इन कारणों से बढ़ रहे हैं दुष्कर्म के मामले ! देवी से राक्षसों जैसा व्यवहार आखिर कब तक ?

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महिलाओं की शालीनता को भंग करने की हिम्मत करने वाली मानसिकता का खत्म करने के लिए स्त्री को स्वयं जागना होगा और अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा। साथ ही पुरुषों के साथ कदम मिलाकर भी चलना होगा, अहंकार से नहीं बल्कि स्वावलंबन से।

बलात्कार जैसी सामाजिक विकृति हमारे देश की बेटियों की अस्मिता को लीलते जा रही हैं। आज न बेटियां घर में महफूज हैं और न ही घर के बाहर अपने को सुरक्षित महसूस कर रही हैं। ताजा मामले के मुताबिक हैदराबाद की पशु चिकित्सक युवती के साथ दुष्कर्म कर दरिंदों द्वारा उसे जिंदा जला दिया गया तो वहीं झारखंड की राजधानी रांची में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आदिवासी छात्रा को अगवा कर उसके साथ अन्य छात्रों ने सामूहिक बलात्कार किया। दोनों लोमहर्षक घटनाओं से पूरा देश क्षुब्ध है। यही नहीं आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर एक घंटे में 22 बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं। भारत जैसे देश में जहां स्त्री को देवी का अवतार समझा जाता है तथा माँ, बहन एवं बेटी को इज्जत की नजरों से देखा जाता है, वहाँ ऐसा होना चिंताजनक है। 

आज देश का कोई भी कोना इसलिए दरिंदों के खौफ से अछूता नहीं हैं क्योंकि हमने अपने आदर्शों, संस्कारों और अपनी संस्कृति को तिलांजलि दे दी है। निरंतर बढ़ते बलात्कारों का कारण हमारा नैतिक मूल्यों और उच्च आदर्शों से विमुख होना है। दरअसल बलात्कार की घटनाओं को अंजाम देने के लिए हमारे समाज में मौजूद कई पहलू जिम्मेदार हैं। जिसमें सबसे पहला तो देश में फैलता नशा है। यह बलात्कार को अंजाम देने वाला प्रमुख कारण है। नशा आदमी की सोच को विकृत कर देता है। उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता और उसके गलत दिशा में बहकने की संभावनाएं शत-प्रतिशत बढ़ जाती हैं। ऐसे में कोई भी स्त्री उसे मात्र शिकार ही नजर आती है। अभी तक की सारी रिपोर्ट देखी जाए तो 85 प्रतिशत मामलों में नशा ही प्रमुख कारण रहा है। इसके उपरांत भी हमारे देश में नशा ऐसे बिक रहा है जैसे मंदिरों में प्रसाद। आपको हर एक किलोमीटर में मंदिर मिले ना मिले पर शराब की दुकान जरूर मिल जाएगी। और शाम को तो लोग शराब की दुकान की ऐसी परिक्रमा लगाते हैं कि अगर वो ना मिली तो प्राण ही सूख जायेंगे ! 

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दूसरा पहलू पुरुषों की दुर्बल मानसिकता है। स्त्री देह को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है। पोर्न फिल्में और फिर उत्तेजक किताबें पुरुषों की मानसिकता को दुर्बल कर देती हैं और वो उस उत्तेजना में अपनी मर्यादाएं भूल बैठते हैं। और यही तनाव ही बलात्कार का कारण होता है। ईश्वर ने नर और नारी की शारीरिक संरचना भिन्न इसलिए बनाई कि यह संसार आगे बढ़ सके। परिवेश में घुलती अनैतिकता और बेशर्म आचरण ने पुरुषों के मानस में स्त्री को मात्र भोग्या ही निरूपित किया है। यह आज की बात नहीं है अपितु बरसों-बरस से चली आ रही एक विकृत मानसिकता है, जो दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है। हमारी सामाजिक मानसिकता भी स्वार्थी हो रही है। फलस्वरूप किसी भी मामले में हम स्वयं को शामिल नहीं करते और अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता। 

तीसरा पहलू महिलाओं का खुद को असहाय व अपने आत्मविश्वास को कमजोर मानना है। अगर महिलाओं का आत्मविश्वास प्रबल हो तो कोई भी पुरुष उनसे टक्कर नहीं ले सकता है। इसके लिए महिलाओं को शारीरिक रूप से सबल बनना चाहिए और मन से भी खुद को मजबूत समझना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की ट्रेनिंग उन्हें बचपन से ही मिलनी चाहिए। हमारा समाज लड़कियों की परवरिश इस तरह से करता है कि लड़की खुद को कमजोर और डरपोक बनाती चली जाती है। हर महिला को अपने साथ अपनी सुरक्षा का साधन हमेशा रखने के लिए हमें उन्हें जागरूक करना चाहिए। महिला अगर डरी-सहमी है और खुद को लाचार समझती है तो उसे परेशान करने वालों का विश्वास कई गुना बढ़ जाता है। महिला की बॉडी लैंग्वेज हमेशा आत्मविश्वास से भरपूर होनी चाहिए। अगर भीतर से असुरक्षित महसूस करें तब भी अपनी बेचैनी से उसे जाहिर ना होने दें। 

चौथा पहलू वे एकांत जगह हैं जो मवालियों का अड्डा बनते देर नहीं लेती हैं। गांव और शहर के सुनसान खंडहरों की बरसों तक जब कोई सुध नहीं लेता है तब यह जगह आवारा और आपराधिक किस्म के लोगों की समय गुजारने की स्थली बन जाती है। फार्म हाऊस में जहां बिगड़ैल अमीरजादे इस तरह के काम को अंजाम देते हैं, वहीं खंडहरों में झुग्गी बस्ती के गुंडा तत्व अपना डेरा जमाते हैं। बड़े-बड़े नेता, अफसर, उद्योगपति लोग अपना फार्म हाऊस बना लेते हैं और वहां हकीकत में होता क्या ये कोई सुध नही लेता है। यह जगह पुलिस और प्रशासन से दूर जहां इन लोगों के लिए ‘सुरक्षित‘ होती है, वहीं एक अकेली स्त्री के लिए बेहद असुरक्षित। महिला के चीखने-पुकारने पर भी कोई मदद के लिए नहीं पहुंच सकता। बलात्कार के 60 प्रतिशत केस में ऐसे ही मामले सामने आये हैं। 

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पाँचवाँ पहलू हमारे देश का लचर कानून भी है। अगर कानून सख्त हो तो शायद आपराधिक मामलों की संख्या बहुत कम हो जाती। कमजोर कानून और इंसाफ मिलने में देर यह भी बलात्कार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। देखा जाये तो प्रशासन और पुलिस कभी कमजोर नहीं है, कमजोर है उनकी सोच और उनकी समस्या से लड़ने की उनकी इच्छा शक्ति। पैसे वाले जब आरोपों के घेरे में आते हैं तो प्रशासनिक शिथिलताएं उन्हें कठघरे की बजाय बचाव के गलियारे में ले जाती हैं। पुलिस की लाठी बेबस पर जितने जुल्म ढाती है सक्षम के सामने वही लाठी सहारा बन जाती है। अब तक कई मामलों में कमजोर कानून से गलियां ढूंढ़कर अपराधी के बच निकलने के कई किस्से सामने आ चुके हैं। कई बार सबूत के अभाव में न्याय नहीं मिलता और अपराधी छूट जाता है। 

आज हमें बलात्कार को धर्म, मजहब के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। बलात्कारी कहीं भी हो सकते हैं, किसी भी चेहरे के पीछे, किसी भी बाने में, किसी भी तेवर में, किसी भी सीरत में। बलात्कार एक प्रवृति है। उसे चिन्हित करने, रोकने और उससे निपटने की दिशा में यदि हम सब एकमत होकर काम करें तो संभवतः इस प्रवृत्ति का नाश कर सकते हैं। हमारी करोड़ों की जनसंख्या में लगभग 58.6 करोड़ की जनसंख्या के प्रति अब राजनीतिक शक्तियों और आम जनता को जागृत होना होगा और नारी के सम्मान के लिए कमर कसनी होगी। टी.वी. के कई चैनल हमारे पारिवारिक जीवन मूल्यों को विश्रृंखलित करने का कार्य कर रहे हैं। अधिकांश टी.वी. चैनल हिंसा, बलात्कार, पर-स्त्रीगमन, विकृत यौन-सम्बन्ध इत्यादि दिखा रहे हैं। इन चैनलों का उद्देश्य पाश्चात्य उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रचार करना है, जोकि हमारे देश की सांस्कृतिक भावनाओं के प्रतिकूल है। बचपन से ही निरन्तर हत्याओं व बलात्कारों के दृश्य देखने का बच्चों के मानसिक विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए इन पर रोक लगाना बेहद जरूरी है। बदलते सामाजिक परिवेश में महिलाओं की शालीनता को भंग करने की हिम्मत करने वाली मानसिकता का खत्म करने के लिए स्त्री को स्वयं जागना होगा और अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा। साथ ही पुरुषों के साथ कदम मिलाकर भी चलना होगा, अहंकार से नहीं बल्कि स्वावलंबन से। इसके लिए हमें महिलाओं के आरक्षित नहीं बल्कि सुरक्षित होने पर जोर देना होगा।

- देवेन्द्रराज सुथार

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