कठोर कानून का संकल्प (व्यंग्य)

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Prabhasakshi
संतोष उत्सुक । Oct 17 2025 6:01PM

सफल राजनीति के पैरोकार, अधिकृत व्यक्ति फरमाते हैं कि भ्रष्टाचारी कितनी भी पहुंचवाला क्यूं हो, उसे किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। उनकी इस बात से स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचारी लोगों की खासी पहुंच होती है और ऐसे लोग ईमानदारी से काम करते हैं।

हमारे देश में एक से एक सख्त मगर नरम कानून हैं। नरम की जगह लचीला शब्द भी प्रयोग किया जा सकता है। नरम कानून को अपनी जेब में रखने वाला होशियार, समझदार व्यक्ति, कानून का ढीला पेंच निकालकर, खुद को बचाने के लिए उसमें नया पेंच फंसा देता है। कानून उस पेंच को आत्मसात कर लेता है और तमाम काम सफलता से चलता रहता है।  

कानून निर्माता, पालक, रक्षक और भक्षक भी मानते हैं कि कानून सबके लिए एक जैसा नहीं है। जिन पर लागू किया जाना चाहिए, कानून उन्हीं पर लागू नहीं किया जा सकता। लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले, असामाजिक, गलत काम करने वाले अनेक चतुर लोग हैं जिनकी हरकतें साबित करती हैं कि कानून सख्त है मगर उदास है । 

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सफल राजनीति के पैरोकार, अधिकृत व्यक्ति फरमाते हैं कि भ्रष्टाचारी कितनी भी पहुंचवाला क्यूं हो, उसे किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। उनकी इस बात से स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचारी लोगों की खासी पहुंच होती है और ऐसे लोग ईमानदारी से काम करते हैं। असवैंधानिक, असामाजिक क्षेत्रों में निडर होकर सक्रिय रहते हैं। अपने प्रायोजन के मुताबिक जिसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, पहुंचाते हैं। व्यवस्था, समाज और कानून की कमियों का फायदा इत्मीनान से उठाते हैं।  

कुछ नासमझ लोगों का कहना है कि कानून किताब में बंद है। हमें लकड़ी, लोहे या कांटों जैसे सख्त दिखने वाले कानून की ज़रूरत है ताकि महसूस हो । ऐसा होना अभी तक मुश्किल साबित हुआ है। संजीदा लोग मानवीय ज़िम्मेदारी, नैतिक कर्तव्य मानकर, व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास कर जागरूकता फैलाते रहते हैं। कानून लागू करने वाले कड़क लोग कहते हैं कि कानून का पालन सख्ती से करवाया जा रहा है। बर्दाशत नहीं किया जाएगा, किसी भी सूरत में ढिलाई नहीं बरती जाएगी । मुकदमे दायर किए जा रहे हैं और जुर्माना भी वसूल किया जा रहा है। फर्क पड़ रहा है। शासन, प्रशासन और अनुशासन सब कुछ कर सकते हैं लेकिन कोई उनसे पूछे वास्तव में क्या क्या कर सकते हैं ।

मिसाल के तौर पर, पर्यावरण विश्वस्तरीय मुद्दा है राष्ट्रस्तरीय भी लेकिन स्थानीय नहीं। अनगिनत आयोजन, भाषण और पुरस्कार हैं। करोड़ों के विज्ञापन हैं। वृक्ष लगाना ज़रूरी नहीं है, सड़क चौड़ा करना ज़रूरी है। कानून बहुत ज़्यादा सख्त है लेकिन वृक्षों की जड़ों को खोखला करना आसान है । जड़ों के आसपास की मिटटी धीरे धीरे हटाना आसान है, कुछ समय बाद वृक्ष का सूखना प्राकृतिक है। ज़रा सी आंधी, बारिश में टूटकर गिरना संभव है। ज़िम्मेदार लोग ज़िम्मेदारी निभाते हुए कहेंगे,  कानूनन कार्रवाई होगी, किसी को नहीं बख्शेंगे। 

पर्यावरण से सम्बद्ध कानूनों को लागू किया जा रहा होता है दूसरी तरफ करोड़ों खर्च कर हरी दीवारें बनाने के लिए योजनाएं बनाई जा रही होती हैं। करोड़ों का फायदा होना ज़रूरी है। अनेक मामलों में, कानून में बचाव की सुरंग ढूंढकर, समझदारी से, मिलजुलकर, काम को अंजाम देना ही कानून लागू करना है । कानून के रक्षक सक्रिय हैं । एक बार नहीं, ज़्यादा सख्त कानून बनाने का संकल्प, बार बार लिया जाना सामाजिक कर्तव्य है। भविष्य में सख्त, कठोर, कड़े कानून बनाए जाएंगे। उनके उचित क्रियान्वयन के लिए, ईमानदार और कर्मठ लोग प्रयोगशालाओं में बनाए जा सकते हैं । इस मामले में नकली बुद्धि से असली सलाह ली जा सकती है, लेकिन गलती तो वह भी कर सकती है।   

- संतोष उत्सुक

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