तकनीक की जय हो! (व्यंग्य)

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गुप्ता जी वैज्ञानिक नहीं थे, लेकिन उन्होंने एक नई मशीन बनाने की ठानी। उन्होंने अपने पड़ोसी वर्मा जी की मदद ली, जो इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा किए हुए थे और कभी-कभी घर की ट्यूब लाइट ठीक करने में भी असफल रहते थे।

गुप्ता जी को एक क्रांतिकारी विचार आया। दुनिया तेज़ी से बदल रही थी, लेकिन वे महसूस कर रहे थे कि इंसान की नैतिकता उतनी ही तेज़ी से ढलान पर है। उन्होंने सोचा, "जब लोग सच बोलकर शर्मिंदा होते हैं और झूठ बोलकर गर्व महसूस करते हैं, तो क्यों न एक ऐसी मशीन बनाई जाए जो केवल झूठ ही पकड़ सके?"

गुप्ता जी वैज्ञानिक नहीं थे, लेकिन उन्होंने एक नई मशीन बनाने की ठानी। उन्होंने अपने पड़ोसी वर्मा जी की मदद ली, जो इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा किए हुए थे और कभी-कभी घर की ट्यूब लाइट ठीक करने में भी असफल रहते थे। दोनों ने मिलकर "सत्य-परीक्षक यंत्र" नामक एक यंत्र तैयार किया, जो बोलने वाले के शब्दों को पकड़कर यह तय करता कि वह झूठ बोल रहा है या सच।

पहला परीक्षण गुप्ता जी ने अपनी पत्नी पर किया। उन्होंने पूछा, "तुम मुझसे कितना प्यार करती हो?"

मशीन से तुरंत आवाज़ आई—"झूठ! झूठ! झूठ!"

गुप्ता जी हतप्रभ रह गए। पत्नी ने घूरकर देखा, जैसे कह रही हो, "अब सोफे पर सोने की तैयारी कर लो।" लेकिन वे विज्ञान की महान उपलब्धि के नशे में थे, इसलिए उन्होंने परवाह नहीं की।

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अब यह मशीन समाज में सुधार लाने के लिए इस्तेमाल होनी थी। सबसे पहला प्रयोग हुआ शहर के सबसे ईमानदार नेता पर। मंच पर खड़े होकर नेता जी बोले, "हम जनता के सेवक हैं, हमने हमेशा देशहित में काम किया है।"

मशीन चीखने लगी—"झूठ! झूठ! घोर झूठ!"

सभा में सन्नाटा छा गया। भीड़ को पहली बार लगा कि शायद यह मशीन उनकी ज़िंदगी बर्बाद कर सकती है। नेता जी ने तुरंत इसे राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया और गुप्ता जी की गिरफ्तारी की माँग करने लगे।

अब अगला परीक्षण सरकारी दफ्तर में होना था। गुप्ता जी और वर्मा जी पहुंचे और एक बाबू से बोले, "सर, यह सत्य-परीक्षक मशीन आपके विभाग के लिए बनाई गई है। यह रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखेगी।"

बाबू जी ने पहले हँसी उड़ाई, फिर ग़ुस्से से बोले, "हमारे ऑफिस में सब ईमानदारी से काम करते हैं।"

मशीन तुरंत बोल पड़ी—"झूठ! घोटाला! रिश्वत!"

बाबू जी का चेहरा ऐसा हो गया जैसे उन्होंने एक साथ चार नींबू चूस लिए हों। उन्होंने घूरकर देखा और तुरंत चपरासी को बुलाया, "इन दोनों को बाहर निकालो और मशीन को ज़ब्त कर लो।" गुप्ता जी को समझ आ गया कि मशीन के लिए यहाँ कोई भविष्य नहीं है।

अब यह मशीन कोर्ट में ले जाई गई, जहाँ न्यायाधीश महोदय एक जटिल मामले की सुनवाई कर रहे थे। वकील साहब बोले, "मेरा मुवक्किल निर्दोष है, उसने कुछ नहीं किया।"

मशीन फिर गरजी—"झूठ! झूठ! सबूत मिटाए गए हैं!"

कोर्ट में हंगामा मच गया। जज साहब को पहली बार एहसास हुआ कि इस मशीन का अस्तित्व ही उनकी कुर्सी के लिए ख़तरा है। उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि यह मशीन संविधान-विरोधी है और इसका इस्तेमाल अवैध घोषित किया जाए।

अब गुप्ता जी को समझ में आ गया कि सत्य को साबित करना इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम है। मशीन को बेचने का कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने इसे अपने घर में रख लिया। लेकिन दिक्कत यह हुई कि अब वे अपने घर में भी झूठ नहीं बोल सकते थे।

एक दिन पत्नी ने पूछा, "बोलो, मेरी बनाई सब्ज़ी कैसी लगी?"

गुप्ता जी ने डरते-डरते कहा, "बहुत स्वादिष्ट है।"

मशीन चिल्लाई—"झूठ! झूठ! झूठ!"

अब पत्नी ने बेलन उठाया और गुप्ता जी को मारने दौड़ी। वर्मा जी ने चुपचाप मशीन उठाई और बालकनी से नीचे फेंक दी। मशीन धड़ाम से गिरी और टूट गई। गुप्ता जी राहत की साँस लेते हुए बोले, "तकनीक की जय हो! अब दुनिया में फिर से झूठ का राज क़ायम रहेगा।"

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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