ऐसे घर आया कंप्यूटर (बाल कहानी)

शेखू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा वह तो सातवें आसमान पर था। स्कूल से आकर कई दिन तक अपनी छोटी बहन अन्नू को लेकर कार में बैठा रहता, उसे नन्हें हाथों से साफ करता, वहीं सो जाता। यहां तक कि टायर में मिट्टी लग जाती तो अपने हाथ से हटाता।
शेखू को बचपन से ही कारों से लगाव था। टीवी देखता तो उसे कारों की दौड़ रोमांचित करती। बाज़ार जाता तो दुकानों के शो केस में सजी छोटी बड़ी, रंग बिरंगी कारें, उसे स्वादिष्ट चाकलेट की तरह लगती। जो कार उसे पसंद आती पापा से खरीदने को कहता। होते होते उसके पास दर्जनों कारें इक्कठा हो गई थी। नीली, पीली, लाल, सफ़ेद रेसिंग कार, पेट्रोल कार, जिप्सी, एंबुलेंस। उसके सहपाठी मित्र आते तो वह उन्हें बड़ी शान से अपनी कारों की दुनिया में ले जाता। कई बच्चे तो उससे ईर्ष्या करने लगते।
उनके पड़ोसियों ने नई कार खरीदी तो वह उसे देखने गया, प्यार से कार को छुआ और देखता रहा। पापा से बोला, “पापा, इन अंकल ने अपनी गाड़ी ले ली मगर वे इसे साफ नहीं रखते, हम जब गाड़ी खरीदेंगे तो मैं उसे बहुत साफ रखूंगा”। वह पापा से असली कार खरीदने के लिए बार बार कहने लगा। शेखू अपनी मम्मी से पूछता कि हमारी गाड़ी कब आएगी। मम्मी ने उसे समझाया कि आप के पापा प्लान कर रहे हैं जल्दी ही लेंगे। उसका सपना पूरा हो गया जब एक दिन उसके पापा उसके मनपसंद पीले रंग की कार ले आए।
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शेखू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा वह तो सातवें आसमान पर था। स्कूल से आकर कई दिन तक अपनी छोटी बहन अन्नू को लेकर कार में बैठा रहता, उसे नन्हें हाथों से साफ करता, वहीं सो जाता। यहां तक कि टायर में मिट्टी लग जाती तो अपने हाथ से हटाता। एक दिन सब बाज़ार गए तो शेखू को एक शो रूम में नई किस्म की कार दिखी। गाड़ी में बैठे बैठे वह उस कार को खरीदने के लिए कहने लगा। पापा ने उसे मना करते हुए समझाया कि अब उसके पास असली कार है, महंगी खिलौना कार पर पैसे नहीं खर्चने चाहिए। शेखू ने कहा, “चलो देख तो लो, दिलाना मत”। कार देखी, कीमत नौ सौ अस्सी रुपए। रिमोट से चलती थी वो कार। दुकानदार ने कोशिश की लेकिन पापा ने शेखू को कार नहीं दिलाई। वह दुखी था अपनी प्रिय चीज़ न पाकर।
उसके पापा ने कहा, “चलो घर चलते हैं मुझे आप से कुछ बात करनी है”। घर आकर पापा ने कहा, “शेखू आप अगली और बड़ी क्लास में जाने वाले हो। आपको ज़्यादा मेहनत और खूब पढ़ाई करनी होगी। मैंने इतने पैसे खर्च कर आपके लिए असली कार खरीदी है। अब आपको छोटे बच्चों वाले खिलौने नहीं खरीदने चाहिए । आपको किताबें खरीदनी चाहिए, कंप्यूटर भी लेना चाहिए जो आपके बहुत काम आएगा। मैं आपको कंप्यूटर दिलाने के लिए तैयार हूँ।” “तो चलो दिलाओ, कार में चलते हैं। थोड़ा तो मैंने स्कूल में सीखा भी है।” शेखू बोला। “अभी स्कूल में ही सीखो बेटा, अच्छा कंप्यूटर खरीदने के लिए पैसे भी ज्यादा चाहिए। थोड़े आप अपनी पाकेट मनी से बचाओ कुछ मैं दूंगा।”
“मैं कहां से बचाऊं” शेखू ने पूछा।
“यह जो तुम हर महीने कार खरीदते हो, इसे बंद करो, ज़रा हिसाब लगाओ एक साल में कितने बच सकते हैं” उसकी मम्मी ने कहा।
कंप्यूटर का आकर्षण शेखू को प्रेरित कर गया। वह उछल पड़ा, “पापा एक साल में तो हजारों रुपए जमा हो सकते हैं। मेरे प्राइज़ मनी और स्कोलरशिप के भी।”
अन्नू बोली, “कुछ पैसे मेरे पास भी तो होंगे”। पापा ने शेखू को समझा दिया कि पैसे जमा हो जाने पर कंप्यूटर ले आएंगे। उसे कुछ महीने इंतज़ार करना पड़ा। कंप्यूटर के लिए उसने और अन्नू ने मिलकर काफी पैसे जमा कर लिए।
शेखू जब अगली कक्षा में हुआ तो पापा ने उसे बढिया कंप्यूटर दिला दिया। उसने पापा से कहा, “यह अच्छा हुआ कि मैंने कारें खरीदनी बंद कर दी, पैसे बचाकर मुझे सबसे ज़रूरी चीज़ कंप्यूटर मिल गया।”
इस तरह से कंप्यूटर शेखू और अन्नू के घर आ गया।
- संतोष उत्सुक
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