कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए रखती हैं कजरी तीज का व्रत

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कजरी व्रत के दिन नीमड़ी माता की पूजा होती है। सबसे पहले नीमड़ी माता को जल चढ़ाएं और इसके बाद रोली और चावल लगाएं। पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं।

हिन्दू व्रत में कजरी तीज खास होती है। कजली माता की पूजा होने के कारण इसे कजरी तीज के नाम से जाना जाता है। कजरी तीज के दिन जहां महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रहती हैं वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। तो आइए हम आपको कजरी तीज के बारे में कुछ बातें बताते हैं। 


कजरी तीज 

कजरी तीज भादो महीने की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह जुलाई या अगस्त में आता है। कजरी तीज महिलाओं का त्यौहार माना जाता है। कजरी व्रत खास तौर से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में मनाया जाता है। कजरी तीज को बूढ़ी तीज, सातूड़ी तीज और कजली तीज भी कहा जाता है। हरियाली तीज के लगभग 15 दिनों के बाद कजरी तीज मनायी जाती है। साथ ही रक्षाबंधन की श्रावण पूर्णिमा के तीन दिन बाद आती है।

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तीज तीन तरह की होती है 

तीज साल में 3 बार आती है। सबसे पहले हरितालिका तीज, उसके बाद हरियाली तीज और फिर कजरी तीज आती है। कजरी तीज इस साल 18 अगस्त को मनायी जा रही है। जिन लड़कियों की शादी में देरी हो रही है उन्हें यह व्रत करने से जल्दी शादी हो जाती है। कजरी तीज का शुभ मुहूर्त 17 अगस्त को रात 10 बजकर 48 मिनट से शुरू होकर 18 अगस्त तक रहेगा।

नीमड़ी माता की होती है पूजा

कजरी व्रत के दिन नीमड़ी माता की पूजा होती है। सबसे पहले नीमड़ी माता को जल चढ़ाएं और इसके बाद रोली और चावल लगाएं। पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं। बिंदी लगाने के बाद फल भी चढ़ाएं। महिलाएं पूजा करने से पहले मिट्टी और गोबर की दीवार के सहारे तालाब जैसी आकृति बनाती हैं। इसके बाद उसमें नीम की टहनी को लगाकर दूध और जल डालती हैं और दीपक भी जलाया जाता है। गायों की भी खासतौर से पूजा की जाती है। आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाया जाता है। इस तरह गाय को भोजन कराने के बाद ही खुद भोजन किया जाता है। कजरी तीज के दिन सभी आस-पास की महिलाएं एक साथ इकट्ठठा होकर झूला डालती है और कजरी गाती है। यूपी और बिहार के कुछ इलाकों में इस दिन लोग ढोलक की थाप पर कजरी गीत गाते हैं। कजरी माता को मां पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। 

चांद निकलने के बाद खोलते हैं व्रत 

कजरी तीज के दिन पूरे दिन व्रत रखकर शाम को चांद निकलने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। भोजन करके व्रत तोड़ा जाता है। 

बनते हैं खास पकवान 

कजरी तीज के अवसर पर खास तौर से तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। लेकिन जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा को मिलाकर भी कुछ विशेष पकवान बनाया जाता है। इस दिन घरों में खीर, पूरी, बादाम हलवा, घेवर, गुजिया, दाल बाटी चूरमा काजू कतली, हलवा जैसे पकवान भी बनाए जाते हैं। 

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कजरी तीज का महत्व

कजरी तीज का उत्तर भारत का खास महत्व हैं। महिलाएं सजने संवरने के लिए इस दिन का इंतजार करती है। तीज पर महिलाएं अखंड सुहाग का वरदान पाने के लिए निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। कजरी तीज के दिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और हाथों में मेंहदी रचाकर श्रृंगार करती हैं। पूजा विधि में वे मां पार्वती को सुहाग की समाग्री चढ़ाती हैं।

प्रज्ञा पाण्डेय

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