रूस-युक्रेन युद्ध को लेकर भारत ‘तटस्थ’ नहीं, बल्कि शांति के पक्ष में रहा: प्रधानमंत्री मोदी

मोदी ने कहा कि उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से कई बार बात की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत की ‘तटस्थ’ भूमिका की आलोचनाओं को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि भारत इस मामले में शांति का पक्षधर रहा है, युद्ध का नहीं। अपने अमेरिका दौरे की शुरुआत से पहले वाल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक साक्षात्कार में मोदी ने कहा कि सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय कानून और राष्ट्रों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए तथा विवादों को कूटनीति और बातचीत के जरिए हल करना चाहिए। यूक्रेन के साथ रूस के संघर्ष के सिलसिले में रूस को लेकर भारत के रुख की आलोचना का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि अमेरिका में इस तरह की धारणा व्यापक है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि पूरी दुनिया में भारत की स्थिति जगजाहिर है और दुनिया इसे अच्छी तरह से समझती है।’’
यूक्रेन युद्ध को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लाए गए प्रस्तावों पर भारत मतदान में हिस्सा लेने से दूर रहा है। हालांकि, उसने हमेशा ये कहा है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए। मोदी ने कहा, ‘‘कुछ लोग कहते हैं कि हम तटस्थ हैं। लेकिन हम तटस्थ नहीं हैं। हम शांति के पक्ष में हैं। दुनिया को पूरा विश्वास है कि भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता शांति है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। विवादों को कूटनीति और बातचीत के जरिए हल किया जाना चाहिए, युद्ध के साथ नहीं।’’ मोदी ने कहा कि उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से कई बार बात की है।मोदी ने कहा कि उन्होंने हाल ही में मई में जापान में जी-7 शिखर सम्मेलन के मौके पर जेलेंस्की से बात की थी। उन्होंने कहा, ‘‘भारत जो कुछ भी कर सकता है, वह करेगा। संघर्ष को समाप्त करने और स्थायी शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी वास्तविक प्रयासों का भारत समर्थन करता है।’’
मोदी ने आतंकवाद, छद्म युद्ध और विस्तारवाद जैसी विश्व की तमाम समस्याओं के लिए शीत युद्ध के दौरान बनाई गई वैश्विक संस्थाओं की विफलता को जिम्मेदार ठहराया और अनुकूल कदम ना उठाने के चलते छोटे और क्षेत्रीय समूहों का उभार हुआ। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं को बदलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘प्रमुख संस्थाओं की सदस्यता को देखिए। क्या यह वास्तव में लोकतांत्रिक मूल्यों की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं? अफ्रीका जैसी जगह... क्या इसकी कोई आवाज है? भारत की इतनी बड़ी आबादी है और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक उज्ज्वल स्थान है, लेकिन क्या यह मौजूद है?’’ भारत-अमेरिका संबंधों की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि नयी दिल्ली और वाशिंगटन के बीच संबंध पहले से कहीं अधिक मजबूत और गहरे हैं और दोनों देशों के नेताओं के बीच अभूतपूर्व विश्वास है। वैश्विक राजनीति के बारे में बात करते हुए मोदी ने यह भी कहा, भारत कहीं उच्च, गहरी और व्यापक स्तर की भूमिका का हकदार है।
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