ओ मेरी कोरोना प्रिया ! (व्यंग्य)
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम नाक में दम हो !!! मुझे करती बेचैन हो! तुम ही दहशत हो मेरी…… तुम ही तो नफरत हो मेरी ! तुम हो मौत का फरमान मेरा! तुमसे छुड़ाना पिंड है अरमान मेरा!!
ओ मेरी कोरोना प्रिया! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…. कैसे बताऊँ !!! तुम मेरे सपनों की करीना, कैटरीना हो! जहाँ देखो वहाँ तुम ही तुम हो! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें तुम सिलेंडर में ऑक्सीजन का गीत हो, मुँह पर लगाए मास्क का संगीत हो! तुम रेमडेसिविर की जिंदगी, तुम पारासिटमॉल की बन्दगी ! तुम काढ़ा, तुम एंबुलेंस का भाड़ा! तुम सैनिटाइजर, तुम टॉर्चराइजर हो ! तुम कोवैक्सिन हो, कोविशील्ड हो! आँखों में तुम, यादों में तुम! साँसों में तुम, आहों में तुम! नींदों में तुम, ख्वाबों में तुम! तुम हो मेरी हर बात में… तुम हो मेरे दिन-रात में! तुम सुबह में तुम शाम में! तुम सोच में तुम काम में! मेरे लिये घूमना भी तुम! मेरे लिये बैठना भी तुम! मेरे लिये लॉकडाउन भी तुम! मेरे लिये लॉकअप भी तुम!..और डरकर सहम जाना भी तुम !!!
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जाऊँ कहीं देखूँ कहीं…तुम हो वहाँ…तुम हो वहीं! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…….. तुम बिन अस्पताल का कोई वार्ड नहीं !!! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!! ये जो तुम्हारा रूप है…धतूरे का प्रतिरूप है ! खूनी जुबान से तरशा है ये बदन …बहती है इसमें मौत की अगन ! ये वेरिएंट की मस्तियाँ …. तुमको मेरी गल्तियों से मिली ! मेरी बेवकूफियों से मिली ! तेरे होठों पर कइयों का लहू….. तेरी आखों में मौत का अंबार देखूँ ! चेहरे में सिमटी कइयों की लाशें….. जलाती कहीं है, गड़ाती कहीं हैं और बहाती कहीं है! कांटों के जैसा अंग है…खून की लाली जैसा रंग है ! धूर्त नैताओं की जैसी चाल है… न कोई शर्म है ..न कोई मलाल है !!! ये गिरगिट की रंगीनियाँ…… पल-पल बदलती मौतों की गिनतियाँ ! है नाकामयाबी की सच्चाइयाँ…. चारों तरफ हैं मौत की परछाइयाँ !!! ये नगरियाँ हैं खौफ़ की…..ये डगरियाँ हैं मौत की.....कैसे बताऊँ मैं तुम्हें..हालत चमन – ए – मौत की !!!
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कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम नाक में दम हो !!! मुझे करती बेचैन हो! तुम ही दहशत हो मेरी…… तुम ही तो नफरत हो मेरी ! तुम हो मौत का फरमान मेरा! तुमसे छुड़ाना पिंड है अरमान मेरा!! तुम ही मेरी बदकिस्मती हो! तुम जो जाओ है खुशकिस्मती मेरी!! तुम ही पहला डोज़ हो…. तुम ही दूसरा डोज़ हो! एक-एक डोज़ के लिए, लोग मर रहे हर रोज़ हैं! यूँ ध्यान में मेरे हो तुम..जैसे मुझे घेरे हो तुम! पूरब में तुम, पश्चिम में तुम!!!….उत्तर में तुम, दक्षिण में तुम !!! सारे मेरे जीवन में तुम! हर कण में तुम…हर क्षण में तुम !!! मेरे लिये पिंड भी तुम…. मेरे लिए संकट भी तुम! मौत का सागर भी तुम..मौत का साहिल भी तुम! मैं बचता बस तुमसे हूँ….मैं सोचता बस तुमको हूँ! चैनलों, सोशल मीडिया में… जहाँ देखो वहाँ बस तुम ही तुम हो! तुम मेरी नाकामयाबी की पहचान हो…!!! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…. आदमखोर हो तुम मेरे लिये! मेरे लिये शैतान हो !!! कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
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