Hartalika Teej व्रत का क्या महत्व है, जानिये पूजन विधि और व्रत कथा

एक बार भगवान शंकर माता पार्वती से बोले कि तुमने पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक घोर तपस्या की थी। तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता दुखी थे कि एक दिन नारदजी तुम्हारे घर पधारे।
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। इस वर्ष यह पर्व 18 सितम्बर को पड़ रहा है। खास बात यह है कि इस दिन सोमवार होने के चलते यह व्रत और महत्व वाला हो गया है क्योंकि जहां सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है वहीं यह व्रत भी शिव-गौरी को समर्पित है। मान्यता है कि सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। यह व्रत भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र को होता है। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। देश के उत्तरी राज्यों में इस व्रत का चलन ज्यादा है। जिस तरह देश भर में करवा चौथ का व्रत पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है उसी प्रकार हरतालिका तीज भी मनाई जाती है।
हरतालिका तीज व्रत विधि
इस व्रत में भी करवा चौथ की तरह ही बिना भोजन और पानी के रहना होता है। करवा चौथ के व्रत में तो रात्रि को चांद निकलने के बाद भोजन कर लिया जाता है लेकिन यह व्रत काफी कठिन है क्योंकि इसमें रात्रि भर पूजन करना होता है और अगली सुबह प्रसाद चढ़ाने के बाद ही महिलाएं भोजन कर सकती हैं। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां तड़के उठकर कुछ हल्का भोजन कर लेती हैं जिससे कि सारे दिन में ऊर्जा बनी रहे। सूर्योदय के बाद नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। जहां पर पूजा की जानी है उस स्थल को गोबर से लीपा जाता है अथवा सफाई की जाती है। उसके बाद वहां केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है और मेवा तथा मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाया जाता है। अगले दिन सुहाग के सामान में से कुछ चीजें ब्राह्मण की पत्नी को दान दे दी जाती हैं और बाकी वस्तुएं व्रती स्त्रियां खुद रखती हैं। व्रत के दिन सायं को शिव−पार्वती की कथा सुननी चाहिए।
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हरतालिका तीज व्रत कथा
एक बार भगवान शंकर माता पार्वती से बोले कि तुमने पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक घोर तपस्या की थी। तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता दुखी थे कि एक दिन नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने नारदजी का सत्कार करने के बाद उनसे आने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने बताया कि वह भगवान विष्णु के आदेश पर यहां आए हैं। उन्होंने कहा कि आपकी कन्या ने कठोर तप किया है और उससे प्रसन्न होकर वह आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानने आया हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज खुश हो गये और उनको लगा कि सारी चिंताएं दूर हो गईं। वह बोले कि इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। हर पिता की यही इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख−संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। नारदजी यह बात सुनकर भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें सारी बात बताई। लेकिन जब इस विवाह की बात तुम्हें पता चली तो तुम्हें दुख हुआ और तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारी मनोदशा को जब भांप लिया तो तुमने उसे बताया कि मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव शंकर का वरण किया है लेकिन मेरे पिता ने मेरा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है इसी से मैं दुविधा में हूं। मेरे पास प्राण त्यागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
यह सुनने के बाद तुम्हारी सहेली ने तुम्हें समझाया और जीवन की सार्थकता से अवगत कराया। वह तुम्हें घनघोर जंगल में ले गई जहां तुम्हारे पिता तुमको खोज नहीं पाते। वहां तुम साधना में लीन हो गई और तुम्हें विश्वास था कि ईश्वर तुम्हारे कष्ट दूर करेंगे। तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ़−ढूंढ़ कर परेशान हो गये और यह सोचने लगे कि कहीं भगवान विष्णु बारात लेकर घर आ गये और तुम नहीं मिली तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। दूसरी ओर तुम नदी के तट पर एक गुफा में साधना में लीन थी। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया और रात भर मेरी स्तुति की। तुम्हारी इस कठिन तपस्या से मेरा आसन डोलने लगा और मेरी समाधि टूट गई। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने के लिए कहा तो तुमने मुझे अपने समक्ष पाकर कहा कि मैं आपका वरण कर चुकी हूं यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। तब मैंने तथास्तु कहा और कैलाश पर्वत पर लौट आया।
अगले दिन तुम्हारे पूजा समाप्त करने के समय ही तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ़ते−ढूंढ़ते वहां आ पहुंचे। तुम्हारी दशा देखकर वह दुखी हुए। तुमने उन्हें बताया कि क्यों तुमने यह तपस्या की। इसके बाद वह तुम्हारी बातें मानकर तुम्हें घर ले गये और कुछ समय बाद हम दोनों का विवाह संपन्न कराया। भगवान बोले कि हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना की इसी कारण हमारा विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुमारियों को मन मुताबिक फल देता हूं। अतः सौभाग्य की इच्छा रखने वाली हर युवती को यह व्रत पूर्ण निष्ठा एवं आस्था के साथ करना चाहिए।
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