रोबोट और शादी (व्यंग्य)

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विकास में गिरफ्तार समाज में पूजा पाठ बढ़ रहा है। इसी समाज से ऐसे संदेश आ रहे हैं कि शादी नामक संस्था अब और बिखर रही है। फ़िल्मी मनोरंजन की छोडो, आम आदमी जो फिल्म का हीरो नहीं आम इंसान हैं, शादी रचाने के लिए रोबोट बना रहा है।

दिलचस्प स्थितियां बनी हुई हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हो रहे चुनाव में जीतने की सब को पडी है लेकिन महत्त्वपूर्ण मुद्दे हरा दिए हैं। बेरोज़गारी ने सिर धुन लिया है कोई उसकी नहीं सुन रहा। सचाई अंधेरे के कोने में उदास पड़ी है। गरीबी के आंकड़ों में अंदरूनी झगड़ा चल रहा है वे कह रहे हैं हमें जानबूझकर कम किया जा रहा है। बताते हैं खूब अराजनीति हो रही है। हमारे पारम्परिक, धर्म भीरु समाज में ऐसी फिल्म पसंद की जा रही है जिसमें हीरो ऐसी ‘लड़की’ पर लट्टू हो जाता है जो वास्तव में खूबसूरत रोबोट है। वह उससे सेक्स भी करता है। उससे शादी भी करता है। पुरातन संस्कृति पूजक देश में, फ़िल्मकार नए मनोरंजक विषयों की पूजा कर रहे हैं।  

विकास में गिरफ्तार समाज में पूजा पाठ बढ़ रहा है। इसी समाज से ऐसे संदेश आ रहे हैं कि शादी नामक संस्था अब और बिखर रही है। फ़िल्मी मनोरंजन की छोडो, आम आदमी जो फिल्म का हीरो नहीं आम इंसान हैं, शादी रचाने के लिए रोबोट बना रहा है। लगता है लड़कियां अब शादी से इनकार ज़्यादा किया करेंगी। उन द्वारा विकसित रोबोट ऐसा नहीं लगता कि खूबसूरत हीरोइन की तरह हो। उनका कहना है कि उसके लिए जॉब तलाशना बड़ी बात नहीं मिल ही जाएगी वह बात दीगर है कि इंसानों के लिए भी नौकरियां कम हो रही हैं।

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खबर बताती है कि उनका मकसद पत्नी को होम मेकर बनाने की बजाए दूसरी तरह व्यस्त रखना है। फ़िलहाल वे अनुसंधान कर रहे हैं, अपनी भावी पत्नी यानी रोबोट को दाएं से बाएं मूवमेंट, पानी पीने के लिए बोतल गिलास तक पहुंचना, मेहमान आए तो बैठने के लिए कहना और हाथ उठाकर बाय बाय कहना समझा रहे हैं।  यह काम तो सामान्य भारतीय पत्नी बिना आदेश या बिना सिखाए कर देती है । बताते हैं  भावी पत्नी की प्रोग्रामिंग पर लाखों खर्च कर चुके हैं जो सिर्फ अंग्रेज़ी समझती है। अब उनका रोबोट हिंदी फिल्म की हीरोइन तो है नहीं जो सर्वगुण संपन्न हो। 

यह समझ से बाहर है कि पढ़े लिखे नौकरी कर रहे लोगों को क्या क्या हो रहा है। सुना है वे रोबोट से सगाई कर चुके हैं। अब पढ़े लिखे तकनीकी लोग ही शादी नामक संस्था को तकनीकी रूप से खत्म करने पर तुले हैं। दिलचस्प स्थिति है न हमने अपनी समृद्ध संस्कृति को कैसे कैसे चोले पहनाने शुरू कर दिए हैं।

- संतोष उत्सुक

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