एक नहीं अनेक हैं हम (व्यंग्य)

satire
संतोष उत्सुक । Aug 17 2020 6:46PM

बुद्दिजीवी भी तो यही कहते रहे हैं कि आम और ख़ास लोगों के लिए अलग अलग न्यायिक व्यवस्थाएं होनी चाहिए लेकिन किसी भी अबुद्धिजीवी के पल्ले नहीं पड़ा कि यदि ऐसा हो जाए तो काफी कुछ सुचारू रूप से चल सकता है।

हर नई घटना शोर मचाकर यह साबित करने में जुट जाती है कि हम एक नहीं हैं। वैसे तो यह सामाजिक सचाई है, हम जानते हैं और दिमाग से मानते भी हैं लेकिन दिखाते यही रहते हैं कि हम सब एक हैं। इस सच को हमेशा नकारना चाहते हैं ताकि बुरा न लगे लेकिन परिस्थितियों के बदलते चेहरों ने वक़्त की विशाल दीवार पर सब साफ़ लिख दिया है। दुनिया की बड़ी बड़ी ताकतें मानती हैं कि सफ़ेद और काला, अलग अलग रंग होते हैं। कोरोना समय ने तो उनकी और सबकी पोल खोल दी है। महामारी के ऊंचे पहाड़ पर चढ़ कर सफल प्रबंधन के परचम हिलाने वाले लोग, राजनीतिक पार्टियां, घातक वायरस से घिरे आमजन के इलाज और मौत बारे अलग अलग नजरिया रखते हैं। विज्ञान, विशेषज्ञ, चिकित्सक या सही सुधार और इलाज की बातें उन्हें पसंद नहीं। शासक पार्टियों का नजरिया सदियों से जैसा भी हो लेकिन माना जाता है, ‘बॉस इज ऑलवेज राइट’।

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बुद्दिजीवी भी तो यही कहते रहे हैं कि आम और ख़ास लोगों के लिए अलग अलग न्यायिक व्यवस्थाएं होनी चाहिए लेकिन किसी भी अबुद्धिजीवी के पल्ले नहीं पड़ा कि यदि ऐसा हो जाए तो काफी कुछ सुचारू रूप से चल सकता है। सबको पता रहेगा कि किनके लिए क्या नियम हैं। मिसाल के तौर पर किसी भी प्रसिद्द, धनवान, शक्तिशाली या अन्य तरह से विशिष्ट व्यक्ति को दंड नहीं दिया जा सकता, तो साफ़ है उसके खिलाफ कोई कारवाई शुरू करने के लिए समय नष्ट न किया जाए। प्रसिद्द व्यक्ति बीमार हो जाए तो पूरा देश भजन हवन करना शुरू कर देता है और चैनल के मंच पर वाद विवाद सुस्त पड़ जाते हैं और व्यक्तिपूजा शुरू हो जाती है। बेचारे राष्ट्रीय मसले स्टूडियो के बाहर बारिश में, बिना छतरी के खड़े कर दिए जाते हैं। जब यह बात बार बार कड़वा सच बनकर सामने आती है कि हम गरीब अमीर, छोटे बड़े, लाल, पीले, काले रंग के अलग अलग लोग हैं तो सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक व शासकीय व्यवस्था को पहले से अलग व्यवहारिक नियमों का विकास करना चाहिए।

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जिस व्यक्ति के खिलाफ सख्त कारवाई की जा सकती हो, अविलम्ब की जाए ताकि उसे पता चले कि अनुशासन और क़ानून तोड़ने के क्या परिणाम होते हैं। जिसके खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता, अच्छी व्यवहारिक समझ का प्रयोग करते हुए, कुछ न किया जाए बल्कि सामाजिक आयोजन कर उन्हें सफ़ेद गुलाब भेंट किया जाए। इस उचित निर्णय से बहुत लोगों की जान बच सकती है, न्यायिक प्रक्रिया के दर्जनों राष्ट्रीय बरस व धन गर्क होने से बचाया जा सकता है। अलग अलग होने का सच आत्मसात हो जाए तो चैन उगाया जा सकता है और अपना बहुमूल्य समय कविताएं गढ़ कर फेसबुक पर चिपकाने, व्ह्त्सेप पर कहानियां डालने, मनचाहे गीत गाकर फेसबुक को हिलाने, पत्नी को खुश करने के लिए छत पर किचन गार्डन स्थापित करने में प्रयोग किया जा सकता है।

- संतोष उत्सुक

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