चौधरियों की दुनिया (व्यंग्य)

satire-chaudhariyon-kee-duniya
संतोष उत्सुक । Oct 17 2019 3:13PM

काफी गहन प्रशिक्षण के बाद इन अपने किस्म के चौधरी को समझ आता है कि वे जिन दूसरे अपने किस्म के चौधरी की बात कर रहे थे, के जैसा अंतर्राष्ट्रीय कहें तो अधिकांश मुल्कों का चौधरी होना भी ज़रूरी है ताकि वह अपनी गोरी, धन और गन वाली चौधराहट से ज़्यादातर को दबकाकर रखे।

चौधराहट के ज़माने में हर क्षेत्र में चौधरी बढ़ते ही जा रहे हैं। चौधरीजी को जब किसी और दूसरे अपने ही किस्म के चौधरी के बारे में पता चलता है तो वे ज़रूर पूछते हैं कि यह कहां के चौधरी हैं। वैसे उनके दिमाग में चल यह रहा होता है कि हमारे एरिया में हमारे जैसा बढ़िया चौधरी होते हुए दूसरा चौधरी कहां से आ गया। इतिहास पढाता है कि चौधराहट बड़ी खतरनाक वस्तु है, एक बार दिमाग में प्रवेश कर जाए तो मुश्किल से जाती है। ग़लती से, गलत वक़्त पर गुस्सा खाए शरीर में घुस जाए तो आफत हो सकती है। किसी जमाने में कहा जाता था कि पढ़ने लिखने से बंदा समझदार हो जाता है, लेकिन परिस्थितियों में आए शातिर बदलावों के कारण, अब तो बिना पढ़े लिखे भी, अवसरानुसार समझदारी के प्रयोग से अपने ही किस्म का चौधरी बनने में सफल हो जाता है। चौधरी बनने के धार्मिक, राजनीतिक, जातीय या राष्ट्रीय नाम के कई शर्तिया सफल रास्ते बताए जाते हैं। सही समय पर चौधराहट ग्रहण कर इसका सही प्रयोग होता रहे तो शक्ति और पैसा स्वत आने लगता है। 

इसे भी पढ़ें: मिलावट का स्वर्ण काल (व्यंग्य)

इतिहास में चाचा चौधरी नाम से एक कार्टून श्रृंखला बहुत प्रसिद्ध हुई थी। उसमें जब आम इंसान या पुलिस, नागरिक और सामाजिक समस्याओं का हल नहीं ढूंढ पाते थे तो तुरहीदार पगड़ी लगाए चाचा चौधरी मंच पर टपककर, समझदारी से अपनी चुटकी बजाकर मुश्किल से मुश्किल समस्या भी हल कर देते थे। देखा जाए तो आज के क्षेत्रीय चौधरी भी बिना पगड़ी के ही अनेक समस्याएं चुटकी में हल कर रहे हैं। दुनिया की महान लोकतांत्रिक परम्पराओं के निमित बाकायदा चुना गया हुआ एक आम हुडदंगी जब चौधरी हो जाता है तो फैसलों को इधर से उधर घुमा देता है, अनाधिकृत निर्माण करवाता है, शक्तिशाली का साथ देता है । यहीं से वह अपने किस्म का चौधरी बन जाता है और दूसरों से बड़ा चौधरी बनने के अवसर खोदता है। उनके प्रदर्शन से प्रभावित हो, बड़े बुद्धिमान चौधरी उन्हें अपने अभ्यारण्य में ले लेते हैं। 

इसे भी पढ़ें: ज्यादा बुद्धिमान बुद्धिजीवी कौन (व्यंग्य)

काफी गहन प्रशिक्षण के बाद इन अपने किस्म के चौधरी को समझ आता है कि वे जिन दूसरे अपने किस्म के चौधरी की बात कर रहे थे, के जैसा अंतर्राष्ट्रीय कहें तो अधिकांश मुल्कों का चौधरी होना भी ज़रूरी है ताकि वह अपनी गोरी, धन और गन वाली चौधराहट से ज़्यादातर को दबकाकर रखे। अब यह पहली बार तो हो नहीं रहा कि वे अपने देश से निकले पहले चौधरी हैं, उनका देश  तो हमेशा दुनिया का चौधरी देता रहा। हालांकि दुनिया में दूसरे बड़े चौधरीनुमा चौधरी भी हैं लेकिन असली चौधरी तो वही माना जाएगा जो साम दाम दंड भेद का फार्मूला लगाकर अपने चौधरीपन का सबूत बार बार देता रहे। कहीं पेट्रोल में आग लगा दे या कहीं ज़मीन की आग बुझाने को अपनी अग्निशमक टांग तैयार रखे। चौधरी किसी भी रंग, धर्म, जाति, क्षेत्र का हो, नायक बनना आसान नहीं होता। एक नायक जब चौधराहट के जूतों में प्रवेश कर लेता है तो उसका चरित्र ऐसा हो जाता है कि वह अपने सामने किसी को उठता हुआ देख नहीं पाता। एक चौधरी कभी नहीं चाहता कि कोई भी उस जैसा चौधरी बन पाए। चौधरी ही असली पुलिस होता है। वह पुलिस ही नहीं, पुलिस के चौधरियों का भी चौधरी होता है।

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़