पांच शेरों की इस घाटी में घुसने से डरता है तालिबान, मुकाबले के लिए नॉर्दन अलायंस 2.0 पूरी तरह है तैयार

पंजशीर को पंजशेर भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है पांच शेरों की घाटी। काबुल के उत्तर में 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस घाटी के बीच पंजशीर नदी बहती है। हिंदकुश के पहाड़ भी इससे ज्यादा दूर नहीं।
तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। अब तालिबान अफगानिस्तान में शासन चलाने की तैयारी कर रहा है। तालिबान अफगानिस्तान के करीब-करीब सभी जिलों पर अपना शासन स्थापित कर चुका है। लेकिन अफगानिस्तान का मजबूत किला पंजशीर तालिबान के शिकंजे से अभी दूर है। काबुल से पंजशीर करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है। पंजशीर प्रांत अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से एक है। जिसके सात जिले में 512 गांव हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पंजशीर की जनसंख्या 1 लाख 73 हजार के करीब है। इसकी प्रांतीय राजधानी बजारक है। अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह यहीं पर मौजूद हैं।

सालेह पंजशीर से बना रहे तालिबान के खिलाफ रणनीति
अमरुल्ला सालेह यहीं से तालिबान के खिलाफ रणनीति बना रहे हैं। सालेह ने इसी प्रांत से खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है। सालेह ने पहले ही कहां था कि वो तालिबान के आगे झुकेंगे नहीं। अमरूल्ला सालेह ने ट्विटर पर यह घोषणा की। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान का संविधान उन्हें इसकी घोषणा करने की शक्ति देता है। उन्होंने ट्विटर कहा- "अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, राष्ट्रपति के इस्तीफे, उनके निधन, भागने या गैर-मौजूदगी में प्रथम उपराष्ट्रपति केयर टेकर राष्ट्रपति होंगे। अमरुल्ला सालेह का भारत के साथ कनेक्शन भी है। सालेह अफगानिस्तान की सेना के साथ वहां के इंटेलिजेंस के मुखिया रह चुके हैं। इन दिनों अमरूल्ला सालेह की कुछ तस्वीरें भी सामने आई जिसमें वे अहमद मसूद के साथ दिख रहे हैं। वो तालिबान विद्रोही लीडर अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। दावा किया जा रहा है कि अफगान फोर्स के सिपाही मसूद के बुलावे पर पंजशीर में जुट रहे हैं। जानकारी के मुताबिक सालेह अहमद मसूद की मदद लेकर तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
कभी नहीं जीत पाया तालिबान
पंजशीर को पंजशेर भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है पांच शेरों की घाटी। काबुल के उत्तर में 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस घाटी के बीच पंजशीर नदी बहती है। हिंदकुश के पहाड़ भी इससे ज्यादा दूर नहीं। पंजशीर एक अहम हाइवे भी है, जिससे हिंदकुश के दो पास का रास्ता निकलता है। पंजशीर में हजारा समुदाय के लोग भी रहते हैं जिन्हें चंगेज खान का वंशज समझा जाता है। इसके अलावा पंजशीर में नूरिस्तानी, पशई जैसे समुदायों के लोग भी रहते हैं। साल 1996 की बात है, अफगानिस्तान के सभी प्रांत तालिबान के कब्जे में आ चुके थे। अब उनकी नजर राजधानी काबुल पर थी। जिस पर कब्जे का मतलब सत्ता का एकाधिकार। जनवरी 1996 तक तालिबान काबुल को घेरकर बैठ चुका था। लेकिन अचानक एक दिन तालिबान के अड्डे में हड़कंप मचा क्योंकि एक व्यक्ति तालिबान के नेताओं से बातचीत करने पहुंचा था। दरवाजे पर उसे रोका गया लेकिन जब उसने अपना नाम बताया तो सभी हैरान रह गए। वो शख्स था अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार में रक्षा मंत्री अहमद शाह मसूद। सोवियत के साथ लड़ाई में मसूद मुजाहिद बनकर आया था। उनकी बहादुरी की कस्मे खाई जाती थी। कहते हैं कि सोवियत सेना नौ बार पंजशेर घाटी में घुसी लेकिन हर बार हार कर लौटना पड़ा। वही मसूद उन दिन बिना किसी सुरक्षा के अकेले तालिबान के गढ़ में पहुंच गए। मसूद ने कहा तुम लोग अफगानिस्तान में इस्लामिक शासन चाहते हो, मैं भी यही चाहता हूं। हम साथ मिलकर सरकार चला सकते हैं। ऐसी सरकार जो उदार और विदेश प्रभुत्व से परे हो। लेकिन ये सारी बातें तालिबानी नेता के सर के ऊपर से निकल गई। मसूद लौट आए। मसूद का मानना था कि अब दो ही रास्ते बचे हैं या तो तालिबान के आगे सिर झुका ले या फिर संघर्ष करते शहीद हो जाए। अहमद शाह मसूद ने दूसरा वाला रास्ता चुना। काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अहमद शाह मसूद अपने गढ़ पंजशेर चले गए और जहां से उन्होंने अपने विश्वासपात्रों के साथ नार्थन अलायंस का गठन किया। इस फ्रंट को ईरान, भारत, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की तरफ से समर्थन भी मिला था। जब तालिबान अपने पूरे शबाब पर था तब भी वो पंजशेर को नहीं जीत पाया।
पंजशीर में उत्तरी गठबंधन का झंडा भी लहरा रहा

अहमद शाह मसूद को 9/11 हमले के पहले अलकायदा और तालिबान ने साजिश रच कर मार दिया था। इसके बाद से यहां पर एंटी तालिबान फ्रंट तैयार किया जा रहा है। पंजशीर में उत्तरी गठबंधन का झंडा भी लहराता देखा गया है। उत्तरी गठबंधन एक मिलिट्री फ्रंट है जिसका गठन 1996 में हुआ था। तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले इस फ्रंट को ईरान, भारत, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की तरफ से समर्थन भी मिला था। 1996 से 2001 के बीच तालिबान इसी फ्रंट की वजह से पूरे अफगान पर कब्जा नहीं कर पाया था। पंजशीर के लोगों को युद्ध से डर नहीं लगता। अब हालात ऐसे हैं कि कभी भी हथियार उठाने पड़ सकते हैं।
अन्य न्यूज़












