Book Review। प्रकृति से मानवीय संबंधों को दर्शाता उम्दा सृजन

भूमिका लिखते हुए राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव लिखते हैं, "प्रकृति की दहलीज पर" की लघु कविताएं न केवल प्रकृति के सौंदर्य को दर्शाती हैं, बल्कि उसमें छिपी संवेदनशीलता, मानवीय संबंधों, और जीवन के गहन पहलुओं को भी उजागर करती हैं।
प्रकृति की दहलीज (लघु कविता संग्रह) प्रकृति के इंद्रधनुषी रंगों की लघु कविताओं का एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें प्रकृति प्रेम की बयार खुशनुमा बहती है और पाठक को आनंदित करते हुए प्रकृति से प्रेम करने का संदेश देती है । ये प्रकृति के प्रति मानवीय संबंधों को कविताओं में बखूबी उभरने में सफल रही हैं।
संग्रह की प्रथम कविता "चाँदनी" की गहराई देखिए जिसमें चांदनी और मानवीय संबंधों को कितने किस प्रकार प्रश्न उत्तर के रूप में कविता के माध्यम से कहते हुए चाँदनी कहती है तुमने रातभर छत पर रोकने की सोच भी कैसे (पृष्ठ १). ..........
रात चाँदनी नाराज़ हो / गई मुझ से / मनुहार कर हाल पूछा / थोड़ा इठलाई / थोड़ा इतराई फिर सारी बात बताई / रात भर चाँद को /अपने छत पर / रोक कर रख लेने की / आखिर सोची भी कैसे तुमने ।
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चांद और चाँदनी को ले कर "चाँद पर दाग", "चाँदनी रात में"', " चाँद को ताकती रही", "तेरी चांदनी", "आवारा चाँद", और "बारिश की बूंदें" जैसी सुंदर कविताओं का सृजन देखते ही बनता है।
छुपा लिया चाँद कविता में प्रेम और इंतजार का कितना हृदयस्पर्शी सृजन किया है ( पृष्ठ ९)..........
छुपा लिया है चाँद को/ अपने आँचल में/ छोटा सा एक पर्दा /बन गया है ओट में/ शिद्दत से तराशे /खुद को वो चाँदनी/ मिलना किस्मत में/ लिख दे खुद चाँद /आएगा शायद कल/ वो उसी की बाट में ।
"रेगिस्तान" में छोटे-बड़े, अमीर गरीब का अंतर नहीं करने, "रेगिस्तान के साथी" में ऊंट की महिमा, "पगडंडी" में रेगिस्तान में प्रेम की निशानियां छोड़ने के संदेश देते हुए "रेगिस्तान के फूल" में बीज और पानी की दो बूंदों से खूबसूरत बनाने की आशा के साथ लिखती हैं( पृष्ठ १२).......
कमजोर नहीं होते/ रेगिस्तान के मुकद्दर भी/ खिल ही जाते हैं / यहाँ फूल बिन उम्मीद / बिन बीज के ही /उसको चाहिए बस /थोड़ी-सी जमीन /चंद बूँद ख्वाहिश/ और रेगिस्तान को/खूबसूरत बनाने की चाह ।
मानव जीवन में पानी और पर्यावरण का महत्व बताती तथा पर्यावरणीय समस्याओं को उठती इनकी कविताएं "पानी का रंग", पानी का मूल्य", गर्म हवा", "पत्ते", "वो पेड़", "फलों से लड़े पेड़", संदेशपरक कविताएं हैं। "मजबूत पेड़" कविता में वृक्ष काटने की पीड़ा को पेड़ के माध्यम से ही कितनी सुंदर अभिव्यक्ति दी है (पृष्ठ १९)...........
दर्द से कराह उठा/वो मजबूत पेड़ /हर मुश्किल सह/ कर भी जो न सह सका/ गैरों के साथ मिल / अपनो ने जो/ दगा किया/ चोट दर चोट/ जो दिए ज़ख्म /और फिर लहूलुहान किया।
"इंसान और समुद्र" कविता में समुद्र से मानवीय संबंधों की कितनी सुंदर अभिव्यंजना की गई है (पृष्ठ २३)...........
सताने पर आए/ तो समुद्र को भी /समेट देता है /न सोचता आगे की /यह इंसान जहर/ घोलता है/ सब्र टूटता है/यह वो भी बता देता/ एक लहर में बस /अपने सब समझा देता है ।
इसी ही भावप्रधान कविताएं हैं "समुद्र", "बरसता बादल", और "समुद्र तट" हैं। "नदी" कविता में इंगित किया गया है कि प्रेम कितनी कठिन डगर है, त्याग और समर्पण ही प्रेम का नाम है (पृष्ठ ३६)............
एक समुद्र को आलिंगन /करने के लिए/ कितना दुर्गम रास्ता /तय करती है नदी /न दिन देखती /न रात को आराम/ पर्वतों से छलांग मारती /मैदानों में बेतहाशा दौड़ती /बस ढूंढती रहती /पता अपने प्रियतम का।
ऐसे ही प्रकृति से प्रेम और उसके मानवीयकरण पर सुंदर रचना "बादल रो पड़ता है" की बानगी देखिए (पृष्ठ ३७).......
अपनी प्रेयसी-सा/ पकड़ दामन हवा का/ बादल चल देते हैं/ जहाँ वो ले चलती है/ जिधर वो धकेल देती है/ मन भर खेल/ रुक कर/ दिखा देती है आँखें /और बस बेचारा/ बादल रो पड़ता है।
"पुरानी पगडंडियाँ गांव के बदलते परिवेश को रेखांकित करती हैं (पृष्ठ ४५ )........
पुरानी पगडंडियों पर/ नए रास्ते बन गए/ सारे गाँव /अब नई हवा में/ रंग गए/ अब नहीं होता/ सांझा चूल्हा /सारे बर्तन बँट गए /अब नहीं गीत गाती महिलाएं /सारे कंगूरे बहरे हो गए ।
"सुना है" कविता में सांझ को माध्यम बना कर बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा के भावों को बेहद सुंदर अभिव्यक्ति दे कर एक उभरती सामाजिक समस्या की ओर सचेत किया है (पृष्ठ ४७)....
सुना है, साँझ मिला देती है/ बिछड़े हुए गाय बछड़े को /छोटे कोमल पक्षी/ कमाने गए आदमी को /बस मिला नहीं पाती /बिछड़े अपनेपन/ खो चुके बचपन को /माँ-बाप को भुला बैठे /पैसे के पीछे भागते बेटे को ।
"भाषा" कविता कहती है बेजान चीजों की भी अपनी भाषा होती है, देखने के लिए दृष्टि चाहिए। पगडंडियों की भाषा को गहरे अर्थ देते हुए प्रेमी के इंतजार से जोड़ा है, वह अपने आप में सृजन की गहराई को बताने के लिए पर्याप्त है।( पृष्ठ ५९ ).............
होती हैं एक भाषा /पगडंडियों की भी /कभी कुछ बोलती नहीं /और कभी चीखती है /ले आती है कभी /पास अपनों को /और कभी आँखें /बिछाए रहती है लौट /आने के इंतजार में ।
"मेरी छत पर" पर कविता काव्यगत सौंदर्य की अद्भुत बानगी है ( पृष्ठ ६१ )............
बादल का वो टुकड़ा /मेरी छत पर /रोज़ आता तो है पर/ भूल जाता है /शायद बरसना/ पता नहीं /रोकती हैं उसे हवा/ या वो मेरे / बहते सपनों से /खौफ़ खा जाता है ।
"गुरूर" नामक कविता प्रसिद्ध रचनाकार माखन लाल चतुर्वेदी की उस कविता की याद दिलाती है जिसमें उन्होंने लिखा था, चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ। चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥ चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥ गुरूर कविता भी फूल की ऐसी ही अभिलाषा पर आधारित है (पृष्ठ ६७).......
फूल को नहीं गुरूर /न किया घमंड़ /अपने रंग का कभी /अपनी खुशबू से/ वो पहचान बनाता है /कोई प्यार से दे तो /वो महबूब के/ कदमों में /बिन आह के /भी बिछ जाता है ।
संग्रह की अंतिम कविता "आग का सहारा" भी मानवीय संवेदनाओं तक पहुंचती है (पृष्ठ ९०)..............
आग को भी/ करते हैं पसंद लोग/ भरी सर्द रातों में /यही होता है सहारा/ रात-रात भर काम करते /काम से लौटते थके मांदे/ बेघर/बेबस लोगों का/ वही घर की बैठक में बैठे/ सिकुड़े बुजुर्गों का।
प्रकृति को केंद्र बिंदु बना कर लिखी गई इस कृति पर दो शब्द में लेखिका रेणु सिंह 'राधे' लिखती हैं विश्वास है कि प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता यह काव्य संग्रह पाठकों को पसंद आयेगा। प्रकृति पर कविताएं लिखने की प्रेरणा देने वाले साहित्यकार प्रो. रूप देवगुणा का आभार व्यक्त करती हैं। उनके इस दूसरे काव्य संग्रह की उन्होंने अपने माता-पिता को समर्पित किया है।
भूमिका लिखते हुए राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव लिखते हैं, "प्रकृति की दहलीज पर" की लघु कविताएं न केवल प्रकृति के सौंदर्य को दर्शाती हैं, बल्कि उसमें छिपी संवेदनशीलता, मानवीय संबंधों, और जीवन के गहन पहलुओं को भी उजागर करती हैं। संग्रह में समाहित 90 कविताएं, जिनमें बादल, पगडंडी, सूरज, चाँद, चाँदनी, और समुद्र जैसे विषयों पर रचनाएं हैं, उनकी रचनात्मकता और प्रकृति के प्रति गहरी समझ का प्रमाण हैं।" शुभकामना संदेश में सेवानिवृत प्रधानाचार्य प्रार्थना भारती लिखती हैं, "लेखिका की कविताओं में जीवन की गहराइयों को उजागर करने की अद्वितीय क्षमता है जो पाठकों को सोचने और महसूस करने के लिए प्रेरित करती है। "गरिमा राजेश गौतम 'गर्विता' अपने शुभकामना संदेश में लिखती हैं, "कविताओं के भाव बहुत ऊंचे हैं, पाठक स्वयं रचनाओं को पढ़ कर उनसे जुड़ा महसूस करते हैं।" कविताओं की भाषा शैली सहज, सरल है और आवरण पृष्ठ शीर्षक के अनुरूप बन पड़ा है।
पुस्तक: प्रकृति की दहलीज पर
लेखक: रेणु सिंह 'राधे'
प्रकाशक: शॉपिजन.इन, अहमदाबाद
प्रथम प्रकाशन: जनवरी 2025
प्रकार: पेपरबैक
पृष्ठ: 99
मूल्य: 310
- समीक्षक
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
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