नो पेंशन...ऑन्ली डिप्रेशन (व्यंग्य)

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Prabhasakshi

सड़क पर एक बड़ी सी तख्ती लगा रखी थी। जिस पर लिखा था– ‘अपना डिप्रेशन सुनाइए और दस रुपए ले जाइए।’ पहले तो लोगों को गोबर गणेश बेवकूफ लगा। लेकिन बाद में पता चला यह तो एक नायाब धंधा है।

आज जिसे देखो उस पर डिप्रेशन का भूत सवार है। आज हर घर में कोई न कोई डिप्रेशन का शिकार मिल जाएगा। इस डिप्रेशन से अनभिज्ञ हमारे पड़ोसी गोबर गणेश ने सबकी देखा-देखी इंजीनियरिंग में भर्ती ले ली। गिरते-पड़ते जैसे-तैसे बड़ी मुश्किल से पास हुए। रजिस्टर में उनका नाम जो भी हो फैकल्टी तो उन्हें ‘बैकलॉग कुमार’ कहकर पुकारते थे। नाम के माफिक बैकलॉग रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पढ़ाई पूरी करने के बाद लगे नौकरी खोजने। नौकरी थी कि आबादी की बढ़ती संख्या के अनुरूप एक अनार लाख बीमार कहावत को चरितार्थ कर रही थी। सो उन्हें नौकरी मिलने से रही। नौकरी का इरादा छोड़ व्यापार करने की ठानी। व्यापार करना इतना आसान काम थोड़े न था। लागत लगती है लागत! जैसे-तैसे चंद हजार रुपए जुटाए और बैठ गए सड़क पर। 

सड़क पर एक बड़ी सी तख्ती लगा रखी थी। जिस पर लिखा था– ‘अपना डिप्रेशन सुनाइए और दस रुपए ले जाइए।’ पहले तो लोगों को गोबर गणेश बेवकूफ लगा। लेकिन बाद में पता चला यह तो एक नायाब धंधा है। जात-पात, ऊँच-नीच, लिंग, धर्म, भाषा का भेद भुलाकर सभी अपने-अपने डिप्रेशन के किस्से सुनाने लगे। यह दृश्य देखकर यकीन हो गया कि दुनिया सुनाने वालों से भरी पड़ी है और सुनने वाले विलुप्त होते प्राणियों की तरह धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। डिप्रेशन के शिकार कोई पैसे से परेशान है तो कोई बिना पैसे के। कोई मोटापे से तो कोई दुबलेपन से। कोई पत्नी से त्रस्त तो कोई कुंवारेपन से। कोई रात से परेशान है तो कोई दिन से। कोई हँसने से परेशान है तो कोई रोने से। कोई देखने से परेशान है तो कोई न दिखने से। कोई लड़ने से परेशान है तो कोई शांत रहने से। कोई पुरुषार्ष से परेशान है तो कोई नपुंसकता से। कोई अपने पुरुष होने से परेशान है तो कोई स्त्री होने से। कोई किसी के सुख से परेशान है तो कोई किसी के दुख से। कोई परीक्षा में 99 प्रतिशत भी लाकर परेशान है तो कोई फेल होकर। जहाँ देखो वहाँ सब परेशान हैं। डिप्रेशन का शिकार हैं।

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इस धंधे से गोबर गणेश का सड़क पर आना तय था। लेकिन जो पहले से ही सड़क पर हो वह और कितना सड़क पर आएगा। उल्टे वह चंद दिनों में धनवान बन गया। डिप्रेशन के किस्सो की बदौलत उसके पास 22 उपन्यास, 30 फिल्मी पटकथाएँ, सौ से अधिक गाने और अनगिनत स्टैंडअप कॉमेडी करने लायक चुटकुलों की भरमार हो गई। बॉलीवुड ने उससे पटकथाएँ, गाने खरीद लिए। उसे जमीन से आसमान पर पहुँचा दिया। बाकी बचे चुटकुले अपने साथ रखकर लोगों को हँसाने का काम कर रहा है।  

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार

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