वरदान समझा गया इंटरनेट अभिशाप बनता जा रहा है

इंटरनेट एक बहुत बड़ा वरदान है जो आपको घर बैठे न केवल दुनिया भर की सैर कराता है बल्कि मनचाही जानकारी भी उपलब्ध कराता है लेकिन यही वरदान कभी कभी अभिशाप भी बन जाता है। पिछले कुछ सालों से भारत में इंटरनेट का प्रचलन बढ़ा है। इंटरनेट को मनोरंजन और शिक्षा का माध्यम माना जाता था। एक बटन दबाते ही हमें वांछित सामग्री सुलभ हो जाती थी। इसे ज्ञान का प्रवाह भी माना गया। इंटरनेट से अश्लील फिल्मों के सरेआम प्रदर्शन से हमारा सभ्य समाज लज्जित हुआ और बुराइयों का बोलबाला बढ़ने लगा। समाज में अपराध बढ़ने लगे। अश्लील फिल्मों और शराब ने समाज में अपराधों को बढ़ावा दिया है।
आमतौर पर अब कई भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है. लेकिन माता−पिता इस बात पर ध्यान नहीं देते कि उनका बच्चा इंटरनेट का कैसा इस्तेमाल कर रहा है। कई बार बच्चे इंटरनेट से कुछ सीखने की बजाय उसका दुरूपयोग भी करने लगते हैं। कई बच्चे इंटरनेट पर सेक्स गेम खलने में जुटे हुए हैं। कई बार जब तक माता पिता को इस बात का अहसास होता है कि उनका बच्चा अपनी उम्र से पहले बड़ा हो रहा है उसके पहले ही वह दहलीज लांघ जाता है। आजकल बच्चे अपनी बोलचाल में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते है जो कल तक कोई सोच भी नहीं सकता था। इतना ही नहीं, सेक्स की आधी−अधूरी जानकारी के साथ प्रयोग करने से भी नहीं कतराते। समाज में अश्लील फिल्मों का प्रदर्शन और बोलबाला निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। इंटरनेट के जरिये परोसी जाने वाली अश्लील सामग्री समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी हुई हैं। बिहार में हुई एक दुष्कर्म की वारदात से पता चलता है कि आरोपियों ने पहले शराब पी और फिर अश्लील फिल्म देखी। कहने का मतलब है आग में घी। यह बेहद शर्मनाक है।
आजकल की छोटी छोटी बच्चियां भी कम उम्र में हॉट दिखना चाहती हैं, सेक्सी कपड़े पहनना चाहती हैं और शीला व मुन्नी की तरह डांस करना चाहती हैं। बच्चियां यह सब इसलिए कर रही हैं क्योंकि उनको अपने आस−पास यही सब होता दिखाई दे रहा है। यही गलत सोच उन्हें बिगड़ने में बड़ी भूमिका अदा कर रही है। मौजूदा दौर में अकसर माता−पिता कामकाजी होने की वजह से बच्चों को समय नहीं दे पाते और इसकी भरपाई वह उनको ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देकर करना चाहते हैं। ऐसे में बच्चे घर में अकेले रहकर टीवी व इंटरनेट का गलत इस्तेमाल करने लगते हैं। अनेक अपराधियों ने यह कबूल किया है कि नंगी और अश्लील फिल्मों को देखकर ही हमने अपराधों को अंजाम दिया है। छेड़खानी, दुष्कर्म और बलात्कार के पीछे अश्लील फिल्मों के प्रदर्शन को माना गया है। ये फिल्में अपराध की कारक हैं और समाज में कलंक हैं। समाज में चेतना, जागरूकता और निगरानी के माध्यम से ही ऐसी फिल्मों पर अंकुश लग सकता है।
माँ−बाप और अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों की सतत निगरानी रखें और कम्प्यूटर अथवा लैपटॉप पर उन्हें देर रात्रि तक नहीं बैठने दें। स्वयं भी समय−समय पर कम्प्यूटर को देखते रहें ताकि बच्चों के मन में यह भय बना रहे कि उन्होंने कुछ भी अनुचित देखा तो माँ−बाप की नजर में आ जायेंगे। इस राक्षसी प्रवृत्ति ने शिष्ट परिवारों और सभ्य समाज की गरिमा को ध्वस्त कर देने का कुचक्र भी रच दिया है। भारत सरकार को भी इंटरनेट पर परोसे जाने वाली पोर्न फिल्मों की सामग्री की निगरानी और नियंत्रण के लिए एक सैल स्थापित करना चाहिये और ऐसी साईटों को ब्लॉक करने की कार्यवाही को अंजाम देना चाहिये।
आज बाजार में अश्लील साहित्यों से लेकर, विज्ञापन, खबरें, पोर्न फिल्में सभी कुछ उपलब्ध हैं। एक सर्वे के अनुसार, ''लगभग 386 पोर्न साइटें अश्लीलता को बढ़ावा दे रही हैं, जिस पर करोड़ों लोग प्रतिदिन सर्च करते हैं।'' वहीं टी.वी की बात क्या करें? विज्ञापन और खबरों की आड़ में मानों पोर्न परोस रहे हो। क्योंकि यह अश्लीलता बिन बुलाए मेहमान की तरह सीधे हमारे घरों में प्रवेश कर चुकी है। चाहे कॉन्डम का प्रचार हो या फिर बलात्कार की खबरें। अश्लीलता इतनी भर दी जाती है जिसे देखकर हर कोई शर्मसार हो न हो पर, घर में सबकी निगाहें यह बताने का प्रयास करती हैं कि हमने कुछ नहीं देखा। वहीं कुछ पत्रिकाएं तो इस पर अपना विशेषांक भी निकाल रही हैं। चाहे इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव ही क्यों न पड़े।
- बाल मुकुन्द ओझा
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