जानिए, भारत में विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को किस तरह के काम करने की है अनुमति और किस तरह के काम करने की नहीं

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कमलेश पांडे । Jun 6 2023 4:33PM

बार काउंसिल ऑफ इंडिया देश में विदेशी वकीलों की एंट्री के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करता आया है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी बात पर सहमति जताई थी कि मौजूदा कानून के तहत भारत में विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

भारत में विदेशी वकीलों और कानून फर्मों का प्रवेश अब सम्भव हो चुका है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति मिलने के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई ने इस बारे में नियमन तैयार करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि विदेशी वकीलों और कानून फर्मों को भारत में किस तरह का काम करना है, किस तरह से काम करना हैं और किस तरह का काम नहीं। इसलिए अब यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद देश के अधिवक्ताओं/वकीलों की प्रैक्टिस में बहुत कुछ बदलने वाला है। इसलिए हम आपको बताएंगे कि जानिए क्या कुछ यथावत रहेगा और क्या कुछ बदल जाएगा, बदलने वाला है।

मसलन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के नए नियम के मुताबिक, विदेशी वकील और कानून फर्मों को भारत में प्रैक्टिस/अभ्यास करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के साथ पंजीकरण कराने की अनुमति दी गई है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि इसके तहत वो सिर्फ अपने देश के कानून का अभ्यास करने के हकदार होंगे। इसलिए कहा जा रहा है कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद अब अधिवक्ताओं/वकीलों की प्रैक्टिस में बहुत कुछ बदलने वाला है, जिसे जानना व समझना चाहिए। खासकर अधिवक्ताओं और विधिवेत्ताओं को।

बता दें कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने विदेशी वकीलों की प्रैक्टिस/अभ्यास के लिए कुछ खास नियम बनाए हैं, जिसे कानूनी पेशे को लेकर एक बड़ा फैसला करार दिया गया है। बहरहाल, अधिवक्ता पेशे की शीर्ष संस्था बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानी बीसीआई ने विदेशी वकीलों और कानूनी फर्म को भारत में प्रैक्टिस करने की इजाजत दे दी है। हालांकि अपने फैसले में उसने साफ कर दिया है कि कोई भी विदेशी वकील कोर्ट में पेश नहीं हो सकते हैं, बल्कि वे केवल कॉर्पोरेट लेनदेन से जुड़े हुए कामकाज करेंगे या फिर विदेशी कानून पर अपने मुवक्किल/क्लाइंट को सलाह देने का काम कर सकते हैं।

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# समझिए कि आखिर क्या है बीसीआई का फैसला?

गत 13 मार्च 2023 को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई ने एक आधिकारिक सूचना दी, जिसमें कहा गया कि इस आधिकारिक सूचना से भारतीय और विदेशी दोनों वकीलों को फायदा होगा। अब विदेशी वकील और लॉ फर्म भारत में काम कर सकेंगे। इसके लिए विदेशी विधि पंजीकरण और नियमन-2022 के लिए नियम बनाया गया है। बीसीआई ने साफ कहा है कि कुछ पाबंदियों के साथ इस फैसले से सुनिश्चित किया जाएगा कि यह भारत और विदेशी वकीलों के हित में हो। बता दें कि बीसीआई अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जो भारत में कानूनी प्रैक्टिस और कानूनी शिक्षा की देखरेख करती है।

इस फैसले के बाद बीसीआई ने तर्क दिया है कि उसके कदम से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर होने वाली चिंताएं खत्म हो जाएंगी। इससे भारत अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक गतिविधियों के बीच मध्यस्थता का केंद्र बन जाएगा। ये नियम उन विदेशी लॉ फर्मों को कानूनी स्पष्टता प्रदान करेगा, जो वर्तमान में भारत में बहुत सीमित तरीके से काम करती हैं। बीसीआई ने अपने बयान में यहां तक कहा है कि यह नियम भारत में विदेशी कानून और अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता मामलों की प्रैक्टिस करने को और कारगर बनाने की दिशा में काम करेगा।

# जानिए कि अधिवक्ताओं/वकीलों के पेशे में अब क्या-क्या बदलने वाला है?

बार काउंसिल ऑफ इंडिया देश में विदेशी वकीलों की एंट्री के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करता आया है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी बात पर सहमति जताई थी कि मौजूदा कानून के तहत भारत में विदेशी वकीलों को प्रैक्टिस करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। हालांकि, अब नए फैसले से देश में विदेशी अधिवक्ताओं/वकीलों की एंट्री में ज्यादा पेशेवराना रवैया देखने को मिलेगा। विदेशी वकीलों के लिए सीमित दायरे में भी बड़ा मार्केट उपलब्ध होगा, क्योंकि देश में बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां काम कर रही हैं। वहीं, आगे भी कई कंपनियां निवेश करने वाली हैं।

नए नियम के अनुसार, विदेशी वकील और कानून फर्मों को भारत में अभ्यास करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई के साथ पंजीकरण कराने की अनुमति दी गई है। जिसके तहत वो अपने देश के कानून का अभ्यास करने के हकदार होंगे। इसलिए वे भारतीय कानून का अभ्यास नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, विदेशी अधिवक्ताओं/वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों को किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या किसी भी वैधानिक या नियामक प्राधिकरणों के समक्ष पेश होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

# विदेशी अधिवक्ता/वकील और लॉ फर्म से जुड़ीं शर्तें जान लीजिए

नए नियम के अनुसार, विदेशी अधिवक्ता/वकील और लॉ फर्म केवल बिना मुकदमें वाले मामलों में ही प्रैक्टिस/अभ्यास कर पाएंगे। देश में अभ्यास/प्रैक्टिस करने के लिए विदेशी वकील या फर्मों को बीसीआई के साथ पंजीकरण कराना होगा। जिसके दृष्टिगत विदेशी वकील के लिए रजिस्ट्रेशन चार्ज 25,000 डॉलर है जबकि कानूनी फर्म के लिए 50,000 डॉलर है। ये रजिस्ट्रेशन केवल पांच साल के लिए वैध होगा। वहीं, विदेशी वकील या लॉ फर्म को 6 महीने के भीतर फॉर्म-बी में नवीनीकरण के लिए आवेदन करने की जरूरत है। इसके अलावा, विदेशी वकीलों को संयुक्त उद्यम, विलय और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा से संबंधित मामले, अनुबंध के मसौदे वगैरह मामलों पर प्रैक्टिस करने की इजाजत होगी। वहीं, एक या एक से ज्यादा विदेशी वकीलों या भारत में पंजीकृत विदेशी कानूनी फर्मों के साथ साझेदारी भी कर सकते हैं।

# जानिए कि विदेशी कानून कंपनियां अब तक कैसे काम कर रही थीं अपने देश में

सर्वप्रथम विदेशी कानून फर्मों के भारतीय बाजार में प्रवेश करने का मुद्दा वर्ष 2009 में बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष पेश किया गया था। तब 'लॉयर्स कलेक्टिव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिवार्य रूप से कहा था कि केवल भारतीय कानून की डिग्री रखने वाले भारतीय ही भारत में कानून का अभ्यास कर सकते हैं। उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अधिनियम की धारा 29 के अनुसार, केवल बीसीआई के साथ नामांकित अधिवक्ता/वकील ही कानून का अभ्यास कर सकते हैं। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि 'अभ्यास' में वादी और गैर-वादी दोनों तरह की प्रैक्टिस/अभ्यास शामिल होंगी। इसलिए विदेशी कंपनियां न तो भारत में अपने ग्राहकों को सलाह दे सकती थीं और न ही अदालत में पेश हो सकती थीं। वहीं, साल 2012 में 'एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले में यह मुद्दा मद्रास हाईकोर्ट के सामने आया था। 

वहीं, वर्ष 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में विदेशी कानून फर्मों की प्रैक्टिस को थोड़ी मान्यता दी थी। 'एके बालाजी बनाम भारत सरकार' मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि विदेशी कंपनियां मुकदमेबाजी या गैर-मुकदमेबाजी पक्ष पर तब तक अभ्यास नहीं कर सकती हैं जब तक कि वे अधिवक्ता अधिनियम और बीसीसीआई नियमों को पूरा नहीं करती हैं। वहीं, नए फैसले में ये कहा गया कि विदेशी वकील भारतीय क्लाइंट को केवल अस्थायी आधार पर ही यानी ‘फ्लाई इन एंड फ्लाई आउट’ मोड पर सलाह दे सकते हैं। फैसले में यह भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक आर्बिट्रेशन से संबंधित अनुबंध से जुड़े विवादों के संबंध में आर्बिट्रेशन की कार्यवाही करने के लिए विदेशी वकीलों को भारत आने से कोई रोक-टोक नहीं होगी।

इसके अलावा, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में पेश किए गए अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के मकसद ध्यान में रखते हुए, विदेशी वकीलों को भारत आने और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता से संबंधित अनुबंध से जुड़े विवादों में मध्यस्थता कार्यवाही करने से नहीं रोका जाएगा। बता दें कि कानूनी पेशे में पहले ही बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) जैसे फर्मों, लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग (एलपीओ) में वकीलों के लिए नियम बनाए गए हैं। साथ ही ये कहा गया कि पहले वे अनिश्चित कानूनी ढांचे में काम कर रहे थे और सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करना पड़ा।

# समझिए कि क्या था सर्वोच्च न्यायालय का फैसला और कितना हुआ इसका असर?

'एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले को मद्रास और बॉम्बे हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया/बीसीआई और लॉयर्स कलेक्टिव द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2018 में चुनौती दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी कानून फर्मों और अधिवक्ताओं/वकीलों को अनुमति देने से इनकार करने वाले उच्च न्यायालय के दोनों फैसलों को बरकरार रखा और कहा कि कुछ संशोधनों के साथ कुछ मामलों में विदेशी वकील "फ्लाई इन एंड फ्लाई आउट" यानी अपने क्लाइंट को सलाह देने के लिए भारत आ सकते थे। इसलिए अपने नए फैसले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और रोहिंग्टन नरीमन की बेंच ने 2012 के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक तौर पर सही ठहराया है। ये मामला 'एके बालाजी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' का था। इसलिए अब विदेशी लॉ फर्म कुछ वक्त के लिए भारत आकर सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन मामलों के लिए विदेशी वकीलों के भारत आने पर कोई ऐतराज नहीं है। बस शर्त यही है कि भारतीय कानूनी कोड के नियम उन पर भी लागू होंगे। 

इस प्रकार से स्पष्ट हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 (एडवोकेट एक्ट 1961) के प्रावधानों में भी बदलाव किया है, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मामलों में विदेशी वकीलों पर पूरी तरह से पाबंदी थी।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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