नेताजी की अंतरात्मा (व्यंग्य)

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Prabhasakshi

आम लोगों की आत्माएं नेताजी की ख़ास आत्मा के प्रवचनों से प्रेरित हो जाती हैं कि दूसरों का भला करना मानवीय कर्तव्य है इसलिए वे हर बार गलत आदमी को चुन लेती हैं लेकिन पछताती नहीं। आत्मा पछताया नहीं करती।

चुनाव के मौसम में पता चलता है कि नेताओं में भी आत्मा होती है। उनकी आत्मा से निकली आवाजें बताती हैं कि आम आदमी के शरीर में फंसी सादी, सरल व सभ्य आत्मा की पुकार दबी दबी मरियल सी होती है और आम तौर पर अनसुनी की जाती है। नेताजी चुनाव के दिनों में तभी तो आम जनता से मिलने आते हैं और समझाते हैं कि आत्मा की आत्मा यानी अंतरात्मा, जिसकी मूक पुकार के आह्वान पर सिर्फ बड़े बड़े लोग ही अनूठे, असंभव काम कर सकते हैं। अनूठे, असंभव और बड़े काम करने के लिए उन्हें हर इंसान का वोट चाहिए। 

आत्मा के मंच पर की गई नेताजी की पुकार से समाज और राजनीति में नए गुल खिलने लगते हैं। दिलचस्प यह है कि उनकी आत्मिक पुकार का रंग नोटों व पदों के विभिन्न रंगों से बिलकुल मेल खाने वाला होता है। नेताजी बताते हैं कि अंतरात्मा की पुकार शरीर के बाह्य, ऊपर, नीचे, दाएं या बाएं हिस्से में बसने वाली लघु आत्माओं की पुकारों में सबसे सशक्त मानी जाती है। यह ख़ास समय बताकर आता है जब अंतरात्मा के ठीक अंदर, संभवत उसके भूखे हिस्से से पुकार उठती है। यह जानदार पुकार समय, जगह व शुभ मुहर्त देखकर ही आती है और कोई औपचारिकता वगैरा नहीं मानती क्यूंकि समय चुनाव का होता है।

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आम लोगों की आत्माएं नेताजी की ख़ास आत्मा के प्रवचनों से प्रेरित हो जाती हैं कि दूसरों का भला करना मानवीय कर्तव्य है इसलिए वे हर बार गलत आदमी को चुन लेती हैं लेकिन पछताती नहीं। आत्मा पछताया नहीं करती। वास्तव में बेचारी ज़्यादातर आत्माएं, इंसान की गलत करतूतों के कारण नरक में जाकर, निश्चित ही भांति भांति के कष्ट भोग रही होती हैं और इधर ज़्यादातर लोग यही कामना कर रहे होते हैं कि आत्मा को शांति मिले, स्वर्ग में आत्मा शांति से रहे। 

हमारे यहां आत्माओं को महान घोषित करने की परम्परा है। ख़ास बंदे आम बन्दों को झूठे ख़्वाब दिखा रहे होते हैं जबकि आत्मा इन तुच्छ विचारों से दूर शांत रहती है। छोटे छोटे स्वार्थों की गिरफ्त में फंसा आम आदमी, आत्मा को महंगी चीज़ समझता है जिसे नरक में नहीं स्वर्ग में ही रखा जाना चाहिए। आत्मा, नेताओं के नश्वर शरीर में भी कुलबुला रही होती है। वे उसकी सच्ची पुकार दबाए फिरते हैं और चुनाव में जीत गए तो पुकार सुनने और सुनाने की कोशिशें करते रहते हैं लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। आत्मा की पुकार सुनने के लिए हारना ज़रूरी होता है।

- संतोष उत्सुक

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