Kapkapiii Review: जब दोस्त, डर और ड्रामा एक ही घर में हों!

कपकपी उन युवाओं की कहानी है जो ज़िंदगी में करियर की बजाय कैरम बोर्ड और चाय की कप में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं। छह बेरोज़गार दोस्त एक किराए के घर में रहते हैं, और जब टाइमपास की सीमा पार होती है, तो खेल-खेल में ऊइजा बोर्ड बना बैठते हैं।
कपकपी उन युवाओं की कहानी है जो ज़िंदगी में करियर की बजाय कैरम बोर्ड और चाय की कप में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं। छह बेरोज़गार दोस्त एक किराए के घर में रहते हैं, और जब टाइमपास की सीमा पार होती है, तो खेल-खेल में ऊइजा बोर्ड बना बैठते हैं। फिर एंट्री होती है ‘अनामिका’ नाम की भूतनी की जो इनकी दुनिया हिलाकर रख देती है।
डर को भी हँसी में बदल देने वाली स्क्रिप्ट
कहानी का सबसे मजेदार हिस्सा वही है जब कैरम बोर्ड को ऊइजा बोर्ड बना दिया जाता है। शुरू में ये सब मज़ाक लगता है फर्जी आत्मा, फनी सवाल लेकिन जब ग्लास खुद-ब-खुद हिलने लगे और राज़ बाहर आने लगें, तब माहौल वाकई डरावना हो जाता है। मगर कहानी में डर की जगह ज्यादा देर टिक नहीं पाती, क्योंकि ह्यूमर हर सीन पर हावी हो जाता है।
तुषार कपूर की एंट्री
तुषार कपूर की ‘कबीर’ के रूप में एंट्री फिल्म में जान डाल देती है। उनका किरदार न तो हीरो वाला है, न ही सीरियस बल्कि एक मजाकिया प्रेज़ेंस है जो भूतनी के साथ की जा रही बातचीत में ठहाकों की बौछार करता है। ये सीन फिल्म के हाईलाइट्स हैं।
हीरोइन नहीं, बराबरी की कॉमेडियन
सिद्धि इडनानी और सोनिया राठी को फिल्म में सिर्फ ‘लव इंटरेस्ट’ बनाकर नहीं छोड़ा गया है। उनका स्क्रीन टाइम भले कम हो, लेकिन उनकी कॉमिक टाइमिंग और चुलबुलापन पूरे ग्रुप को बैलेंस करता है। सिद्धि खासतौर पर चौंकाती हैं, क्योंकि उनका ‘द केरला स्टोरी’ वाला सीरियस अंदाज़ यहां पूरी तरह उल्टा है।
निर्देशक की विदाई गिफ्ट
‘क्या कूल हैं हम’ और 'यमला पगला दीवाना' जैसी फिल्में देने वाले संगीथ सिवन की आखिरी फिल्म है कपकपी, और उन्होंने जाते-जाते अपनी कॉमेडी स्टाइल का फुल डोज़ दे दिया है। फिल्म थोड़ी लंबी जरूर लग सकती है, लेकिन उन्होंने ट्रीटमेंट को इतना हल्का-फुल्का और झक्कास रखा है कि हँसी रुकती नहीं।
श्रेयस-तुषार की हिट जोड़ी
‘क्या कूल हैं हम’ सीरीज़ से पहचानी जाने वाली श्रेयस और तुषार की जोड़ी फिर से कमाल करती है। दोनों के बीच की केमिस्ट्री, बेवकूफी और ह्यूमर बहुत ऑर्गैनिक लगता है, जैसे पुराने दोस्त वापस किसी कॉलेज प्रैंक में लग गए हों।
डायलॉग्स जो दिल जीत लें
लेखकों ने साधारण सिचुएशन्स में छिपा ह्यूमर बखूबी पकड़ा है। पंचलाइंस ओवर-द-टॉप नहीं हैं, लेकिन इस तरह से रखी गई हैं कि वो स्क्रीन से सीधे दर्शक के दिमाग में हिट करती हैं। और सबसे अच्छी बात हँसी दिल से आती है, न कि बैकग्राउंड ट्रैक से।
देखें या नहीं?
अगर आप हॉरर फिल्मों में सस्पेंस और चीखें ढूंढते हैं, तो ये फिल्म आपकी चॉइस नहीं। लेकिन अगर आपके पास दोस्त हैं, वीकेंड है और मूड हल्का करना है—तो कपकपी एक परफेक्ट ऑप्शन है।
फाइनल वर्डिक्ट:
कपकपी एक एंटरटेनिंग हॉरर-कॉमेडी है जो आपको दोस्ती की याद दिलाएगी, डर की नहीं। भूतनी यहां डराने नहीं, हँसाने आई है। इस फिल्म को ज़रूर देखिए, वो भी पकोड़े और दोस्तों के साथ मज़ा दोगुना हो जाएगा।
फिल्म: कपकपी
डायरेक्टर: संगीथ सिवन
राइटर: कुमार प्रियदर्शी और सौरभ आनंद
कास्ट: तुषार कपूर, श्रेयस तलपड़े, सिद्धि इदनानी, जय ठक्कर, सोनिया राठी, अभिषेक कुमार, वरुण पांडे, धीरेंद्र तिवारी, मनमीत कौर
ड्यूरेशन: 138
मिनट रेटिंग: 3.5
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