2019 में पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया इन घटनाओं ने I Top World News

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सितंबर माह में दुनिया एक बार फिर भारतीय शक्ति के प्रदर्शन की गवाह बनी। लोकसभा चुनावों में ''महा जनादेश'' प्राप्त कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने अमेरिका की यात्रा पर गये तो कई बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर लौटे।

वर्ष 2019 अंतरराष्ट्रीय खबरों के लिहाज से काफी उथलपुथल वाला रहा। वैसे तो इस वर्ष कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने देश-दुनिया को प्रभावित किया। लेकिन हम आपके समक्ष वर्ष के बारहों महीनों की उन बड़ी घटनाओं को रख रहे हैं जोकि साल भर चर्चा में रहीं। तो आइए साल 2019 को अलविदा कहते हुए जरा नजर डालते हैं इस वर्ष की बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर।

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जनवरी माह में दुनिया उस समय हिल गयी जब केन्या के नैरोबी में स्थित एक होटल परिसर में जिहादी हमला हो गया। इस हमले में 21 लोग मारे गये। ड्यूसिट होटल परिसर में हुए हमले में शामिल सभी हमलावरों को 20 घंटे के अभियान के बाद सुरक्षा बलों ने मार गिराया। इस हमले में सैकड़ों लोगों को बचा लिया गया और सभी जिहादी मारे गए। हमले की जिम्मेदारी अल कायदा से संबंधित समूह अल-शबाब ने लेते हुए कहा था कि उसने यरूशलम को इजराइल की राजधानी घोषित किए जाने के अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले का बदला लेने के लिए यह हमला किया था।

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फरवरी माह में दुनिया ने न्यू इंडिया की धमक महसूस की थी जब भारत ने पुलवामा हमले का बदला बालाकोट में आतंकी शिविरों पर बम गिरा कर लिया था। 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद 27 फरवरी को पाकिस्तानी विमानों ने भारतीय वायुक्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की लेकिन चौकस, चतुर और बलशाली भारतीय वायुसेना के जांबाज कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तान में घुसकर उसके एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराया था, लेकिन इस दौरान उनका मिग-21 विमान हादसाग्रस्त होकर पाकिस्तानी सीमा में गिर गया था और अभिनंदन पाकिस्तान की कैद में आ गये थे लेकिन भारत सरकार के जबरदस्त दबाव के चलते पाकिस्तान सरकार को 1 मार्च को अभिनंदन को रिहा करने पर मजबूर होना पड़ा था।

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मार्च में आतंकवाद का कहर दुनिया पर एक बार फिर बरसा जब न्यूजीलैंड में क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में हुए हमलों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। क्राइस्टचर्च में जुमे की नमाज के दौरान दो मस्जिदों पर एक दक्षिणपंथी चरमपंथी ने हमला किया था। बंदूकधारी की पहचान एक आस्ट्रेलियाई श्वेत राष्ट्रवादी के रूप में की गई जिसने हमले का ऑनलाइन सीधा प्रसारण किया था। हमलावर ने हमले से पहले एक बड़ा घोषणापत्र भी ऑनलाइन पोस्ट किया था।

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अप्रैल में धमाकों की गूँज श्रीलंका में सुनाई दी। 21 अप्रैल, रविवार को ईस्टर की प्रार्थना के दौरान सुबह-सुबह श्रीलंका छह सिलसिलेवार धमाकों और दो आत्मघाती हमलों से दहल उठा। राजधानी कोलंबो के अलावा तटीय शहर नेगेंबो और बट्टिकलोआ में हुए कुल आठ धमाकों में 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि 500 से ज्यादा लोग घायल हो गये। मृतकों में महिलाएं, बच्चे और 11 विदेशी नागरिक भी शामिल थे। देखा जाये तो 2009 में लिट्टे के खात्मे के बाद श्रीलंका के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा हमला था।

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दक्षिण अफ्रीका के चुनाव परिणाम मई माह की सबसे बड़ी खबर रही। सत्तारूढ़ अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) ने 57.51 प्रतिशत वोट हासिल कर देश के आम चुनाव में जीत दर्ज की। स्वतंत्र चुनाव आयोग ने यह घोषणा की। आधिकारिक नतीजों ने दर्शाया कि विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक अलायंस 20.76 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रही जबकि इकोनॉमिक फ्रीडम फाइटर्स ने 10.79 प्रतिशत वोट हासिल किए।

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हांगकांग में लोकतंत्र की मांग को लेकर जून महीने से जो प्रदर्शन शुरू हुए वह अब तक नहीं थमे हैं। इस साल देखा जाये तो हांगकांग के प्रदर्शनों ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता के साथ जगह हासिल की। प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए चीन ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाये लेकिन प्रदर्शनकारियों का हौसला बरकरार रहा। इस विरोध प्रदर्शन की असली वजह चीनी प्रत्यर्पण बिल है। इस बिल पर विवाद की वजह इसका वह प्रावधान है जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति अपराध करके हांगकांग आ जाता है तो उसे जांच प्रक्रिया में शामिल होने के लिए चीन भेजा जायेगा।

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जुलाई माह में लीबिया खबरों के केंद्र में बना रहा क्योंकि लीबिया की राजधानी त्रिपोली में स्थित आव्रजकों के एक हिरासत केन्द्र पर हुए हवाई हमले में कम से कम 40 लोग मारे गए। इस केंद्र में 616 आव्रजक और शरणार्थी रह रहे थे। लीबिया की सरकार ने इस हमले के लिए खलीफा हफ्तार के नेतृत्व वाली स्वयंभू लीबियन नेशनल आर्मी को जिम्मेदार बताया है। 

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अगस्त माह में दुनिया को अमेजन के जंगलों में लगी आग की चिंता सताई। लंग्स ऑफ द प्लेनेट यानि दुनिया का फेफड़ा कहे जाने वाले अमेजन के जंगलों में लगी आग से पूरी दुनिया चिंता में दिखी क्योंकि इस पृथ्वी पर 20 फीसदी ऑक्सीजन सिर्फ अमेजन के जंगलों से इस दुनिया को मिलती है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव वैसे ही मानव जीवन को काफी प्रभावित कर रहे हैं, ऐसे में अमेजन के जंगलों को यदि बचाया नहीं गया तो पर्यावरण और मानव जीवन पर इसका बड़ा गहरा असर होगा। ये जंगल जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, क्योंकि यह हर साल लाखों टन कार्बन उत्सर्जन को सोख लेते हैं। जब पेड़ काटे या जलाए जाते हैं, तो उनके अंदर जमा हुआ कार्बन वायुमंडल में चला जाता है। 

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सितंबर माह में दुनिया एक बार फिर भारतीय शक्ति के प्रदर्शन की गवाह बनी। लोकसभा चुनावों में 'महा जनादेश' प्राप्त कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने अमेरिका की यात्रा पर गये। इस दौरान उन्होंने ह्यूस्टन में आयोजित 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में संबोधित किया। स्टेडियम में मौजूद लगभग 50,000 लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 'हाउडी मोदी' के जवाब में कहा कि भारत में सब कुछ अच्छा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अमेरिका की प्रगति में भारतीय अमेरिकियों के योगदान को सराहा।

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अक्तूबर में दुनिया को उस समय तब बड़ी राहत मिली जब खबर आई कि आईएस सरगना अबु बकर अल बगदादी को अमेरिका ने ढेर कर दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि आईएस सरगना अबु बकर अल बगदादी को ढेर करने के बाद उसके उत्तराधिकारी को भी खत्म कर दिया गया है। बगदादी दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी संगठन का संस्थापक और सरगना था। बगदादी के साथ उसके तीन बच्चे और कई सहयोगी भी मारे गए। बगदादी सीरिया की एक सुरंग में छिपा हुआ था और अमेरिकी बलों की ओर से चारों तरफ से घिर जाने के बाद बगदादी ने खुद को बच्चों सहित उड़ा लिया।

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नवंबर में आतंकवाद का कहर माली पर एक बार फिर बरपा जब देश के पूर्वोत्तर हिस्से में माली सेना के एक ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले में 53 सैनिकों की मौत हो गई। माली सरकार ने इसे आतंकवादी हमला बताते हुए इसकी निंदा की। साथ ही बिना कोई सटीक आंकड़ा दिए कई लोगों के मारे जाने तथा घायल होने की बात भी कही। दरअसल माली सेना के 2012 में हुई बगावत में विद्रोहियों को मात देने में विफल रहने के बाद से उत्तरी माली अल-कायदा से जुड़े जिहादियों के नियंत्रण में है।

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दिसंबर माह अंतरराष्ट्रीय खबरों के लिहाज से थोड़ा ज्यादा गर्म रहा क्योंकि एक ओर पाकिस्तान से खबर आई कि वहां के सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सेनाध्यक्ष और तानाशाह परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई है। पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी पूर्व राष्ट्रपति को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुश्किलें तब बढ़ गयीं जब अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी। अमेरिकी इतिहास में डोनाल्ड ट्रंप तीसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ महाभियोग को मंजूरी दी गई। इसके साथ ही ब्रिटेन में चल रही राजनीतिक उथलपुथल पर आम चुनाव परिणामों ने विराम लगा दिया। आम चुनाव में सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी ने जोरदार जीत हासिल की। बोरिस जॉनसन की कंजरवेटिव पार्टी को 650 सीटों वाली संसद में 364 सीटें हासिल हुईं जबकि चुनावों के दौरान कश्मीर से 370 हटाने के फैसले का विरोध करने वाली लेबर पार्टी को मात्र 203 सीटें ही मिलीं। इस चुनाव परिणाम के साथ ही ब्रेग्जिट का रास्ता भी साफ हो गया। खास बात यह रही कि इस चुनाव में एक दर्जन से अधिक भारतवंशी उम्मीदवारों ने भी अपनी जीत का परचम लहराया।

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दिसंबर माह जाते-जाते इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को भी कुछ राहत दे गया क्योंकि वह इस साल दो बार बहुमत हासिल करने में विफल रहे उसके बावजूद एक बार फिर अपनी लिकुड पार्टी के नेता चुने गए। मार्च में हुए चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, इसके बाद नेतन्याहू के नेतृत्व पर सवाल खड़े हुए लेकिन सभी को पछाड़ते हुए बेंजामिन एक बार फिर पार्टी के नेता के तौर पर उभरे हैं, उनके पक्ष में 72 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं।

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बहरहाल, इसके अलावा इस साल शरणार्थियों के मुद्दे ने साल भर दुनिया की चिंता बढ़ाये रखा, अवैध आव्रजकों की समस्या से भी दुनिया परेशान रही। उत्तर कोरिया और अमेरिका की दोस्ती विश्वसनीय नहीं बन सकी, पाकिस्तान अपनी हरकतों से दुनिया के सामने नंगा हो गया, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने की बात स्वीकारने तथा बालाकोट में भारतीय वायुसेना के हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया यहां तक कि इस्लामी देशों के बीच भी अलग-थलग कर दिया। यही नहीं कुलभूषण जाधव मामले में भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुँह की खानी पड़ी। 

-नीरज कुमार दुबे

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