हाथ धोना बनाम हाथ की सफाई (व्यंग्य)

Washing hands
पीयूष पांडे । Mar 19 2020 5:02PM

कानून का डर छोड़कर हिन्दुस्तान में लोगों को किसी भी बात से डर लग सकता है। बिल्ली रास्ता काट जाए तो कई लोग जरुरी काम छोड़कर इंतजार करते हैं। पाप-पुण्य की फिलॉसफी तो ऐसा डराती है कि लोग लाखों-करोड़ों रुपए दान दे देते हैं...

जिस तरह लातों के भूत बातों से नहीं मानते, उसी तरह हिन्दुस्तान के लोग बिना डर के नहीं मानते। नियम कायदे से तो कतई नहीं मानते। कई मामलों में कानून मानना भारतीय अपमान समझते हैं। इसकी एक वजह यह है कि वे स्वयं को इतना अधिक समझदार मानते हैं कि उन्हें कानून थोपा हुआ बोझ लगता है। अब देखिए, सरकार ने सख्त ट्रैफिक कानून लागू कर दिए, लेकिन बिना हेलमेट के दोपहिया और बिना सीट बेल्ट के चार पहिया गाड़ी चलाते लोग आपको उसी तरह हर शहर में दिख सकते हैं, जिस तरह भिखारी दिखते हैं। लाल बत्ती लोग अभी भी उसी फुर्ती से फांदते हैं, जिस फुर्ती से खिलाड़ी लॉन्ग जंप करता है। नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाना उनका प्रिय शगल है या वो पुलिस का इम्तिहान लेते हैं, पता नहीं लेकिन रात 12 बजे लाल बत्ती पर कोई कानून मानने वाला गाड़ी रोककर खड़ा हो जाए तो पास से फर्राटा गुजरती गाड़ी में बैठे लोग उसे मूर्ख मानने से परहेज नहीं करते। आप किसी से कहिए कि फलां कानून बन गया है, और अब आपको फलां काम करना ही पड़ेगा तो सामने वाला आपकी मासूमियत पर मुस्कुरा सकता है।

इसे भी पढ़ें: कोरोना के सकारात्मक कोण (व्यंग्य)

कानून का डर छोड़कर हिन्दुस्तान में लोगों को किसी भी बात से डर लग सकता है। बिल्ली रास्ता काट जाए तो कई लोग जरुरी काम छोड़कर इंतजार करते हैं। पाप-पुण्य की फिलॉसफी तो ऐसा डराती है कि लोग लाखों-करोड़ों रुपए दान दे देते हैं। चोरों का, आतंकवादियों का, नौकरी छूटने का, फेल होने का सौ तरह का डर होता है। बंदा जब जिससे डर जाए ! एक बार डर गया तो फिर ट्रैक पर आ जाता है। तुलसीदास जी इसलिए बरसों बरस पहले लिख गए थे-भय बिन होए ना प्रीत।

इन दिनों लोग कोरोना से भयभीत हैं। है पिद्दी सा वायरस लेकिन उसका जलवा ऐसा कि मॉल खाली हो रहे हैं, लोग एक दूसरे से मिलने से कतरा रहे हैं, स्कूल-कॉलेज बंद हो रहे हैं। कोरोना का डर ऐसा कि लोग दिन में इतनी बार हाथ धो रहे हैं, जितनी बार वो पूरे हफ्ते में नहीं धोते थे। डर ने कइयों को हाथ धोना सिखा दिया है। अच्छा यह हुआ कि सतर्कता के तौर पर नहाने को नहीं कहा गया।

इसे भी पढ़ें: अथ् श्री वायरस कथा (व्यंग्य)

कोरोना का डर ऐसा कि बंदा राह चलते, मेट्रो या बस में भी हाथ इधऱ-उधर नहीं रख रहा कि कहीं कोरोना वायरस ‘आ गले लग जा’ गाते हुए साथ ना हो ले। लेकिन, इस चक्कर में हाथ की सफाई दिखाने वालों का धंधा चौपट हो लिया है। कोरोना ने अव्वल तो हर जगह भीड़ घटा दी है, उस पर लोग जेब से हाथ नहीं निकाल रहे। बंदा जेब काटे तो काटे कैसे? हां, हाथ की सफाई के बड़े खिलाड़ी उर्फ धंधेबाज कारोबारी डर का कारोबार कर रहे हैं। 100 रुपए का मास्क 500 रुपए का बेचा जा रहा है और लोग खुशी खुशी खरीद रहे हैं। यही हाल सेनेटाइजर का है। डर का अपना मार्केट है। धंधेबाज इसे जानते हैं। इसलिए वो साफ सफाई की बात करते हुए खुलेआम जेब साफ कर रहे हैं, लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ रहा।

- पीयूष पांडे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़