मुखर्जी ने द्वितीय विश्व युद्ध के ‘अज्ञात’ भारतीय जवानों को दी श्रद्धांजलि
पोर्ट मोरेस्बी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रितानी बलों की ओर से लड़ते हुए जान गंवाने वाले कई भारतीय सैनिकों समेत उन जवानों को आज श्रद्धांजलि दी जिन्हें पापुआ न्यू गिनी के बोमना कब्रिस्तान में दफनाया गया था। भारतीय सैन्य बलों के सर्वोच्च कमांडर मुखर्जी जवानों की याद में स्थापित किए गए स्तंभ तक गए और वहां जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पुष्पचक्र रखा। मुखर्जी भारत से प्रशांत महासागर के इस सबसे बड़े द्वीप की अब तक की पहली राजकीय यात्रा पर गुरुवार को यहां पहुंचे थे।
राष्ट्रपति पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर जनरल सर माइकल ओगियो से मिलने के तत्काल बाद यहां से 20 किलोमीटर दूर स्थित युद्ध कब्रिस्तान गए। राष्ट्रपति ने जब श्रद्धांजलि अर्पित की तब पापुआ न्यू गिनी रक्षा बल (पीएनजीडीएफ) के जवानों के बैंड ने जवान की जीवन यात्रा की समाप्ति को दर्शाने वाली ‘‘लास्ट पोस्ट’’ की धुन बजाई। जवानों की याद में एक मिनट का मौन रखा गया जिसके बाद मुखर्जी ने कब्रिस्तान का दौरा किया। इस कब्रिस्तान में द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए राष्ट्रमंडल देशों के 3,824 जवानों को दफनाया गया है जिनमें से 699 जवानों की पहचान नहीं हो पाई है। अज्ञात जवानों में से करीब 250 अविभाजित भारत से हैं जो ब्रितानी एवं मित्र देशों के बलों की ओर से लड़े थे।
गत वर्ष अक्तूबर में पापुआ न्यू गिनी में भारत के उच्चायुक्त के रूप में कार्यभार संभालने वाले नागेंद्र कुमार सक्सेना विश्व युद्ध और पीएनजी के अन्य क्षेत्रों में भारतीयों की भूमिका पर बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति के सम्मान में गुरुवार रात ओगियो द्वारा आयोजित भोज के दौरान गवर्नर जनरल ने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध द्वितीय विश्व युद्ध से हैं जिसमें ब्रितानी सेना एवं मित्र देशों की सेना की ओर से भारतीय जवान, करीब 615 बहादुर बेटे लड़े थे और उन्होंने पीएनजी में जान गंवाई थी। उन्होंने कहा, ‘‘उनके पार्थिव शरीर देशभर के युद्ध कब्रिस्तानों में दफन हैं।’’ ये जवान उन जापानी बलों के खिलाफ लड़े थे जो मार्च 1942 में लाए एवं सालामोआ पहुंचे थे। उस समय पोर्ट मोरेस्बी उनका मुख्य लक्ष्य था।
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