देखने का नजरिया (व्यंग्य)

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Prabhasakshi

पत्नी ने पलटवार करते हुए कहा– हाँ सही कहते हैं आप। लेकिन यह बोलने वाले पर निर्भर करता है कि वह सच्चा है या झूठा। झूठ की नींव पर खड़ी सच की गगनचुंबी इमारत भी पल में ढह सकती है। अच्छा! तो ऐसा मैंने क्या झूठ कह दिया जो तुम मुझसे झगड़ रही हो?

पति ने पत्नी को जोरदार चांटा लगाते हुए कहा कि पति-पत्नी के संबंध चार लोगों की बीच की गई शादी या फिर फोटो एल्बम में सजी तस्वीरों पर नहीं टिकती। अगर ऐसा ही होता तो पुराने जमाने में कोई शादी न करता। यह तो एक-दूसरे के विश्वास पर टिकती है। इसलिए बार-बार यह कहना बंद करो कि जब मैं तुम्हें चार लोगों के बीच बेइज्जत करूँगी तब पता चलेगा कि मैं क्या चीज़ हूँ। पति की इज्जत उतारने से भला तुम्हें कौनसा सुख मिलेगा? 

तुरंत पत्नी ने पलटवार करते हुए कहा– हाँ सही कहते हैं आप। लेकिन यह बोलने वाले पर निर्भर करता है कि वह सच्चा है या झूठा। झूठ की नींव पर खड़ी सच की गगनचुंबी इमारत भी पल में ढह सकती है। अच्छा! तो ऐसा मैंने क्या झूठ कह दिया जो तुम मुझसे झगड़ रही हो? यही न कि मैंने वाट्सप पर रानी रंग की साड़ी भेजी थी और तुम उसे गुलाबी समझ बैठी। सोचा कि शायद मैं ही गलत हूँ। तुम सही कह रही हो। इसलिए मैं इसे गुलाबी समझ बैठा। फोन का कैमरा फोटो ही ऐसा खींचता है कि वह तुम्हें कुछ का कुछ दिख गया। इसके लिए मुझे झूठा कहना कहाँ तक सही है? वैसे भी जब आदमी को भरपेट खाने को खाना, रहने को घर और पहनने के लिए महंगे-महंगे कपड़े मिलने लगे तो उसके पास ऐसे नुस्ख निकालने के सिवाय दूसरा काम ही क्या रह जाता है। हर छोटी-छोटी बातों पर नुस्ख निकालना और उसके बारे में घंटों मायके में शिकायत करना इसी का उदाहरण है।

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फिर उस दिन दाल में थोड़ा सा नमक क्या ज्यादा हो गया आप तो अपनी माँ की दाल याद करने लगे। ऐसा कौनसा मैंने जहर बना दिया था। जो आप अपनी माँ को याद करने लगे?

जब आदमी की सोच सो जाए तब एक बार के लिए उसे जगाया जा सकता है, लेकिन जो जानबूझकर तिल का पहाड़ में बनाने पर आमदा हो जाएँ, उनकी सोच को नहीं बदला जा सकता। मैंने माँ की दाल इसलिए याद की थी कि तुम इसी बहाने उनसे फोन पर बात कर लो। उनका भी मन करता है कि अपनी बहू से बात करे। मैं तो बात करता हूँ। लेकिन वह भी तुम्हें बहू से ज्यादा बेटी की तरह चाहती हैं। पत्नी कुछ कहती तभी पति का फोन बज उठा। भाभी ने फोन किया था। भाभी ने बताया कि मेरे किड्नी देने के बावजूद मैं तुम्हारे भैया को नहीं बचा सकी। इतना कहते-कहते वह बिफर गयीं....। 

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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