सिंगल यूज़ प्लास्टिक आखिर है क्या ? इससे होने वाले बड़े नुकसान से कैसे बचें ?

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आप जानती हैं कि प्लास्टिक हमारे प्रतिदिन के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। हमारे उपयोग की करीब-करीब सारी वस्तुओं में प्लास्टिक होता है। अगर आपकी रसोई की बात करें तो बिना प्लास्टिक के आज की रसोई की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से राष्ट्र को अपने संबोधन में देशवासियों से सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को छोड़ने की अपील की है। दो अक्तूबर को महात्मा गांधी के 150वें जन्मदिन पर मोदी सरकार पूरे देश में सिंगल यूज़ प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाने जा रही है। अलग-अलग मंत्रालयों ने कहा है कि वे ऐसे प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए कई कदम उठाने जा रहे हैं। आप अपनी रसोई से सिंगल यूज़ प्लास्टिक हटा कर इस अभियान में हिस्सा ले सकती हैं।

सबसे पहले समझें कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक आखिर है क्या? 

आप जानती हैं कि प्लास्टिक हमारे प्रतिदिन के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। हमारे उपयोग की करीब-करीब सारी वस्तुओं में प्लास्टिक होता है। अगर आपकी रसोई की बात करें तो बिना प्लास्टिक के आज की रसोई की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। रसोई घर में प्रयोग होने वाले बर्तन हों या फिर उपकरण, सबमें किसी न किसी रूप में प्लास्टिक मौजूद होता है। लेकिन प्लास्टिक दो तरह से बांटा गया है। एक वह प्लास्टिक जिसे आप बार-बार उपयोग में लेते हैं। जैसे कि आपकी रसोई में प्रयोग होने वाले कई प्रकार के बर्तन या उपकरण। दूसरा प्लास्टिक वह जिसे केवल एक बार प्रयोग कर फेंक दिया जाता है। जैसे दूध का पाउच, सब्जियों और किराने का सामान बाजार से घर लाने के लिए प्रयोग में आने वाले पॉलीथिन की थैलियां या पन्नियां, चिप्स, बिस्कुट आदि के पैकेट या फिर स्ट्रॉ, कप और चम्मच। यह सब वो प्लास्टिक है जो दोबारा इस्तेमाल नहीं हो सकता है। इसे एक बार प्रयोग कर फेंक दिया जाता है। चूंकि करीब साठ प्रतिशत प्लास्टिक रिसाइकल नहीं किया जाता है इसलिए यह कचरा हजारों वर्ष तक बना रहता है। इससे हमारे पीने का पानी दूषित होता है। इसमें कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां फैलाने वाले तत्व मौजूद होते हैं। यह प्लास्टिक समुद्र में जाकर वहां के जीव-जंतुओं के लिए जानलेवा बन जाता है। सड़कों पर घूमने वाले मवेशी खासतौर से गायें इस प्लास्टिक को खा लेती हैं। उनके पाचन तंत्र में इसे पचाने की क्षमता नहीं है इसलिए सैंकड़ों गायें हर साल सिंगल यूज प्लास्टिक की वजह से जान गंवा देती हैं। 

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एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर यह हमारा दायित्व है कि हम सिंगल यूज़ प्लास्टिक के चलन से मुक्ति दिलाने में मदद करें। एक गृहिणी पर पूरे घर का भार टिका होता है। वह चाहे तो इस अभियान में बड़ी भूमिका निभा सकती है। हालांकि इसमें कई बातों पर आपका बस नहीं है। जैसे दूध के पाउच जब तक उत्पादक प्लास्टिक के पैकेट में देंगे आपको वैसे ही लेना पड़ेगा। हालांकि आज कल बड़े शहरों में गायों का ऑर्गेनिक दूध कांच की बोतलों में सीधे घरों में दिया जाने लगा है। लेकिन यह सामान्य रूप से उपलब्ध दूध की तुलना में थोड़ा महंगा होने से अधिक प्रचलन में नहीं आ पाया है। आज भी दूधिए स्टील के बर्तनों में दूध घर-घर तक पहुंचाते हैं जो नाप कर सीधा स्टील के बर्तन में डाल दिया जाता है। लेकिन मिलावट के डर से कई परिवार इन्हें लेने में हिचकिचाते हैं।

लेकिन सब्जी और किराने का सामान लाने के लिए आप घर में नियम बना सकती हैं। घर के मुख्य द्वार के समीप एक कील पर कपड़े का या जूट का झोला टांग दें। परिवार के सभी सदस्यों को कह दिया जाए कि जब भी वे सब्जी या किराने का सामान लेने जाएं, इन झोलों को लेकर जाएं और इन्हीं में सामान लाएं। यह नियम पर्यावरण की रक्षा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। यह भी कोशिश करें कि आपके घर का कचरा सूखा और गीला अलग-अलग निकाला जाए। इसके लिए अलग-अलग डस्टबिन का प्रयोग करें।

इसके साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि प्लास्टिक के पैकेट, डिस्पोजल चम्मच प्लेट आदि का निपटान ठीक से हो। अगर कचरा देते समय सावधानी रखी जाएगी तो नगर निगम आदि को इसे निपटाने में आसानी होगी। सरकार यह कोशिश कर रही है कि सिंगल यूज प्लास्टिक के कचरे को रिसाइकल किया जाए। इसका प्रयोग सड़क बनाने और सीमेंट के कारखानों में ईंधन के तौर पर प्रयोग करने की योजना है। अगर आप कचरा छांट कर देंगी तो इससे इस काम में मदद मिलेगी। 

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साथ ही, रहन-सहन के पुराने तौर-तरीकों पर वापस आना होगा। हमारे बुजुर्गों के पास साधन नहीं थे लेकिन वे सुखी और स्वस्थ थे क्योंकि उनका खान-पान, रहन-सहन पर्यावरण के अनुकूल और प्रकृति के करीब था। रसोई घरों में मिट्टी या तांबे के बर्तन प्रयोग होते थे। पीने का पानी मिट्टी के घड़ों में रहता था। खाने के लिए स्टील या तांबे के बर्तन काम में आते थे। बच्चों को स्कूल के लिए खाना स्टील के टिफिन में दिया जाता था। रसोई में कंटेनर भी धातुओं के होते थे प्लास्टिक के नहीं। यह सब तौर-तरीके ऐसे हैं जिन्हें दोबारा अपनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। आप ऐसा करके इस बड़े अभियान में अपना योगदान कर सकती हैं।

- डॉ. मनीषा शर्मा

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