चुनावी ख्वाब (कविता)

चुनाव के दौरान सभी दलों के नेता जनता के बीच बड़े-बड़े वादे करते हैं। लेकिन अक्सर उनके वादों और हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर होता है। चुनाव के दौरान जनता और नेता क्या सोचते हैं इस पर कवि ने बड़ी खूबसूरती से अपनी बात रखी है।
चुनावों में राजनेता नये-नये ख्वाब बुनते हैं,
देश व समाज के लिए सपने नये चुनते हैं,
देकर आश्वासन ख्वाबों को पूरा करने का,
आम जन की आशा व उम्मीद की किरण बनते है।
जगाकर पल-पल देशभक्ति का जज्बा,
लोगों में जोश भरने का काम करते हैं,
देश के लिए गोली खाने की बात करके,
सीने पर गोली खाने वालों की फौज तैयार करते हैं।
गजब होता है जब करोड़ों लूटने वाले,
जनता से ईमानदारी की बात करते हैं,
जनता के सामने मंच पर खड़े होकर,
गर्व से भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं।
शरमा जाते हैं गिरगिट भी उस वक्त दोस्तों,
जब देश व समाज को जोड़ने को लेकर,
सार्वजनिक मंचों से राजनेता लंबी-चौड़ी,
एकता अखंडता की बात जनता से करते है।
विचार करों आखिर क्यों हम लोग हर चुनावों में,
जुमलेबाजी व सपनों के जाल में फंसकर,
ईमानदार प्रत्याशी को चुनावों में हराकर,
जनता का मांस नोचने वाले नये-नये गिद्धों को चुनते हैं।।
- दीपक कुमार त्यागी
स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार, रचनाकार व राजनीतिक विश्लेषक
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