महिला अधिकारों के मुद्दे पर झकझोरती है ''लिपस्टिक अंडर माय बुर्का''
इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म ''लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'' काफी विवादों के बाद बड़े पर्दे तक पहुंची है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भले इस फिल्म ने काफी वाहवाही बटोरी हो लेकिन अपने सेंसर बोर्ड ने तो शुरू में इस फिल्म को किसी भी श्रेणी का प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया था।
इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' काफी विवादों के बाद बड़े पर्दे तक पहुंची है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भले इस फिल्म ने काफी वाहवाही बटोरी हो लेकिन अपने सेंसर बोर्ड ने तो शुरू में इस फिल्म को किसी भी श्रेणी का प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया था। बाद में मामला अपीली अदालत में पहुंचा तो काफी कांट-छांट के इसे 'ए' श्रेणी का प्रमाणपत्र दिया गया। फिल्म देखकर आपको भी यह समझ आ जायेगा कि क्यों इसे प्रमाणपत्र देने से इंकार किया जा रहा था। दरअसल फिल्म महिलाओं के प्रति हमारे समाज की उस दकियानूसी सोच को उजागर करती है जिसमें महिलाओं की अपनी मनमर्जी के कपड़े पहनने की आजादी बाधित की जाती है, जिसमें अपना लाइफ पार्टनर चुनने के उसके अधिकार पर अतिक्रमण किया जाता है, जिसमें एक उम्र पार कर लेने वाली महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वह अपनी उमंगों को मार कर जीवन जिये।
'लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा' चार अलग-अलग उम्र की महिलाओं की कहानी है, जो अपनी जिंदगी को अपने मुताबिक जीना चाहती हैं। फिल्म की शुरुआत में दिखाया गया है कि बुर्का पहने एक लड़की रिहाना (प्लाबिता) एक मॉल से लिपस्टिक चुराती है और फिर वॉशरूम में जाती है जहां वह जींस और टीशर्ट पहन कर और लिपस्टिक लगाकर बाहर आती है और फिर अपने कॉलेज जाती है। फिल्म में दूसरी कहानी ऊषा परमार (रत्ना पाठक) की है जो 55 साल की एक विधवा औरत के रोल में हैं। वह धार्मिक किताबों में छिपाकर फैंटसी नॉवल पढ़ती हैं और उसकी नायिका रोजी की तरह अपनी जिंदगी में भी किसी हीरो की तलाश कर रही हैं। वह एक स्विमिंग कोच की तरफ आकर्षित होती हैं और उससे स्विमिंग सीखना शुरू कर देती हैं।
तीसरी कहानी शिरीन (कोंकणा सेन शर्मा) की है। वह अपने पति को बिना बताए सेल्सवूमन का काम शुरू कर देती है और इस तरह अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करती है। एक दिन अपने काम के दौरान ही उसकी नजर किसी और महिला के साथ जा रहे अपने पति पर पड़ती है तो उसे बड़ा झटका लगता है। चौथी महिला लीला (अहाना कुमार) मेकअप आर्टिस्ट है जो अपने फोटॉग्राफर बॉयफ्रेंड के साथ शादी करना चाहती है लेकिन वह उसे भाव नहीं देता। अब इंटरवेल के बाद दिखाया जाता है कि इन सभी के सपने साकार हो पाते हैं या नहीं। अगर होते हैं तो कैसे होते हैं यह सभी देखने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म में कोंकणा सेन शर्मा ने कमाल का काम किया है। यदि अब तक उनके फैन नहीं हैं तो इस फिल्म को देखने के बाद हो जाएंगे। रत्ना पाठक का काम भी दर्शकों को पसंद आयेगा। प्लाबिता और अहाना कुमार का काम भी अच्छा रहा। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। फिल्म की कहानी पूरी तरह दौड़ती नजर आयी है और कहीं कोई झोल नहीं है। यदि कुछ अलग हट कर देखने की इच्छा रखते हैं तो यकीनन यह फिल्म आपको पसंद आयेगी।
कलाकार- कोंकणा सेन, रत्ना पाठक, अहाना कुमार, प्लाबिता और निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव।
- प्रीटी
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