नेपाल में नयी सरकार बनने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया
उल्लेखनीय है कि पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने नेपाल के नये प्रधानमंत्री के रूप में सोमवार को शपथ ली। भारत में नेपाल के राजदूत रह चुके नीलांबर आचार्य ने कहा कि नयी सरकार को भारत के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाये रखने की जरूरत है, हालांकि हर शासन की कार्य शैली में अंतर हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यहां सत्ता में कोई भी सरकार क्यों न आये, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक नजदीकी के चलते नेपाल और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाये रखने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने नेपाल के नये प्रधानमंत्री के रूप में सोमवार को शपथ ली। भारत में नेपाल के राजदूत रह चुके नीलांबर आचार्य ने कहा कि नयी सरकार को भारत के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाये रखने की जरूरत है, हालांकि हर शासन की कार्य शैली में अंतर हो सकते हैं। प्रचंड (68) को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नेपाल का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है।
प्रचंड ने निवर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस नीत पांच दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन को अचानक छोड़ दिया और राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय सीमा रविवार को समाप्त होने से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश कर दिया था। प्रचंड ने प्रधानमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ ली है। आचार्य ने कहा, ‘‘बेशक, भारत के साथ हमारी कुछ समस्याएं हैं और इस तरह के मुद्दे से निपटने की मौजूदा सरकार की शैली पूर्ववर्ती सरकार से अलग हो सकती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सीमा विवाद सहित इन सभी मुद्दों को राजनयिक माध्यमों से हल किये जाने की जरूरत है।’’ पूर्व राजनयिक ने कहा, ‘‘कभी-कभी हमें विभिन्न द्विपक्षीय मुद्दों से निपटने में खुली कूटनीति को आगे बढ़ाने की जरूरत होगी।’’
प्रचंड और सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली शनिवार तक एक दूसरे के कटु आलोचक थे। हालांकि, उन्होंने रविवार को सत्ता-साझेदारी के लिए आपस में हाथ मिला लिया। काठमांडू में अचानक हुए इस राजनीतिक घटनाक्रम का असर भारत-नेपाल संबंध के लिए अच्छा नहीं हो सकता है क्योंकि प्रचंड और उनके मुख्य समर्थक ओली का अतीत में भू-भाग के मुद्दे को लेकर नयी दिल्ली के साथ कुछ गतिरोध रहा है। प्रचंड को व्यापक रूप से चीन समर्थक माना जाता है।
उन्होंने पूर्व में कहा था कि नेपाल में बदले हुए परिदृश्य के आधार पर और 1950 की मैत्री संधि की समीक्षा और कालापानी तथा सुस्ता सीमा विवाद को हल करने सहित सभी लंबित मुद्दों का समधान करने के बाद भारत के साथ एक नयी सहमति विकसित करने की जरूरत है। हालांकि, आचार्य का मानना है कि विदेश नीति के मामले में नये शासन का झुकाव चीन या भारत, दोनों में से किसी के भी ओर नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि नयी सरकार चीन के प्रति या भारत के प्रति झुकाव रखेगी। नेपाल को भारत और चीन, दोनों से सौहार्द्रपूर्ण संबंध रखने की जरूरत है और हम दक्षिणी पड़ोसी देश (भारत) के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचा कर देश (नेपाल) का विकास नहीं कर सकते।’’ नयी सरकार पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव हरि अधिकारी ने कहा कि एक धुर वामपंथी के रूप में प्रचंड की छवि यह संदेह पैदा करती है कि उनकी विदेश नीति निकट पड़ोसी देशों -भारत और चीन- के साथ नेपाल के संतुलित संबंध बनाये रखने में मददगार हो सकती है। वरिष्ठ पत्रकार मातवर सिंह बासनेत ने कहा कि सरकार का झुकाव स्पष्ट रूप से अपने उत्तरी पड़ोसी (चीन) की ओर है। काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी के मेयर बालेंद्र शाह ने एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी में कहा कि पूरी तरह से विपरित विचारधारा रखने वाले तीन दलों ने नेपाल में एक नयी सरकार बनाने के लिए हाथ मिलाया है।
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