जिस देश का बचपन भूखा है, उस देश की जवानी क्या होगी ?

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भारत में नेता लगातार देश में प्रगति और विकास के लंबे-चौड़े दावे करते रहे हैं लेकिन जो आंकड़े दुनिया भर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संस्था-इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट से उभरकर आए हैं, वह चौंकाने वाले हैं।

भारत में 15 अगस्त को 73वां स्वतंत्रता दिवस जोर-शोर व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। 15 अगस्त का दिन हम भारतीयों के लिए खास है क्योंकि इसी दिन 1947 में 200 सालों की गुलामी की जंजीरों से देश को आजादी मिली थी। विकास के दावों के बीच संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा समय में भारत में विश्व की भूखी आबादी का करीब एक तिहाई हिस्सा निवास करता है और देश में करीब 39 फीसद बच्चे पर्याप्त पोषण से वंचित हैं। निश्चित रूप से गरीबी और भुखमरी जैसी बुनियादी समस्याएं देश की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त मजबूती देने में बाधक बनी हुई हैं।

भारत की एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन बसर कर रही है और उसके लिए रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करना सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। बचपन से एक कहावत सुनते आ रहे हैं कि इंसान की जिंदगी में तीन चीजें- रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में माने जाते हैं। रोटी कपड़ा और मकान हर इंसान की मूलभूत जरूरत है, जिसके बिना मनुष्य का जीवन नरक बन जाता है। 

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पुरानी कहावत है ‘बच्चे भगवान का रूप होते हैं”, क्योंकि बच्चों का हृदय अन्य सभी लोगों से कहीं ज्यादा साफ और पवित्र होता है। बच्चे देश का भविष्य होते हैं। बच्चे देश की बहुमूल्य सम्पत्ति व धरोहर होते हैं और हर देश का भविष्य बच्चों पर ही निर्भर करता है जो बड़े हो कर देश के भाग्य विधाता बनते हैं और उसे विकास की राह पर आगे ले जाते हैं। लेकिन भूखे और कुपोषित बच्चों के दम पर एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण सम्भव नहीं है।  

भारत में नेता लगातार देश में प्रगति और विकास के लंबे-चौड़े दावे करते रहे हैं लेकिन जो आंकड़े दुनिया भर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संस्था-इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट से उभरकर आए हैं, वह चौंकाने वाले हैं। 16 मई 2014 को नरेंद्र मोदी और भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था तब वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 55वें रैंक पर था, वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें, साल 2017 में 100वें और इस बार 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक 2018 में तीन साढ़ियां और लुढ़क कर भारत 103वें पायदान पर है। यह सचमुच चिंता बढ़ाने वाली बात है कि 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक 2018 में भारत 103वें पायदान पर है। यह आंकड़ा हमारे विकास के तमाम दावों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) की शुरुआत साल 2006 में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने की थी। वेल्ट हंगरलाइफ नाम के एक जर्मन संस्थान ने 2006 में पहली बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के तमाम देशों में खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्योरा होता है। हर साल अक्टूबर में ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट जारी की जाती है। 2018 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स इसका 13वां संस्करण है। वैश्विक भूख सूचकांक 2018 की रिपोर्ट में भारत की स्थिति नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से भी खराब है। तमाम दावों के बीच ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट बता रही है कि मौजूदा सरकार देश से भुखमरी दूर करने में फेल साबित हुई है।

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चुनाव नजदीक आते ही अक्सर नेता जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद अधिकतर वादे भूल जाते हैं। भारत में भुखमरी से निपटने के लिए अनेकों योजनाएं बनी हैं लेकिन उनकी सही तरीके से पालना नहीं हुई। सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाई जा रही सभी योजनाएं भ्रष्टाचार और लालफीताशाही की वजह से गरीबों तक नहीं पहुंच रही हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल एवं 21 टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के चलते खराब हो जाती हैं तथा उत्सव, समारोह, शादी−ब्याह आदि में बड़ी मात्रा में पका हुआ खाना ज्यादा बना कर बर्बाद कर दिया जाता है। वहीं दुर्भाग्यवश भारत में रोज अनेकों लोगों के सामने भूखे सोने की नौबत होती है। 

हमारे लोकतंत्र की कितनी अजीब विडंबना है कि भारत में भूख एक गंभीर समस्या है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 119 देशों की सूची में यह 103वें पायदान पर है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि देश में भूख एक गंभीर समस्या है। जर्मन संस्था वेल्टहंगरहिल्फ एंड कंसर्न वर्ल्डवाइड की ओर से जारी रिपोर्ट में भारत को उन 45 देशों की सूची में रखा गया है, जहां भुखमरी की स्थिति गंभीर है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के 73 वर्ष बाद भी भारत में एक बहुत बड़ी आबादी रोजाना भूखे पेट सोने को मजबूर है जोकि एक चौंकाने, निराशाजनक और शर्मनाक वाली बात है। मेरा मानना है कि भारत में भुखमरी एक बड़ी चुनौती है। मेरे गाँव धारौली, जिला झज्जर में सरकारी स्कूल में बचपन में पढ़ा हुआ संत कबीर दास जी का वो दोहा कि ‘साईं इतना दीजिए जामे कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा न रहूं साधु न भूखा जाय’ को फिर से दोहरा रहा हूँ। भारत में भुखमरी को दूर करने के लिए तमाम कल्याणकारी योजनाओं और कोशिशों के बाद भी भुखमरी कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है।

यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि आजादी के 73 साल बाद भी देश में गरीबी और भुखमरी है। भारत में भी गरीबी के कारण कई बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिलता है और वे कुपोषण से ग्रस्त हो जाते हैं। देश में आज भी भुखमरी के चलते बच्चों की मौत शरीर में पोषक तत्वों की भारी कमी और काफी समय से पौष्टिक खाना नहीं मिलने की वजह से हो रही है। दिल्ली की तीन सगी बहनों की जुलाई 2018 में भूख से मौत की शर्मनाक घटना ने सरकार की भूख से लड़ने की लड़ाई की पोल खोल दी थी। भुखमरी की समस्या की चुनौती से निपटने के लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ठोस व व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। भारत के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि ‘जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है, उनका सुख लूटने में नहीं’। उपनिषद् भी कहते हैं कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्’ अर्थात् संसार में सब सुखी रहें, सब निरोग या स्वस्थ रहें, सबका कल्याण हो और विश्व में कोई दुःखी न हो। 

-युद्धवीर सिंह लांबा

(लेखक अकिडो कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बहादुरगढ़ जिला झज्जर, हरियाणा में रजिस्ट्रार के पद पर कार्यरत हैं।)

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