साक्षात्कारः पीटी उषा ने कहा- राजनीति को काफी समय से समझ रही थी, अब काम करके दिखाउँगी

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ANI

पीटी उषा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार बेहतरीन काम कर रही है। ज्यादातर प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हैं। करप्शन पर काफी हद तक लगाम लगी है। जनता का पैसा बर्बाद नहीं होता, विकास कार्यों में इस्तेमाल होता है।

खिलाड़ियों और कलाकारों में अब राजनीतिक महत्वाकांक्षा पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़ी है। खेल के दौरान या रिटायरमेंट के बाद सीधे राजनीतिक गलियारों में अपना आगे का भविष्य तलाशने लगते हैं। इसी सप्ताह पूर्व एथलीट पीटी उषा ने भी राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ ली। खिलाड़ियों-कलाकारों के राजनीति में आने की ये फेहरिस्त लंबी है और शायद ये सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। उड़न परी के नाम से विख्यात महान धावक पीटी उषा ने ना सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में बड़ी ख्याती प्राप्त की, तभी उन्हें उड़नपरी के नाम पुकारा जाता है। माननीय बनकर कैसा महसूस करती हैं उषा, जैसे तमाम सवालों के जवाब उनसे बातचीत में डॉ. रमेश ठाकुर ने टटोले। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

प्रश्नः प्रत्येक खिलाड़ियों की अंतिम चाहत क्यों राजनीति हो गई है?

उत्तर- इस सवाल का जवाब हमारे चाहने वाले अच्छे से देंगे। दरअसल, उनकी ही ख्वाहिशें होती हैं कि हम खेलों की तरह राजनीति में भी देश या राज्य की जनता का भला करें। प्रत्येक खिलाड़ी में एक ईमानदारी होती है जिसका प्रदर्शन वह मैदान में कर चुके होते हैं, उसका दूसरा रूप नेता बनने के बाद लोग देखना चाहते हैं। मुझे लगता है, चाहे खेल का मैदान हो, या राजनीतिक अखाड़ा, दोनों जगह ईमानदारी से अपने काम को अंजाम देना चाहिए।

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प्रश्नः राजनीति में आना आपका व्यक्तिगत फैसला रहा?

उत्तर- देखिए, प्रत्येक बड़े निर्णयों में पारिवारिक और करीबी मित्रों की सलाह शामिल होती है। पारिवारिक सदस्यों की इच्छा थी कि मैं सामाजिक जीवन में भी बेहतरीन किरदार अदा करूं। इसलिए मैंने भी सामूहिक फैसले के बाद राज्यसभा जाने का निर्णय लिया। यहां नई हूं, अभी बहुत कुछ सीखना है। सीखने के बाद अपने काम में गति दूंगी। विकास के लिए जो भी फंड मुझे आवंटित होगा, उसका सही से इस्तेमल किया जाएगा।

प्रश्नः खेल और राजनीति में कितना अंतर समझती हैं आप?

उत्तर- खासा अंतर है। खेल में व्यक्तिगत स्वतंत्रता होती है फैसले लेने के लिए, लेकिन राजनीति में टीम वर्क के हिसाब से काम होता है। बहरहाल, मुझे खेल के विषय में तो गहनता से पता है जिसमें पूरा जीवन बिताया, लेकिन अभी राजनीति के संबंध में ज्यादा कुछ बताना शायद जल्दबाजी होगा। एकाध वर्ष बाद आप मेरे से सवाल करेंगे, तो अच्छे से बता पाउंगी। वैसे, दोनों क्षेत्र आपस में भिन्न हैं। दोनों की भूमिकाएं भी आपस में मेल नहीं खातीं। खेल में छोटी-सी चूक आपको पराजय का मुंह दिखाती है और राजनीति में हुई गलतियों को सजा जनता देती है।

प्रश्नः भाजपा आपके जरिए केरल में अपने जनाधार का विस्तार तो नहीं करना चाहती?

उत्तर- इसमें बुरा क्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार बेहतरीन काम कर रही है। ज्यादातर प्रदेशों में भाजपा की सरकारें हैं। करप्शन पर काफी हद तक लगाम लगी है। जनता का पैसा बर्बाद नहीं होता, विकास कार्यों में इस्तेमाल होता है। जनता को यही तो चाहिए सरकारों से, रही बात मेरे प्रदेश की, तो वह भी अछूता नहीं है। केंद्र की योजनाएं पूरे हिंदुस्तान में युद्ध स्तर पर संचालित हो रही हैं। मेरा इस्तेमाल अगर प्रदेश की भलाई के लिए होता है, तो मेरे लिए गर्व की बात होगी।

प्रश्नः एक लंबा अरसा हो गया आपको खेलों से दूर, अचानक से कैसे राजनीति में आने का मन हुआ?

उत्तर- देखिए, आफॅर तो पहले भी आए थे, तब मैं खुद को फिट नहीं समझती थी राजनीति के लिए। कई वर्षों से मैं राजनीति को समझने की कोशिश कर रही हूं, क्योंकि खेलने के दौरान उतना वक्त नहीं मिला। हां, फ्री समय में मैंने नेताओं की कार्यशैली को समझा, उसके बाद मुझे लगा कि मुझे भी इस क्षेत्र में अपना योगदान देना चाहिए, बस ऐसे ही मन बना राजनीति में आने का।

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प्रश्नः भाजपा ने खुद ऑफर दिया आपको राज्यसभा के लिए?

उत्तर- मेरे लिए प्रदेश स्तर से डिमांड थी कि मैं राजनीति में प्रवेश करूं। बात दिल्ली तक पहुंची, उसके बाद रास्ता खुल गया। मैं भाग्यशाली हूं, इतने बड़े कद के नेता के नेतृत्व में मुझे काम करने का अवसर मिल रहा है। मैं सामान्य इंसान हूं, मुझे भाजपा जैसी बड़ी पार्टी ने अगर इस लायक समझा है, तो मैं शीर्ष नेतृत्व की आभारी हूं। जिन नेताओं ने मेरे पर विश्वास किया, कोशिश रहेगी, उनके विश्वास को पूरा कर सकूं।

प्रश्नः खुद के लिए कितनी चुनौती समझती हैं ये जिम्मेदारी?

उत्तर- काम को जब तक चुनौती के रूप में नहीं लेंगे, तो रिजल्ट अच्छा नहीं आएगा। चुनौतियों और जिम्मेदारियों का अहसास सभी को होना चाहिए, बिना इसके सफलता नहीं मिलने वाली। राज्यसभा सदस्य की जिम्मेदारी को मैं चुनौती के रूप में देखती हूं। मुझे शपथ पहले ही लेनी थी, पर कुछ परिस्थितियों के कारण तय तारीख पर मैं शपथ ग्रहण के लिए राज्यसभा में उपस्थित नहीं हो पाई थी।

-बातचीत में जैसा पीटी उषा ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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