अब चीन भी रोड़ा नहीं बन पाएगा, भारत को अपना Veto देगा ब्रिटेन?

रूस भारत का लगातार समर्थन करता है। इस बार के यूएन के सत्र में भूटान एक ऐसा देश था जिसने ये वकालत की कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। रूस ने भी स्थायी सदस्यता की वकालत की। लेकिन तीसरा विश्व युद्ध दुनिया में न हो उसके नाम पर बने संगठन संयुक्त राष्ट्र जिसका संस्थापक सदस्य ब्रिटेन था और भारत उस वक्त ब्रिटिश औपनिवेश हुआ करता था।
यूएन में भारत को परमानेंट सीट यानी स्थायी सदस्यता के मुद्दों पर लगातार दुनिया दो धड़ों में बटी नजर आती है। एक बड़ा धड़ा भारत के साथ है जो चाहता है कि भारत को यूएन में स्थायी सीट मिले। यूएन में वीटो मिले। जिस तरह से अमेरिका, रूस, चीन औऱ ब्रिटेन के पास है। ठीक उसी तरह से भारत के पास भी वीटो होनी चाहिए। इस बात को लेकर कई बार भारत के प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं। रूस भारत का लगातार समर्थन करता है। इस बार के यूएन के सत्र में भूटान एक ऐसा देश था जिसने ये वकालत की कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। रूस ने भी स्थायी सदस्यता की वकालत की। लेकिन तीसरा विश्व युद्ध दुनिया में न हो उसके नाम पर बने संगठन संयुक्त राष्ट्र जिसका संस्थापक सदस्य ब्रिटेन था और भारत उस वक्त ब्रिटिश औपनिवेश हुआ करता था।
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आज भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। सबसे बड़ा लोकतंत्र है। फिर क्यों भारत के पास यूएन में परमानेंट सीट नहीं है। इसी को लेकर अब सिंगापुर के एक पूर्व राजनयिक का बयान सामने आया। उन्होंने कहा है कि ब्रिटेन को अपनी कुर्सी छोड़ देनी चाहिए और उस कुर्सी को भारत को दे देनी चाहिए। वो ब्रिटेन जिसने भारत के ऊपर 200 सालों तक राज किया। आज उस ब्रिटने की अर्थव्यवस्था भारत से कमजोर है। भारत चौथे नंबर की दुनिया की अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है। अभी 100 से ज्यादा लोगों का डेलीगेशन लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर भारत पहुंचे हैं। अभी पिछले ही महीने भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी एफटीए हुआ था। अब उसी को आगे बढ़ाने के लिए ब्रिटिश डेलीगेशन की मौजूदगी भारत में हुई है।
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सिंगापुर के पूर्व राजनयिक किशोर महबूबानी ने सुझाव दिया है कि यूनाइटेड किंगडम (यूके) को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अपनी स्थायी सीट भारत को दे देनी चाहिए। उन्होंने महत्वपूर्ण वैश्विक बदलावों, खासकर चीन और भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति पर प्रकाश डाला और इस बात पर ज़ोर दिया कि वैश्विक मंच पर ब्रिटेन की ऐतिहासिक भूमिका अब वर्तमान वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है। महबूबानी ने सिंगापुर में भू-राजनीतिक बदलावों पर एक पैनल चर्चा के दौरान कहा आज हम जिस बड़े पैमाने पर संरचनात्मक बदलाव देख रहे हैं, वह संभवतः 2,000 वर्षों के इतिहास में सबसे बड़ा है। भारत और चीन के मामले में, ये बदलाव बहुत गहरे हैं। 1980 में, यूरोपीय संघ का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद चीन से 10 गुना बड़ा था। आज, यूरोपीय संघ और चीन लगभग एक ही आकार के हैं, और 2050 तक, यूरोपीय संघ चीन के आधे आकार का हो जाएगा। यह एक बड़ा संरचनात्मक बदलाव है।
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उन्होंने भारत की बढ़ती ताकत पर ज़ोर देते हुए उसकी तुलना ब्रिटेन से की। पूर्व राजनयिक ने कहा कि वर्ष 2000 में, ब्रिटिश अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था से लगभग चार गुना बड़ी थी। आज, भारत ब्रिटेन से बड़ा है, और 2050 तक, भारत ब्रिटेन से चार गुना बड़ा हो जाएगा। उन्होंने इस बदलाव को इतना महत्वपूर्ण बताया कि वैश्विक शक्ति के ढाँचे में बदलाव ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र में सिंगापुर के स्थायी प्रतिनिधि रह चुके महबूबानी ने तब ब्रिटेन से विनम्रतापूर्वक हटने और भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सीट लेने देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ब्रिटिशों को इस बारे में उदारता दिखानी चाहिए।
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