भारत में चल रहे एलजीबीटी मामले पर अमेरिका रख रहा है नजर

ओबामा प्रशासन के अधिकारी ने कहा है कि अमेरिका भारत की अदालत में चल रहे एलजीबीटी समुदाय और उसके अधिकारों से जुड़े मामले के नतीजे पर ‘गहरी दिलचस्पी’ के साथ नजर बनाए हुए है।

वाशिंगटन। ओबामा प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि अमेरिका भारत की अदालत में चल रहे एलजीबीटी समुदाय और उसके अधिकारों से जुड़े मामले के नतीजे पर ‘गहरी दिलचस्पी’ के साथ नजर बनाए हुए है। एलजीबीटी लोगों के अधिकारों के विशेष अमेरिकी दूत रैंडी बेरी ने बुधवार को यहां संवाददाताओं को बताया, ‘‘निश्चित तौर पर हम अदालती मामले के नतीजे को गहरी दिलचस्पी के साथ देख रहे हैं। हम नागरिक समाज के संगठनों और सरकार के संपर्क में रहते हैं ताकि एलजीबीटी अधिकारों पर हमारी वैश्विक नीति के बारे में हम अपने विचार उनके साथ साझा कर सकें।’’

लगभग एक साल पहले विदेश मंत्री जॉन केरी ने अमेरिकी सरकार में अपनी तरह के इस एक अलग पद का सृजन किया था। पिछले साल अप्रैल में पदभार संभालने के बाद से अब तक बेरी दुनिया के 42 देशों की यात्रा कर चुके हैं, जिनमें जमैका, तुर्की, युगांडा, इंडोनेशिया, बोस्निया और इजराइल देश शामिल हैं। बेरी ने कहा, ‘‘मुझे अब तक भारत जाने का मौका नहीं मिला है लेकिन मैं सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र से मिलने वाली खबरों के आधार पर कहना चाहूंगा कि जो वैश्विक प्रगति हम देख रहे हैं, वह कुछ तरीकों में बेहद एकरूप है और मेरा मानना है कि वहां कहीं ज्यादा खुली जन वार्ता है।’’

बेरी ने कहा, ‘‘इस पहले साल में, मैं जितने देशों में गया हूं, उनके बारे में एक बात दिलचस्प है कि वहां एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसके बारे में मैं कहूं कि वह इससे (जिसे मैं एक वैश्विक आंदोलन मानता हूं) बचा हुआ है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह इसलिए नहीं है क्योंकि हम इसे ऐसा बनाने के लिए कुछ कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यह धीरे-धीरे हो रहा है। न ही मुझे लगता है कि ऐसा कोई भी स्थान है, जहां इन मुद्दों पर बात होना असंभव है। हां, यह नाजुक जरूर हो सकता है।’’ बेरी ने कहा कि भारत में अमेरिकी राजनयिक मिशन निश्चित तौर पर वहां की सरकार और नागरिक समाज संगठनों के साथ संपर्क रखता है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है ऐसी बातचीत पूरी तरह संभव है। मुझे लगता है कि जब तक हम सावधानीपूर्वक और तर्कसंगत तरीके से चर्चा करते हैं, तब तक इन चर्चाओं में मूल रूप से उत्पादक होने की क्षमता है और मुझे वाकई लगता है कि ऐसी रचनात्मक बातचीत का बेहद महत्व होता है जो भेदभाव एवं हिंसा से स्वतंत्रता और मूलभूत मानवता के मूल्यों की बात करती है।’’

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