आपको ज्यादा प्रॉब्लम है तो...रूसी तेल खरीद पर ट्रंप को जयशंकर जैसा जवाब अभी तक किसी ने नहीं दिया होगा

Jaishankar
ANI
अभिनय आकाश । Aug 23 2025 1:09PM

एस जयशंकर ने कहा कि हम, एक सरकार के रूप में, अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इस पर पूरी तरह दृढ़ हैं। यह ऐसी बात नहीं है जिस पर हम समझौता कर सकें।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस के साथ भारत के तेल व्यापार को लेकर अमेरिका और यूरोप को तीखा जवाब दिया। इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फ़ोरम 2025 में ट्रंप प्रशासन के हालिया आरोपों का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड उत्पाद खरीदने में कोई समस्या है, तो उसे न खरीदें। कोई आपको इसे खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। उन्होंने आगे कहा कि यह हास्यास्पद है कि एक व्यापार-समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लिए काम करने वाले लोग दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहे हैं। लोग आपस में बात करते हैं। ऐसा नहीं है कि वहाँ कोई 'कुट्टी' है... जहाँ तक हमारा सवाल है, रेड लाइन मुख्य रूप से हमारे किसानों और कुछ हद तक हमारे छोटे उत्पादकों के हितों से जुड़ी हैं। 

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एस जयशंकर ने कहा कि हम एक सरकार के रूप में अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इस पर पूरी तरह दृढ़ हैं। यह ऐसी बात नहीं है जिस पर हम समझौता कर सकें। विदेश मंत्रालय ने यह भी बताया कि रूसी तेल खरीदने वाला भारत अकेला नहीं है। चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों के भी ऐसे ही संबंध हैं, जिन पर ऐसे दंड नहीं लगे हैं। जयशंकर ने तर्क दिया कि अमेरिका एक चयनात्मक और पक्षपातपूर्ण नीति अपना रहा है, और कहा कि चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है, फिर भी उसे ऐसी व्यापारिक कार्रवाइयों का सामना नहीं करना पड़ा है। उन्होंने पूछा कि हम सबसे बड़े खरीदार नहीं हैं। दूसरे भी ऐसा कर रहे हैं। तो फिर हम ही क्यों?

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उन्होंने दोहराया कि भारत की ख़रीद वैश्विक बाज़ार की प्रथाओं और ज़रूरतों के अनुरूप है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने पहले भी भारत को रूस से ख़रीद सहित वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों को स्थिर करने में मदद के लिए प्रोत्साहित किया था। ये तीखी टिप्पणियाँ ट्रंप द्वारा रूस के साथ भारत के बढ़ते ऊर्जा व्यापार को लक्षित करते हुए 50% टैरिफ लगाने के बड़े कदम के बाद आई हैं, जिसमें 25% अतिरिक्त जुर्माना भी शामिल है। भारत ने इस फैसले की निंदा करते हुए इसे "अनुचित, अनुचित और अविवेकपूर्ण" बताया है और राष्ट्रीय हित में स्वतंत्र आर्थिक निर्णय लेने के अपने संप्रभु अधिकार पर ज़ोर दिया है।

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