भगवान शिव (कविता)
श्रावण मास की हर घड़ी एवं हर पल भगवान शिव को समर्पित एवं उनके प्रति आस्था एवं भक्ति व्यक्त करने का दुर्लभ एवं चमत्कारी अवसर है। कवि नवदीप श्रृंगी ने इस कविता में भगवान शंकर के विभिन्न रूपों को बहुत सुंदर ढंग से वर्णित किया है।
सावन का महीना शिव जी को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव-पार्वती की पूजा होती है। कवि ने इस कविता में भगवान शिव की महिमा को बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। सावन का महीना शंकर जी को बहुत प्रिय होता है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त श्रद्धा से सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रद्धा का यह महासावन भगवान शिव के प्रति समर्पित होकर ग्रंथियों को खोलने की सीख देता है।
तू ही शिव है तू ही शंकर, अजर अमर अविनाशी है,
महाकाल उज्जैन विराजे, विश्वनाथ तो काशी है।
तू ही संकट हर्ता है, और तू ही मंगल कर्ता है,
तू ही रचनाकार जहां का, तू ही प्रलय का कर्ता है।
तू ही महेश्वर तू ही पिनाकी, शशि शेखर भी तुम ही हो,
वामदेव हो विरुपाक्ष हो, विष्णु वल्लभ तुम ही हो।
हे शंभू हो शिवा प्रिय तुम, अंबिका नाथ कहाते हो,
कामदेव के शत्रु हो, तुम कामारि कहलाते हो।
तुम ही कपाली हो कृपानिधि, तुम ही तो गंगाधर हो,
बड़ी-बड़ी हां जटा रखे जो, तुम ही तो वो जटाधर हो।
तुम ही हो कैलाश के वासी, भस्मोद्धूलितविग्रह हो,
तुम ही सामप्रिय स्वरमयी तुम, सोमसूर्याग्निलोचन हो।
तुम ही जगत के गुरु हो स्वामी, भूत पति भी तुम ही हो,
पाशविमोचन महादेव हो, पशुपति भी तुम ही हो।
दक्ष के यज्ञ को नष्ट किया, और दक्षाध्वरहर कहलाए,
पूषा के जो दांत उखाड़े, पूषदंतभित कहलाए।
रुद्र भी तुम हो व्योमकेश तुम, मृत्युंजय भी तुम ही हो,
तुम ही सदाशिव वीरभद्र तुम, तुम ही गणों के स्वामी हो।
हे त्रिपुरारी पाप मिटाओ, भवसागर से पार करो,
इस धरती पर पाप बहुत है, तुम आकर उद्धार करो।
पापी सीमा लांघ रहा है, अब तो प्रभु तुम आ जाओ,
नेत्र तीसरा खोलो अपना, धरा से पाप मिटा जाओ।
हे दयानिधि हे कृपानिधि, तुम आकर न्याय दिला जाओ,
संताप हरो 'श्रृंगी' के तुम और भव से पार लगा जाओ।
नवदीप श्रृंगी
(कवि एवं साहित्यकार) कोटा, राजस्थान
अन्य न्यूज़