Prabhasakshi NewsRoom: गरीब देशों को कर्ज देते रहने वाला China अब सबसे करेगा वसूली, 75 देशों को जल्द से जल्द Loan चुकाने के लिए कहा गया

2025 में लगभग 75 गरीब और संवेदनशील देश चीन को 22 अरब डॉलर का “रिकॉर्ड भुगतान” करेंगे। यह ऋण 2012 से 2018 के बीच दिए गए थे। ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि चीन, जो कभी विकासशील देशों को पूंजी देने वाला देश था, वह अब इनसे ऋण वसूल रहा है।
अब तक देखने में आता था कि चीन गरीब देशों को कर्ज देकर उनकी मदद करता था लेकिन अब वह लोन मेला लगाना बंद कर कर्ज वसूलने का बड़ा अभियान शुरू करेगा। हम आपको बता दें कि एक ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष चीन 75 विकासशील देशों, जिनमें दुनिया के सबसे गरीब और सबसे संवेदनशील देश शामिल हैं, उनसे अपनी पूंजी वसूलेगा। आंकड़ों के मुताबिक इन 75 देशों को इस वर्ष बीजिंग को रिकॉर्ड 22 अरब डॉलर का ऋण चुकाना है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2025 में लगभग 75 गरीब और संवेदनशील देश चीन को 22 अरब डॉलर का “रिकॉर्ड भुगतान” करेंगे। यह ऋण 2012 से 2018 के बीच दिए गए थे। ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि चीन, जो कभी विकासशील देशों को पूंजी देने वाला देश था, वह अब इनसे ऋण वसूल रहा है। दरअसल चीन के BRI प्रोजेक्ट के तहत 2010 के दशक में चीन ने बेतहाशा ऋण दिए थे। रिपोर्ट के मुताबिक चीन को अब अपने घरेलू वाणिज्यिक संस्थानों से दबाव का सामना करना पड़ रहा है कि वे बकाया ऋण की वसूली करें। रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों के लिए एक नये प्रकार का “संकट काल” शुरू हो गया है क्योंकि चीनी सरकार के एजेंट पैसे की वसूली के लिए दबाव डालने लगे हैं। हालांकि अभी यह देखना बाकी है कि एक ऋण वसूली करने वाले देश के रूप में चीन की छवि एक विकास भागीदार के रूप में कैसे प्रभावित होती है।
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हम आपको यह भी बता दें कि इस मीडिया रिपोर्ट को चीनी विदेश मंत्रालय ने खारिज करते हुए कहा है कि कुछ देश विकासशील देशों को दिए गए चीनी ऋण को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि चीन का निवेश और वित्तीय सहयोग अंतरराष्ट्रीय मानकों, बाज़ार सिद्धांतों और ऋण स्थिरता के सिद्धांतों के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि “कुछ देश चीन के ख़तरे का हवाला देकर अफवाह फैला रहे हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि बहुपक्षीय संस्थान ही विकासशील देशों के सबसे बड़े ऋणदाता हैं।”
हम आपको बता दें कि BRI, जो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख पहल है, उसके तहत चीन ने कई विकासशील देशों में अरबों डॉलर की परियोजनाओं के लिए ऋण दिए हैं। लेकिन इन निवेशों की आलोचना “ऋण जाल” के रूप में की गई है खासकर जब चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर ले लिया। हम आपको यह भी बता दें कि COVID-19 महामारी के बाद आर्थिक संकट और परियोजनाओं की खराब व्यावसायिक संभावनाओं के चलते कई देश इन ऋणों का भुगतान करने में विफल रहे।
रिपोर्ट के अनुसार, 120 में से 54 विकासशील देशों में चीन को ऋण भुगतान अब पेरिस क्लब (पश्चिमी देशों के ऋणदाताओं का समूह) को किए जाने वाले कुल भुगतान से अधिक हो गया है। रिपोर्ट से पता चला कि चीन अपने 9 भू-सीमावर्ती देशों में से 7— लाओस, पाकिस्तान, मंगोलिया, म्यांमार, कज़ाकिस्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता बना हुआ है। हम आपको यह भी बता दें कि कुछ देशों, जैसे होंडुरास और सोलोमन द्वीप, जिन्हें ताइवान से कूटनीतिक संबंध तोड़ने के बाद चीन से भारी ऋण प्राप्त हुआ, और अन्य जैसे इंडोनेशिया और ब्राज़ील, जहां चीन ने महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों की आपूर्ति के लिए नए ऋण समझौते किए हैं— इन दोनों ही क्षेत्रों में चीन का ऋण प्रवाह जारी है। इसके अलावा, पिछले वर्ष चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा ऋणदाता बन गया, जिसके पास लगभग 29 अरब डॉलर का ऋण है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, पाकिस्तान के कुल बाहरी ऋण का 22% चीन से है। यही नहीं, इस वर्ष पाकिस्तान को 22 से 30 अरब डॉलर के बाहरी ऋण का भुगतान और पुनर्निर्धारण करना है। हम आपको यह भी बता दें कि इस साल मार्च में, चीन ने CPEC के तहत पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर का ऋण पुनः जारी किया है।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि 2025 में विकासशील देशों को चीन को चुकाने के लिए "ऋण की सुनामी" का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि अब चीन एक बैंकर नहीं, बल्कि एक ऋण वसूलकर्ता की भूमिका निभा रहा है। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या चीन इन ऋणों का इस्तेमाल "भू-राजनीतिक लाभ" के लिए करेगा, विशेष रूप से तब जब अमेरिका ने विदेशी सहायता में कटौती कर दी है।
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