अथ् श्री वायरस कथा (व्यंग्य)

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पीयूष पांडे । Mar 4 2020 5:25PM

कोरोना ने बता दिया कि एक पिद्दी सा वायरस भी कैसे महाशक्तिशाली देशों का बैंड बजा सकता है। चीन के पास शक्तिशाली मिसाइलें हैं, तोपे हैं, एटम बम है लेकिन कोरोना वायरस का इलाज नहीं है। यानी जिस खतरनाक जीव से युद्ध है, उससे लड़ने के हथियार ही नहीं हैं।

एक है कोरोना वायरस। कोरोना में रोना निहित है तो चीन के लोग कोरोना का रोना रो रहे हैं। दुनिया के जो शेयर बाजार चंद दिनों पहले तक हँस रहे थे, वो भी कोरोना के चक्कर में अब जार-जार रो रहे हैं। जिस तरह हिन्दुस्तान में वक्त वक्त पर गढ़े मुर्दे प्रकट होते हैं, खजाना प्रकट होता है, मूर्तियां प्रकट होती हैं और कब्र में पैर लटकाए राजनेता सत्ता का सिंहासन सामने दिखते ही प्रकट होते हैं, वैसे ही चीन में कोरोना अचानक प्रकट हुआ है। कोरोना 'मिस्टर इंडिया' फिल्म के हीरो की तरह अदृश्य रहकर 'मोगेंबो' की ऐसी तैसी कर रहा है। वायरस के नजरिए से देखेंगे तो सरकारें 'मोगेंबो' ही दिखेगी। सिर्फ नजरिए से हीरो विलेन हो जाता है और विलेन हीरो। इस वक्त वायरस वर्ल्ड में कोरोना हीरो की तरह देखा जा रहा होगा। 

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कोरोना ने बता दिया कि एक पिद्दी सा वायरस भी कैसे महाशक्तिशाली देशों का बैंड बजा सकता है। चीन के पास शक्तिशाली मिसाइलें हैं, तोपे हैं, एटम बम है लेकिन कोरोना वायरस का इलाज नहीं है। यानी जिस खतरनाक जीव से युद्ध है, उससे लड़ने के हथियार ही नहीं हैं। जिससे युद्ध कभी होना नहीं, उसके लिए युद्ध की ऐसी तैयारी की जा रही है मानो पार्षद पद का दावेदार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के मकसद से सफेद कुर्ता-पायजमा सिलवाने रोज दर्जी की दुकान पर पहुंच जाए। हॉलीवुड-बॉलीवुड के कई विलेन बरसों से जिस अमरत्व को खोज रहे हैं, वायरस वो गुण लेकर पैदा होते हैं। फिल्मों के विलेन को हीरो ठोंक ठाक कर सही कर देते हैं लेकिन वायरस को मारना बहुत टेड़ा काम हैं। सूरदास जी ने कहा है कि ‘मेरा मन अनत कहां सुख पावै। जैसे उड़ि जहाज को पंछी पुनि जहाज पै आवै।‘ यह दोहा आज वायरस प्रजाति पर सटीक बैठता है। 

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कोरोना चीन में पैदा हुआ और अब कई देशों को डरा रहा है। लेकिन चीन और बाकी देशों में एक बड़ा फर्क है। वो है समस्या से निपटने के मामले में चीन की जिजीविषा का। बीजिंग दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था लेकिन चीन ने वहां का प्रदूषण लगभग खत्म कर दिया। आबादी हद से ज्यादा बढ़ी तो बच्चों के नियंत्रण का कानून बना दिया। कोरोना के प्रकोप के बीच दस दिनों के भीतर 1000 बिस्तर वाला अस्पताल बना दिया है। हिन्दुस्तान में 10 दिन में कोई बंदा अस्पताल बनाने की इजाजत नहीं ले सकता, अस्पताल बनाना तो दूर की बात है। एक अस्पताल बनाने के लिए सैकड़ों तरह की जितनी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं, उस दौरान बच्चे बड़े होकर शादी कर सकते हैं। हिन्दुस्तान में अस्पताल क्या किसी भी नई परियोजना को शुरु करने के लिए इतनी औपचारिकताएं करनी पड़ती हैं कि कई कंपनियां दूसरी कंपनियों के लिए औपचारिकता पूरी कराने का काम ही करती हैं। छोटे स्तर पर बिचौलिए उर्फ दलालों को इस काम की एक्सपर्टीज होती है। सही मायने में एक्सपर्टीज इस बात की होती है कि जहां जहां से लाइसेंस लेना है,वहां वहां किस किसको कितनी रिश्वत देनी है। रिश्वत का काम इतनी ईमानदारी से होता है कि कई बार ईमानदार अफसर को अपनी ईमानदारी शक के घेरे में दिखती है। 

लेकिन मुद्दा कोरोना नहीं वायरस की जाति है। वायरस एक बार पैदा हो गया तो फिर मरता नहीं। एक लिहाज से वायरस अमरत्व का वरदान लेकर पैदा होता है और बिना वीजा के कई देशों में घूमता रहता है। वायरस कई तरह के होते हैं। एक वायरस शरीर में घुसकर मार करता है, और एक वायरस समाज की नसों में घुलकर समाज को कमज़ोर करता है। भ्रष्टाचार के वायरस को लीजिए। हज़ारों जतन हो लिए लेकिन भ्रष्टाचार का वायरस नहीं मरा उल्टा इसका कहर बढ़ता चला गया। गरीबी हटाओ के नारे ना जानें कितनी बार गूंजे लेकिन गरीबी का वायरस कोई सरकार भगा नहीं पाई। सांप्रदायिकता का वायरस बार बार सिर उठाकर चला आता है। इस वायरस की हिमाकत देखिए कि ये सिर्फ आम आदमी नहीं बल्कि पूरे देश को बांटने का ख्वाब देखता है।

- पीयूष पांडे

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