चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, नया साल... जो हमारा है

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भारत का नया साल तो चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पहली तारीख को होता है। देहात में इस दिन को उतरते चैत्र की पड़वा कहा जाता है। इस दिवस से नव वर्ष शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य ने कितनी सही सूझ बूझ व विचारकर इस दिन को चुना होगा यह अनुमान हम खुद लगा सकते हैं।

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी छह अप्रैल को प्रारंभ होगा। 

नया साल शुरू हुए महीने हो गए। इसे मनाने व स्वागत करने के लिए जैसा दुनियावालों  ने किया वैसा ही हम भारतीयों ने किया। अपने मित्रों, परिचितों व रिश्तेदारों को लाखों करोड़ों संदेश व्हाट्सेप से फारवर्ड  किए, तोहफे भेजे और टेलीफोन किए। क्या हमने सोचा कि उस नए साल में नया क्या था। देखा जाए तो प्रकृति के ठंडे आंगन में उगे पेड़ पौधों में उदासी, वही पुरानी उदासी लिपटी रही। हवा, मौसम पहले से भी सर्द व अप्रत्याशित भी जैसा पिछले साल न था। हमारा शरीर स्फूर्तिहीन रहा। यह तो वही बात हुई कि पूरी दुनिया कह रही है तो हम भी कह दें कि नया साल आ गया। नए साल के कलैण्डर, डायरियों व टीवी चैनलों पर मची धूम ने पुराने साल को नया करने में खूब साथ दिया। 31 दिसम्बर की रात को मनोरंजन व नशे की हालत में हम उछलते कूदते नए बरस में पहुंच गए यह अलग बात है कि पहली जनवरी से फिर लकीर की फकीरी शुरू हो गई।

दरअसल हम अपना नया साल भूल चुके हैं। आज़ादी से पहले आम आदमी को अपना जन्मदिन याद रहे न रहे लेकिन अपने शासक राजा का जन्मदिन हमेशा याद रहता था। अपना मनाने की सामर्थ्य नहीं होती थी मगर राजा के जन्म उत्सव में शामिल होने का उल्लास होता था और तैयारी पहले से शुरू हो जाती थी। यही मानसिकता नए वर्ष के साथ सम्बद्ध है, नए बरस के स्वागत की विज्ञापन युक्त तैयारियां भी पहले से शुरू हो जाती हैं। पहली जनवरी को कुछ भी नया व अपना न होते हुए नया व अपना मान लेते हैं क्योंकि दुनिया  मानती व मनाती हैं। हमें यह याद नहीं, अपनी कितनी ही नायाब सांस्कृतिक परम्पराओं की तरह हम अपना नया साल मनाना भी भूल चुके हैं।

भारत का नया साल तो चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पहली तारीख को होता है। देहात में इस दिन को उतरते चैत्र की पड़वा कहा जाता है। इस दिवस से नव वर्ष शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य ने कितनी सही सूझ बूझ व विचारकर इस दिन को चुना होगा यह अनुमान हम खुद  लगा सकते हैं। चैत्र माह से पहले जो पेड़ पौधे अपने पुराने पत्ते छोड़ चुके होते हैं उन पर नए कोंपल फूट चुके होते हैं। चैत्र मास का दूसरा पखवाड़ा आते आते कुदरत जाग चुकी होती है हर तरफ हर शाख पर फूल खिल चुके होते हैं। यहां तक कि झाड़ियों में भी फूल खिले होते हैं। हवा में कितनी ही खुश्बुएं घुल चुकी होती हैं। पूरे माहौल में स्फूर्ति आ चुकी होती है। बसंत ऋतु यौवन पर होती है। कहते हैं जहां कुछ नहीं उग पाता वहां भी हरियाली फैल जाती है यानी कुछ न कुछ उग जाता है। आदमी के शरीर में नया खून संचारित होता है। आज के ज़माने में भी बुजुर्ग कहते मिल जाते हैं ‘खून बदल रहा है’। ग्रामीण क्षेत्र के लोग नीम या अन्य ऐसे ही पेड़ की कोंपलें खाते हैं कहते हैं खून बदल रहा है इसे साफ करने के लिए कड़वा खा रहे हैं। कृपया इस सब में मानव द्वारा विकसित ग्लोबल वार्मिंग के समूचे बदलाव भी शामिल कर लें। 

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यह बिलकुल स्पष्ट है कि नया साल पहली जनवरी को ही मना लेने के पीछे हमारी नकल करने की प्रवृति काम कर रही हैं। वैसे भी हमने विचार, व्यवहार, संस्कार व शरीर को विदेशी संस्कृति की चाशनी में डुबो दिया है और अपने देश को एक बाज़ार बना लिया है। बाज़ार के इस युग में कुछ लोग हैं जो अभी भी भारतीय नया साल सिर्फ मनाने के लिए नहीं बलिक दिल से मनाते हैं। हमें हमेशा विदेशी चीज़ों से मोह रहा है। विडम्बना यह है कि विदेशियों ने सीखने अपनाने के लिए हमारी संस्कृति के अच्छे पक्षों का चुनाव किया मगर हमने उनकी अच्छी बातें नहीं अपनाई। इस लेन देन में हमने अपने सांस्कृतिक मुल्यवान, मर्यादाओं व आदर्शों का कत्ल कर दिया और गुलाम होकर विदेशी संस्कृति के दीवाने हो गए। अच्छे बदलाव के लिए हर समय शुभ होता है, यह सही है कि विदेशी नया साल छोड़ना असंभव है पर साथ साथ यह तो हो ही सकता है कि अपनी संस्कृति की अच्छी परम्पराओं को न छोड़ते हुए उन्हें पुनः अपनाते हुए भारतीय परम्परा के मुताबिक नया साल आत्मसात किया जाए। हम भारतीय वैसे भी उत्सव प्रिय हैं, एक सांस्कृतिक उत्सव फिर लौट आएगा। 

पाठकों को बता दें कि इस बार नव संवत्सर विक्रम संवत 2076, 6 अप्रैल 2019 से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन चैत्र वासंतिक नवरात्र भी शुरू हो रहे हैं। सन्दर्भ के लिए बता दें कि अभी शक संवत 1940–41 व हिजरी सन् 1440 चल रहा है। आप चाहें तो इस बार अपना नया साल भी मना सकते हैं।

- संतोष उत्सुक

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