शिक्षक जब हमारे कान पकड़ते थे (कविता)
युवा कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से शिक्षक दिवस पर प्रेषित यह कविता उन दिनों को दर्शाती है जब छात्र और शिक्षक के बीच बड़ा सहज सा रिश्ता हुआ करता था लेकिन आज ऐसा नहीं दिखता।
युवा कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से शिक्षक दिवस पर प्रेषित यह कविता उन दिनों को दर्शाती है जब छात्र और शिक्षक के बीच बड़ा सहज सा रिश्ता हुआ करता था लेकिन आज ऐसा नहीं दिखता।
शिक्षक और शिक्षा के सम्मान की बहस,
आज जाने कहां खो गयी है
शिक्षक का सम्मान और शिक्षा से समाज का उत्थान,
शिक्षक का वो कान पकड़ना,
आंखों से ही डराना,
बच्चों के घर शिकायत भेजना,
फिर दादी, दादा का स्कूल पहुंच जाना
और फिर शिक्षक को ही डांट लगाना,
फिर शिक्षक द्वारा हम सभी को समझाना,
जाने कहां गईं ये छोटी छोटी प्यारी बातें
जिनमें ना कोई मनमुटाव, ना गुस्सा, ना था ताव,
किसी भी परिस्थिति में
बस शिक्षक के सम्मान में होते थे
हमारे हर हाव भाव,
अब तो शिक्षक का विद्यार्थी को
प्यार भरी डाँट भी
विवाद का विषय बन जाती है,
शायद अब हम शिक्षा का महत्व
और शिक्षक का दायित्व ही खोते जा रहे,
शिक्षक हमेशा से भगवान से ऊपर है
और शिक्षा हमारा जीवन,
शिक्षा से ही बना मन, शिक्षा से जन-जन,
शिक्षित हो स्वतंत्र हो,
शिक्षा ही है सबसे बड़ा धन।
-प्रतिभा तिवारी
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