अच्छी नीयत के साथ बनी है सूरज पंचोली की फिल्म सैटेलाइट शंकर लेकिन कमज़ोर निर्देशन

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रेनू तिवारी । Nov 7 2019 6:28PM

फिल्म में शंकर (सूरज पंचोली) भारतीय सेना का एक जवान है। शंकर को उसकी पूरी बटालियन ''सैटेलाइट शंकर'' कह कर पुकारती हैं क्योंकि उसके अंदर कई तरह की जुबान में बात करने का हुनर है। शंकर की जुबान में ऐसी मिठास है और बात करने का निराला ढंग है जिससे लोग उसकी बाते मानते हैं।

कई बार ऐसा होता है कि लेखक स्क्रिप्ट अच्छी लिखते है लेकिन अच्छी स्क्रिप्ट के बाद भी बेकार निर्देशन के कारण फिल्म हिट होते-होते चूक जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ निर्देशक इरफान कमल की फिल्म 'सैटेलाइट शंकर' के साथ, फिल्म की कहानी को थोड़ा हट के चुना गया और अभिनय भी ठीक किया गया लेकिन खराब डायरेक्शन के कारण फिल्म सुपरहिट होने से चूक गई। सलमान खान की फिल्म हीरो से बॉलीवुड में एंट्री मारने वाले वाले सूरज पंचोली की 'सैटेलाइट शंकर' दूसरी फिल्म है। फिल्म एक आर्मी के जवान की कहानी है साथ ही फिल्म हल्के फुल्के अंदाज में देश की अखंडता पर भी बात करती है। 

फिल्म की कहानी 

फिल्म में शंकर (सूरज पंचोली) भारतीय सेना का एक जवान है। शंकर को उसकी पूरी बटालियन 'सैटेलाइट शंकर' कह कर पुकारती हैं क्योंकि उसके अंदर कई तरह की जुबान में बात करने का हुनर है। शंकर की जुबान में ऐसी मिठास है और बात करने का निराला ढंग है जिससे लोग उसकी बाते मानते हैं। शंकर फिल्म में कई टूटे दिलों को जोड़ता नजर आने वाला है। शंकर अपनी मां से बहुत प्यार करता है। फिल्म में दिखाया गया है कि शंकर कश्मीर में लड़ाई के दौरान घायल हो जाता है जिसके बाद उसे अपने घर मां के पास जाने की इजाजत मिल। इजाजत इसी आधार पर मिलती है कि वह 8 दिनों के बाद वापस आ जाएगा। घर जाने की शंकर तैयार करता है उसके साथी भी कुछ सामान देते है जिसे वह उनके घर पहुंचा दे। फौजी शंकर अपने घर की ओर निकता है लेकिन उसके घर तक पहुंचने की राह आसान नहीं होती। देश की सरहद पर देशवासियों को रक्षा तो सब करते है लेकिन फिल्म में शंकर को ऐसा हीरो दिखाया हैं जो देश में रह कर देशवासियों की सहायता करता है। फिल्म में निर्देशक ने दिखाया है कि असल जिंदगी में मदद करने वाले भी रियल हीरो होते हैं। इसी दौरान शंकर को देश के अंदर भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता जिसके लिए वह लड़ाई करता है। इस लड़ाई के दौरान वह इसी में ही फस जाता है अब क्या लोगों का हीरो समय से ड्यूटी पर लौट पाता है या नहीं इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

निर्देशन व तकनीकि पक्ष 

फिल्म की स्क्रिप्ट में कुछ चीजें काफी दिलचस्प है लेकिन कहानी कहीं-कहीं बोर भी करती है। फिल्म में सारा फोकस शंकर के आठ दिनो की छुट्टी पर किया गया है। ऐसे में आपके पास दूसरा कुछ देखना का ऑप्शन नहीं है। इरफान कमल का निर्देशन कमजोर है। फर्स्ट हॉफ काफी धीमी गति में और बिना किसी रोमांस के आगे चलती है, लेकिन इंटरवल के बाद कहानी में दिलचस्पी शुरु होती है। गुंडों से लड़ता हीरो, सूरज पंचोली और मेघा आकाश की क्यूट सी लव स्टोरी अच्छी लगती है। अलग अलग शहर, भांति भांति के लोग, भाषाएं देखना अच्छा लगा है। अभिनय शंकर के किरदार में सूरज पंचोली को अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का पूरा मौका मिला। 

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