कोटा में अगर राजनीति खत्म हो गयी हो तो अस्पतालों की स्थिति सुधार दीजिये

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कोटा के जेके लोन अस्पताल में 1 दिसम्बर 2019 से लेकर 6 जनवरी 2020 तक मात्र 36 दिनों में 111 बच्चों की मौत हो चुकी है। कोटा के इसी अस्पताल में वर्ष 2019 में 963 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन राज्य सरकार मामले को लेकर अब भी गंभीर नजर नहीं आ रही है।

राजस्थान का कोटा शहर कभी औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर था। उद्योगों के बंद होने के बाद यह शहर देश में कोचिंग संस्थानों का सबसे बड़ा हब बन गया। मगर पढ़ाई के तनाव में यहां बाहर से पढ़ने आने वाले छात्रों के लगातार आत्महत्या करने की घटनाओं ने इस शहर के चेहरे पर एक बदनुमा दाग लगा दिया था। हाईकोर्ट की सख्ती व सरकारी प्रयासों से कोटा में छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं में काफी कमी आने से यहां लोगों ने राहत की सांस ली थी।

मगर कोटा शहर के जेके लोन सरकारी अस्पताल में गत 36 दिनों में 111 बच्चों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। इससे कोटा शहर एक बार फिर से देश भर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। दिल दहला देने वाली इस घटना से राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार भी लोगों के निशाने पर आ गई है। पिछले दिसम्बर महीने में कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजात शिशुओं के मरने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह अभी तक जारी है। नवजात शिशुओं की मौत रोक पाने में अस्पताल प्रशासन व राजस्थान सरकार नाकारा साबित हो रही है। ऊपर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह कह कर कि 'प्रदेश के हर अस्पताल में हर दिन तीन-चार बच्चों की मौत होती रहती है। यह कोई नयी बात नहीं है। पिछले 6 सालों के मुकाबले इस साल तो सबसे कम मौतें हुयी हैं', लोगों को और अधिक नाराज कर दिया है। मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा दिये गये ऐसे असंवेदनशील बयान की चौतरफा आलोचना हो रही है।

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इसी बीच राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांती व न्यायाधीश पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की खण्डपीठ ने कोटा सहित राज्य के सभी जिलों के अस्पताओं में नवजात बच्चों की मौत के कारणों की रिपोर्ट तलब करते हुये सरकारी अस्पतालों में सभी रिक्त व स्वीकृत पदों की जानकारी मांगी है। कोटा के जेके लोन अस्पताल में 1 दिसम्बर 2019 से लेकर 6 जनवरी 2020 तक मात्र 36 दिनों में 111 बच्चों की मौत हो चुकी है। कोटा के इसी अस्पताल में वर्ष 2019 में 963 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं। कोटा के अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिला जोधपुर के डॉक्टर सम्पूर्णानंद राजकीय मेडिकल कॉलेज में दिसम्बर माह में 146 बच्चों की मौत हो जाने की बात सामने आ रही है। जबकि गत दिसम्बर माह में ही बीकानेर के सरकारी पीबीएम अस्पताल में 162 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। इनमें 102 नवजात शिशु थे। इसी तरह दिसम्बर माह में बाड़मेर के सरकारी अस्पताल में 29 बच्चों की मृत्यु हुई है। वहीं गत वर्ष बाड़मेर जिले के सरकारी अस्पतालों में 202 नवजात बच्चों की मौत हो गई थी।

नवजात बच्चों की मौत पर राजस्थान सरकार को घिरता देख कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे को दिल्ली तलब कर पूरी स्थिति की जानकारी ली। सोनिया गांधी ने राजस्थान में स्थिति को नियंत्रण में करने के लिये उन्हें तत्काल जयपुर भेजा। लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे स्थिति का जायजा लेने अभी तक कोटा नहीं जा पाये हैं। प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा भी घटना के एक माह बाद कोटा अस्पताल का जायजा लेने गए जहां उन्हें लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

प्रदेश में स्थिति बिगड़ती देख अंतत: कांग्रेस आलाकमान को उप मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को डेमेज कंट्रोल करने के लिए कोटा भेजना पड़ा। कोटा के हालात का जायजा लेने के बाद सचिन पायलट ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर अकेले नवजात शिशुओं की मौत की जिम्मेदारी नहीं डाल सकते हैं। हमारी सरकार को बने हुए भी 13 माह हो गए हैं। प्रदेश में नवजात शिशुओं की मौत होने को हम हमारी सरकार की प्रशासनिक असफलता ही मानेंगे। हम इसे दुरुस्त करने का हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि कहीं कोई खामी तो रही होगी जिसके चलते इतने बच्चों को जान गंवानी पड़ी है। जिम्मेदारी तय होनी चाहिये। सचिन पायलट का बयान एक तरह से मुख्यमंत्री गहलोत व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की असफलता को ही उजाकर करता है। कोटा में दिये गये सचिन पायलट के बयान के बाद विपक्षी दल भाजपा सरकार पर और अधिक आक्रामक हो रही है।

राज्य के चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने जेके लॉन अस्पताल में हुई बच्चों की मौत के मामले में अपने विभाग को क्लीन चिट देते हुये कहा था कि बच्चों की मौत चिकित्सकों या मेडिकल स्टॉफ की लापरवाही या संक्रमण के कारण नहीं हुई है। वहीं सरकार की ओर से गठित कमेटी ने अपनी जांच में माना है कि बच्चों की मौत गंभीर रोगों के कारण हुई है। कोटा में बच्चों की मौत का मामला तूल पकड़ने के बाद सरकार हरकत में आई और अस्पताल के अधीक्षक को हटा दिया है। साथ ही हाई लेवल जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

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कोटा में नवजात बच्चों की मौत पर सफाई देते हुये अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर एचएल मीणा का कहना था कि जांच के बाद हमने पाया है कि सभी मौतें सामान्य हैं। इसमें कोई लापरवाही नहीं हुई है। अस्पताल अधीक्षक के अनुसार उनके पास ज्यादातर मरीज कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बांरा जिलों से आते हैं। जिस वक्त वो अस्पताल लाए जाते हैं उनकी तबियत पहले से ही बहुत ज्यादा बिगड़ी हुयी होती है। बच्चों के मरने पर कोटा के जेके लोन अस्पताल के पीडियाट्रिक्स प्रमुख डॉ. एएल बैरवा ने राष्ट्रीय एनआईसीयू रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा है कि रिकॉर्ड के अनुसार 20 प्रतिशत शिशु मृत्यु स्वीकार्य हैं। वहीं कोटा में मृत्यु दर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यहां केवल 10 से 15 प्रतिशत बच्चों की मौत हुई। डॉ. एएल बैरवा के अनुसार ये चिंता का विषय इसलिए भी नहीं है क्योंकि जिस वक्त बच्चों को यहां लाया गया वो गंभीर स्थिति में थे।

इस पर सवाल उठता है कि यदि बच्चे गंभीर स्थिति में अस्पताल लाए जाते हैं तो क्या उन्हें जीने का अधिकार नहीं है। पहला बच्चा मरते ही सरकार को सचेत होकर ऐसे प्रबंध करने चाहिए जिससे हर किसी की जान को बचाया जा सके।

बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर कोटा में बच्चों की मौत का उल्लेख करते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर तंज कसते हुये कहा कि कांग्रेस की महिला महासचिव की चुप्पी दुखद है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन व लोकसभा अध्यक्ष एवं कोटा के सांसद ओम बिरला ने भी बच्चों की मौत पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री को एक बार फिर चिट्ठी लिख कर अस्पताल की व्यवस्था को सुचारू करवाने को कहा है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मासूम बच्चों की मौत पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को निशाने पर लेते हुये कहा कि गोरखपुर की घटना पर तो कांग्रेस के सभी बड़े नेता घर घर जा रहे थे। अब कहां गयी उनकी संवेदनायें। क्यों नहीं प्रियंका गांधी ने राजस्थान जाकर मरने वाले बच्चों के परिवारों के लोगों से मिल कर उनको ढाढस बंधाया। खुद को घिरता देखा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि मामले पर विपक्ष राजनीति कर रहा है। हम पिछली भाजपा सरकार से ज्यादा बेहतर ढंग से लोगों को स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध करवा रहे हैं।

पिछली सरकारों ने क्या किया क्या नहीं किया इस बात से आम लोगों को कोई वास्ता नहीं है। प्रदेश की जनता तो मौजूदा सरकार से ही बेहतर स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध करवाने की अपेक्षा करती है। राजस्थान की जनता तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से ही पूछ रही है कि आखिर वो दिन कब आएगा जब इस तरह से नवजात बच्चों की मौतों पर अंकुश लग कर उनकी मौत का सिलसिला रूक सकेगा ?

-रमेश सर्राफ धमोरा

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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