बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिन्दी सीख रही हैं और हम अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं

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देश बदल रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बड़े-बड़े अधिकारी भी अब हिन्दी सीख रहे हैं। उन्हें मालूम है कि भारत एक बड़ा बाजार है और अगर यहाँ टिके रहना है तो यहाँ की भाषा सीखकर ही आगे बढ़ सकते हैं।

हर वर्ष 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाया जाता है। मातृभाषा होने के साथ-साथ यह देश की ज्यादातर आबादी की बोल-चाल की भाषा भी है। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 65 करोड़ लोग हिन्दी भाषी हैं और विश्व भर में हिन्दी जानने वालों की तादाद 5 करोड़ से अधिक है। यही कारण है कि हिन्दी का बाजार लगातार बढ़ता जा रहा है। आज इलैक्ट्रॉनिक चैनलों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में हिन्दी का दबदबा साफ नजर आता है।

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ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के आंकड़ों के अनुसार हिन्दी भाषी अखबारों और पत्रिकाओं की प्रसार संख्या सर्वाधिक है। डिजीटलीकरण के युग में अनेक वेब पोर्टल भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज लगभग सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के डिजीटल संस्करण उपलब्ध हैं और पाठक देश-विदेश के किसी भी कोने में बैठकर अपनी पसंद के विषय या समाचार पढ़ सकता है।

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इंटरनेट युग में हिन्दी का तेजी से विकास हुआ है और भारत के अलावा विश्व भर के 40 से अधिक देशों में 600 से अधिक विद्यालयों/महाविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई और सिखाई जाती है लेकिन यदि दक्षिण भारत की बात करें तो राजनीतिक कारणों से यहाँ हिन्दी का लगातार विरोध किया जाता रहा है जबकि वहाँ की जनता को वास्तविकता समझनी चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि हिन्दी का विरोध करके वो देश की लगभग 65 करोड़ आबादी से अपने आपको अलग-थलग कर रहे हैं। हिन्दी आज विश्व स्तरीय भाषा बनती जा रही है और यही कारण है कि हिन्दी के पक्ष में एक बड़ा वर्ग और बाजार खड़ा हुआ है। हिन्दी के प्रति लेखकों प्रकाशकों और पाठकों का झुकाव निरन्तर बढ़ रहा है और यह हिन्दीभाषी वर्ग के लिए गर्व की बात है। हिन्दी सिर्फ भारत में ही नहीं बोली जाती बल्कि विदेशों- गुयाना, सूरीनाम, त्रिनीनाद, फिजी, मॉरिशस, दक्षिण अफ़्रीका और सिंगापुर में भी यह अधिकांश लोगों की बोलचाल का भाषा है। जर्मन के स्कूलों में तो हिन्दी पढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय ने जर्मन सरकार से समझौता किया है और वहाँ पर जर्मन हिन्दी रेडियो सेवा संचालित है।

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सन 1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का सुझाव दिया था। गांधी जी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में दर्शाया गया है कि संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था इसलिए हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। हिन्दी को जब राजभाषा के रूप में चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और तब अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दिया गया है।

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सूचना तकनीक की मदद से अब हिन्दी में लिखना और भी आसान हो गया है। मोबाइल से लेकर कंप्यूटर तक में हिन्दी प्रयोग करने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। हिन्दी के व्यापक प्रसार को देखते हुए कई सोशल साइट्स चलाने वाली कंपनियों ने अपनी वेबसाइट पर हिन्दी अनुवाद और हिन्दी टाइपिंग की सुविधा भी दी है, जिससे आप अपनी बात अपनी भाषा में लिखकर बता सकते हैं। हिन्दी में काम करने वालों के अनुसार हिन्दी में अपनी बात बहुत सहजता से प्रमुखता से रखी जा सकती है, क्योंकि इसे कहना और समझना सरल है। देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने आज हिन्दी को लेकर अनेकों सॉफ्टवेयर लॉन्च किए हैं, जिन्हें प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है। आज मोबाइल और इंटरनेट के युग में लोगों को अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी में काम करना लुभा रहा है।

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आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उत्पादों के विज्ञापनों में ज्यादातर हिन्दी नजर आती है। भारत विश्व के लिए एक मुख्य बाजार है तथा यह बाजार हिन्दी भाषियों से प्रभावित है। यहाँ पैसा है। अगर पैसा प्राप्त करना है तो यहाँ की भाषा में बात करनी होगी, तभी ग्राहकों को आकर्षित किया जा सकेगा। लगभग सभी व्यापारी यह काम करते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बड़े-बड़े अधिकारी भी अब हिन्दी सीख रहे हैं। उन्हें मालूम है कि भारत एक बड़ा बाजार है और अगर यहाँ टिके रहना है तो यहाँ की भाषा सीखकर ही आगे बढ़ सकते हैं।

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हिन्दी मीडिया की भाषा बनती जा रही है। विशुद्ध रूप से अंग्रेजी वाले चैनलों को हिन्दी में इंटरव्यू करते देखा जा सकता है, भले ही वे बाद में उसका रूपांतरण करते हैं। भारत की प्रमुख भाषा हिन्दी है और हिन्दी के पढ़े बिना कोई यहाँ स्थायी रूप से नहीं रह सकता। बी.बी.सी., वॉयस ऑफ अमेरिका, रेडियो पेइचिंग आदि ने हिन्दी में प्रसारण शुरू किये हैं। इकॉनामिक टाइम्स तथा बिजनेस स्टैंडर्ड, पायनियर जैसे अंग्रेजी समाचार पत्रों ने हिन्दी में प्रकाशन प्रारम्भ किये हैं। इन्हें अब आभास हो चुका है कि यदि व्यापक पहुंच बनानी है तो हिन्दी से जुड़ना होगा। बड़े-बड़े समाचार पत्र घराने तो वर्षों से हिन्दी अखबार चला ही रहे हैं मसलन हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप का हिन्दुस्तान, टाइम्स ऑफ इंडिया का नवभारत टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस का जनसत्ता पहले ही बाजार में जमे हुए हैं लेकिन दैनिक जागरण और भास्कर तो हिन्दी के दम पर टिके हैं और आज प्रसार के मामले एक और दो नम्बर की पोजीशन में हैं।

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हिन्दी मीडिया और हिन्दी के विकास में इंटरनेट महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सामुदायिक रेडियो की भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है। आज भारत में 200 से अधिक सामुदायिक रेडियो चल रहे हैं जिनमें ज्यादातर हिन्दीभाषी हैं। इनमें स्थानीय भाषाओं/बोलियों का मिश्रण होता है लेकिन पढ़ने-लिखने की भाषा हिन्दी ही है। हरियाणा के रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात को ही लें तो यह शिक्षा के साथ-साथ हिन्दी का प्रसार भी कर रहा है और अब नई तकनीक से लैस रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात मोबाइल ऐप पर कहीं भी कभी भी इंटरनेट पर सुना जा सकता है। ऐसा सिर्फ एक रेडियो या टीवी चैनल या अखबार ने किया हो, ऐसा नहीं है। आज ज्यादातर टीवी चैनल, अखबार और रेडियो के मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं जिन्हें आसानी से इंटरनेट के जरिए कहीं भी और कभी भी देखा जा सकता है और इससे हिन्दी विकसित भारत की सर्वव्यापक भाषा बनती जा रही है।

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हिन्दी फिल्में तो दशकों से दर्शकों को प्रभावित कर रही हैं। हिन्दी का बाजार आज विदेशी अभिनेत्रियों को भी हिन्दी सीखने पर विवश कर रहा है और हिन्दी की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज हिन्दी फिल्में 50 से अधिक देशों में देखी जाती हैं। हिन्दी में विज्ञापन काफी लोकप्रिय हुए हैं। 'यह दिल मांगे मोर', 'ठंडा मतलब कोकाकोला', ऐसे हजारों विज्ञापनों को काफी लोकप्रियता मिली है। पहले यह धारणा थी कि हिन्दी लेखकों को पैसा नहीं मिलता लेकिन अब यह धारणा भी टूट रही है। हाल के वर्षों में हिन्दी में बेहतर किताबें प्रकाशित हुई हैं और नए लेखक अच्छा पैसा कमा रहे हैं। हाल के दिनों में यह खबर आई है कि एक प्रकाशक ने लेखक रत्नेश्वर सिंह को 1.75 करोड़ में अनुबंधित किया है तथा एक अन्य लेखक विजय शर्मा के पास भी इस प्रकार के प्रस्ताव हैं। आज हालत यह है कि ज्यादातर किताबों के हिन्दी अनुवाद बाजार में आ चुके हैं और यह हूबहू नहीं हैं बल्कि दूसरे साथी लेखकों की मदद से इन्हें हिन्दी शैली में ढाला गया है और अंग्रेजी से ज्यादा हिन्दी में इनकी बिक्री हो रही है और लेखकों को अच्छी खासी रायल्टी मिल रही है। इन लेखकों को भी हिन्दी की बढ़ती ताकत का अहसास हो गया है। 

विश्व के 180 देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। यही कारण है कि विदेशों में रह रहे भारतीय अपने बच्चों को हिन्दी अन्य भाषाओं के साथ हिन्दी भी पढ़ा रहे हैं। अमेरिका में हिन्दी सीखने के लिये बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है और अब वह दिन दूर नहीं है जब संयुक्त राष्ट्र में भी हिन्दी का डंका बजने लगेगा।

-सोनिया चोपड़ा

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