बाद पुन: यह प्रश्न उठता है कि आखिर रेलवे लोगों को सुरक्षित रेल यात्रा कब उपलब्ध कराएगी? कब तक हम लोग अपने प्रियजनों को यूँ ही खोते रहेंगे? इन हादसों का जिम्मेदार कौन है?

मानवीय चूक को रोकने के वैश्विक स्तर पर दो उपाय स्वीकार किए गए हैं- प्रथम आधुनिकतम तकनीक का प्रयोग कर मानवीय चूक को कम करना, द्वितीय- रेल कार्मिकों का उच्चस्तरीय प्रशिक्षण। रेल मंत्री ने जाँच के आदेश दिए हैं तथा दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की बात कही है। इस दुर्घटना के बाद राहत कार्य काफी तीव्र गति से चल रहे हैं। स्थानीय प्रशासन, रेलवे, सेना एवं एनडीआरएफ के जवानों ने सफलता पूर्वक कार्य संभाला है।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल औसतन 300 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएँ होती हैं। जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है, मुआवजे की घोषणा कर उसे भुला दिया जाता है। हमें इस प्रवृत्ति से बाहर आना होगा। रेलवे सुरक्षा के कई पहलू होते हैं, लेकिन प्रबंधन के स्तर पर सभी पहलू जुड़े रहते हैं। होता यह है कि रेलवे विभाग रेल सेवाओं में तो वृद्धि कर देता है, परंतु सुरक्षा का मामला उपेक्षित रह जाता है। राजनीतिज्ञों और प्रबंधकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेलवे सिस्टम को को एक तय सीमा से ज्यादा न खींचा जाए। रेलवे सुरक्षा और सेवाओं के मध्य समुचित संतुलन बनाए जाने की जरूरत है। उम्मीद है कि इस वर्ष से अलग रेलवे बजट न होने के कारण रेल मंत्रालय के ऊपर लोकप्रिय निर्णय लेने का दबाव नहीं रहेगा और वह सुरक्षा पर समुचित खर्च कर सकेगी। अब समय आ गया है जब भारतीय रेलवे सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करे नहीं तो क्या पता फिर हम लोग शायद किसी नई दुर्घटना के बाद भी इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करते दिखें।

राहुल लाल

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