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1971 युद्ध के सहारे डूबती नैया पार लगाएगी कांग्रेस
- अभिनय आकाश
- फरवरी 23, 2021 18:13
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कांग्रेस द्वारा 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए एक समिति का गठन किया। जिसकी अध्यक्षता पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी करेंगे। एंटनी इस दौरान पार्टी की गतिविधियों की योजना और समन्वय की निगरानी करेंगे।
तारीख 25 अप्रैल 1971 तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बड़ी मीटिंग में देश के थल सेना अध्यक्ष से कहा कि पाकिस्तान को सबक सिखाना होगा। 71 की वो जंग जब हिन्दुस्तान ने दुनिया का नक्शा बदल दिया था। जब हिन्दुस्तान ने 13 दिनों में पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। जब पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक लाचार युद्ध बंदी बने। जब हिन्दुस्तान को बांटने का मंसूबा रखने वाला पाकिस्तान खुद टुकड़े-टुकड़े हो गया। इस युद्ध के पांच दशक बाद कांग्रेस पार्टी अपनी छवि सुधारने और जमीन मजबूत करने के लिए 1971 युद्ध का सहारा लेने की तैयारी में है। कांग्रेस द्वारा 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए एक समिति का गठन किया। जिसकी अध्यक्षता पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी करेंगे। एंटनी इस दौरान पार्टी की गतिविधियों की योजना और समन्वय की निगरानी करेंगे। इस समिति में पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह, पूर्व स्पीकर मीरा कुमार और संयोजक प्रवीण डावर जैसे दिग्गज शामिल है जो अपने स्तर पर योजना बनाएंगे। इसके अलावा कमेटी में मीरा कुमार का नाम इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि 1971 के युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में जगजीवन राम ही रक्षा मंत्री हुआ करते थे। मीरा कुमार बाबू जगजीवन राम की पुत्री हैं।
कांग्रेस ने उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में पूर्व सैनिकों के साथ ब्लॉक स्तर पर सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया है। 2014 में सत्ता से बेदखल होने और सत्तारूढ़ भाजपा के राजनीतिक हमले का सामना करती कांग्रेस राष्ट्रीवाद की भावना पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रही है। पार्टी के लिए 1971 के युद्ध के सहारे अपने जमीनी स्तर पर मजबूती और खुद को पुनर्जीवित करने के इरादे से ऐसा करने का सोचा। यह अक्टूबर में है कि राज्य स्तरीय सम्मेलनों के रूप में हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम होंगे। कार्यक्रम में बांग्लादेश के निर्माण पर सेमिनार, व्याख्यान और राष्ट्रीय सुरक्षा में इसका महत्व शामिल होगा। साथ ही पार्टी युवा पीढ़ी को सेमिनल इवेंट से परिचित कराने के लिए निबंध और क्विज प्रतियोगिताओं का आयोजन करेगी। 16 दिसंबर, 2021 यानी विजय दिवस की स्वर्ण जयंती पर राजधानी में एक राष्ट्रीय बैठक में इसका समापन होगा। दिसंबर 1971 में भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी सेना पर एक निर्णायक और ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। जिसके परिणामस्वरूप एक राष्ट्र-बांग्लादेश का निर्माण हुआ और दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण भी हुआ। 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन पाकिस्तान के खिलाफ 1971 में भारत को जीत मिली थी, जिसके फलस्वरूप एक देश के रूप में बांग्लादेश अस्तित्व में आया था।
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एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट और कांग्रेस की छवि
साल 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी का हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद पर जोर रहा। वहीं कांग्रेस पार्टी बीजेपी के निशाने पर रही और उसकी छवि एंटी हिंदू की बनती रही। अपनी छवि और हार की समीक्षा के लिए कांग्रेस ने एक कमेटी बनाई थी जिसके अध्यक्ष कांग्रेस के वही दिग्गज नेता एके एंटनी हैं जिन्हें 1971 युद्ध वर्षगांव मनाने वाली समिति की कमान सौंपी गई है। 2014 के चुनाव में कांग्रेस के 44 सीटों पर सिमटने के बाद इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में माना की यूपीए 1 और 2 की सरकार के दौरान पार्टी के नेताओं के बयान ने पार्टी की छवि एंटी हिंदू बना दी थी। बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद दिग्विजय सिंह सरीखे नेताओं के बयान हो या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों वाले बोल। जिससे उबरने के लिए ही राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव से पूर्व मंदिर प्लान बनाया, जनेऊधारी हिन्दू भी बने और भगवान शिव के अन्नय भक्त भी। लेकिन जेएनयू में जब भारत के टुकड़े वाले नारे लगने के आरोप लगे तो जेएनयू में जाकर राहुल गांधी का खड़ा होना और 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगना। और तो और बालाकोट एयर स्ट्राइक पर भी सवाल उठाना जिसका खामियाजा 2019 के चुनाव में सभी ने देखा।
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सेल्फी विद तिरंगा अभियान
5 अगस्त 2020 को जब अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम चल रहा था तो ट्विटर के जरिये हिंदुत्व से भी मजबूती से जुड़ने की काफी कोशिश की। लेकिन सारी कोशिशें नाकाफी साबित होने के बाद तय हुआ कि एक बार वो फॉर्मूला अपना कर देखा जाये जिसके बूते भारतीय जनता पार्टी पहले लोकसभा और फिर पंचायत स्तर तक पर सफलता प्राप्त करने हुए स्वर्णिम काल के सपने की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रही है। कांग्रेस ने अपनी डूबती नैया को पार लगाने के लिए सेल्फी विद तिरंगा अभियान की शुरुआत की थी। 28 दिसंबर को कांग्रेस के 136वें स्थापना दिवस के अवसर पर ऑनलाइन कैंपेन चलाया गया। गौरतलब है कि बीजेपी भी कई मौकों पर तिरंगा यात्रा जैसे अभियान करती रही है।
सर्जिकल स्ट्राइक पर बीजेपी का कार्यक्रम
सर्जिकल स्ट्राइक की वर्षगांठ पर बीजेपी की तरफ से कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। सरकार ने इसे पराक्रम पर्व के रूप में मनाया छा। देशभर में कार्यक्रम आयोजित कर भारतीय जवानों की वीरगाथा सुनाई गई। बीजेपी ने सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी कर प्रधानमंत्री मोदी का पाकिस्तान को सख्त लहजे में दिए जा रहे संदेश भी शामिल थे। इसके साथ ही जगह-जगह पोस्टर और होर्डिग्स भी लगवाए गए थे।
कांग्रेस के लिए इसे विडंबना ही कहा जाएघा कि जिस पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़कर कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार ने बांग्लादेश को अलग राष्ट्र की मान्यता दी और पूरी दुनिया से दिलायी भी। वो कांग्रेस राजनीति के उस छोर पर खड़े-खड़े लगातार कोशिश कर रही है कि कैसे वो लोगों को समझा पाये कि कांग्रेस पार्टी कभी पाकिस्तान के फायदे की बात नहीं करती। बीते 16 दिसंबर को पाकिस्तान के खिलाफ जंग में जीत का जश्न विजय दिवस के रूप में मनाया गया था। लेकिन इस वर्ष युद्ध जीतने के 50 साल पूरे हो रहे हैं और कांग्रेस विजय दिवस की स्वर्ण जयंती व्यापक पैमाने पर करने की तैयारी में है। कांग्रेस की चाह लोगों को यह समझाने की है कि बीजेपी की मोदी सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक से बरसों पहले कांग्रेस की इंदिरा सरकार ने पाकिस्तान को सबसे बड़ा सबक सिखाया था।
बहरहाल, राष्ट्रवाद के सहारे अपनी खोई जमीन पाने की आस लगाए कांग्रेस को इसका लाभ मिलता है या नहीं? क्योंकि कभी सेना पर सवाल तो कभी हिन्दुओं के खिलाफ प्रोपेगेंडा जैसी करतूतों को अंजाम देकर कांग्रेस नेताओं ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी फजीहत ही कराई है।- अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- मार्च 5, 2021 17:13
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राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर के कटआउट कोयंबतूर में पीएम मोदी की रैली में लगे थे।आखिर क्या है एमजीआर में ऐसा जिसके पोस्टरों का प्रयोग कर बीजेपी अपनी राजीनितक पैठ बना रही है और विरोधियों की नींदे भी उड़ा रही है।
राजनीति का वो सितारा जिसने सिनेमा की ताकत को पहचाना और उसे सियासत की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किया। जिसके प्रगाढ़ मित्र उसी के परम विरोधी बन गए और दाग दी दो गोलियां। जो एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा तो अपने आखिरी सांस तक तमिलनाडु के सीएम के रुप में काबिज रहा। आज उसी राजनेता की कहानी सुनाऊंगा जिसने अभिनेता के तौर पर ही नहीं बल्कि राजनेता के तौर पर भी लोगों के दिलों पर राज किया। दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में पैठ बनाने के लिए बीजेपी अपनी रैलियों और प्रचार में दूसरे दलों के कद्दावर नेताओं के पोस्टर का उपयोग कर रही है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर के कटआउट कोयंबतूर में पीएम मोदी की रैली में लगे थे। पीएम मोदी की रैली में कामराज और एमजीआर के प्रति सम्मान दिखाने के लिए दोनों नायकों के बड़े कटआउट के मुकाबले मोदी के छोटे कटआउट लगाए गए। एआईएडीएमके जिसका गठबंधन बीजेपी के साथ माना जा रहा है। बीजेपी के इस कदम से उसने अपना एतराज जताया है कि बीजेपी को अपने महापुरुषों का इस्तेमाल करना चाहिए न कि हमारे। डीएमके कह रही है कि बीजेपी को कामराज और एमजीआर दोनों के नाम और चेहरे का इस्तेमाल करने का हक नहीं। उधर बीजेपी इस वजह से खुश है कि उसे लगता है कि उसका निशाना सही जगह पर लगा है। ऐसे में आखिर क्या है एमजीआर में ऐसा जिसके पोस्टरों का प्रयोग कर बीजेपी अपनी राजीनितक पैठ बना रही है और विरोधियों की नींदे भी उड़ा रही है। आज की कहानी तमिलनाडु की सियासत में लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ एंट्री कर राजनीतिक पटल पर छा जाने वाले नेता मारुदुर गोपालन रामचंद्रन यानी एमजीआर की।
1981 में एक फिल्म आई थी नसीब जिसका गाना है जिंगदी इम्तिहान लेती है... लेकिन मरूदुर गोपालन रामचंद्रन ने अपने जिंदगी के सफर में एक नहीं बल्कि दो इम्तिहान दिए। पहले तो फिल्मी दुनिया से सियासत में कदम रखने के बाद मित्र के दुश्मन बन जाने और दोस्त से ही गोली खाने का फिर तमाम झंझावतों से जूझते हुए तमिलनाडु की सीएम की कुर्सी पर पहुंचने के साथ ही भारत रत्न तक से नवाजा जाना।
एमजीआर के नाम से फेमस मरुदुर गोपालन रामचंद्रन ने एक अभिनेता के तौर पर ही नहीं बल्कि राजनेता के तौर पर भी लोगों के दिलों पर छाए रहे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत फिल्मों से की थी। गांधीवादी आदर्शों से प्रभावित होकर एमजीआर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। करुणानिधि के शब्द और एमजीआर के एक्शन ने एक-दूसरे को मंजिल तक पहुंचाने में मदद की। 1950 का दौर था और करुणानिधि की स्क्रिप्ट मंतिरी कुमारी ने एमजीआर को बड़ी सफलता दी। युवा लेखक करुणानिधि को अपनी योग्यता से नाम, मिश्रित विचारधारा और व्यावसायिक सफलता मिली और एमजीआर एक बड़े एक्टर हो गए। साल1953 में एमजीआर सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके पार्टी) में आ गए। उन्होंने राज्य में चल रहे द्रविड़ अभियान में ग्लैमर जोड़ दिया। वर्ष 1967 में एमजीआर विधायक बने। अन्नादुरई की मृत्यु के बाद वह डीएमके के कोषाध्यक्ष बने और उस वक्त करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। एमजीआर के मित्र करुणानिधि ने एमजीआर के करियर को नया मोड़ देने वाली फिल्म मंतिरी कुमारी के अलावा एमजीआर के लिए खासतौर से ऐसी पटकथाएं तैयार की जिनसे वे गरीबों के मसीहा के तौर पर सामने आए। उन फिल्माों की सफलता ने डीएमके को मजबूत बनाने का काम किया। सामाजिक विसंगति, गरीबी, तमिल-द्रविड़ और भाषाई आंदोलन की जिन बातों को तमिल समाज पिछवे डेढ़ दशक से सुनता आ रहा था, एमजी रामचंद्रन ने जमीनी स्तर पर उसके लिए संघर्ष किया।
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दोस्त ने चलाई दो गोलियां
12 जनवरी 1967 को एमजीआर की पहली फिल्म के हीरे एमआर राधा निर्माता केएन वासु के साथ एमजीआर से मिलने गए। लेकिन बातचीत के बीच अचानक राधा ने उठकर एमजीआर पर दाग दी गो गोलियां। गोलियां एमजीआर के कान छूती हुई उनके गर्दन में लगी। एमजीआर को अस्पलात में दाखिल करवाया गया। एमजीआर को अस्पताल में भर्ती करायागया। उन्हें गोली लगने की बात जब लोगों को पता चली तो प्रशंकर सड़कों पर उतर आए। अस्पताल में भीड़ उमड़ने लगी। ऑपरेशन के बाद एमजीआर ठीक तो हो गए लेकिन उन्होंने एक कान से सुनने की क्षमता खो दी और उनकी आवाज में भी बदलाव आ गया।
करुणानिधि से अलग होकर बनाई नई पार्टी
एक बार विधानसभा चुनाव के दौरान करुणानिधि ने एमजीआर को याद करते हुए कहा कि उनको मुख्यमंत्री बनाने में एमजीआर की भूमिका अहम थी। करुणानिधि ने एमजीआर के लिए कृतज्ञता व्यक्त की लेकिन फिर वापस एमजीआर की लोगों को आकर्षित करने की क्षमता करुणानिधि के लिए चिंता का विषय हो गई। करुणानिधि ने एमजीआर का मुकाबला करने के लिए अपने बेटे एमके मुत्तु को कॉलीवुड में लॉन्च किया। यहीं से करुणानिधि और एमजीआर के बीच मतभेद गहरा गए। एमजीआर ने डीएमके पर भ्रष्टाचार और अन्नादुराई के उसूलों से दूर जाने का आरोप लगाया तो करुणानिधि ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। जिसके बाद एमजीआर ने अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम बनाई जो बाद में ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कझगम कहलाई। यह राज्य की एक बड़ी पार्टी बनकर उभरी और डीएमके और एआईएडीएमके के बीच जोरदार टक्कर हुई। साल 1977 के चुनाव में एआईएडीएमके को सफलता मिली और एमजीआर पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। उस दौर में एमजीआर की जीत की राह इतनी आसान नहीं थी और डीएमके, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व जनता पार्टी के साथ हुए मुकाबले में एमजीआर ने बाजी मार ली। वो भी ऐसा कि एक बार मुख्यमंत्री बने तो अपनी आखिरी सांस 1987 तक तमिलनाडु के सीएम रहे।
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जब तपते रेगिस्तान में एमजीआर ने जयललिता को गोद में उठाया
एमजीआर के बाद एआईएडीएमके को आगे बढ़ाने वाली जे जयललिता न नेता बनना चाहती थीं, न अभिनेता। वो एक धाकड़ वकील बनना चाहती थीं। लेकिन महज दो साल की उम्र में पिता का देहांत होने के बाद उनकी मां ने बैंगलोर में उन्हें दादा-दादी के पास छोड़दिया। जिसके बाद वो संध्या नाम से तमिल फिल्मों में एक्टिंग करने लगी। जयललिता और एमजी रामचंद्रन की जोड़ी तमिल फिल्मों की सबसे हिट जोड़ी रही। दोनों की उम्र में 31 साल का फर्क था। लेकिन एमजीआर जयललिता के लिए सबकुछ थे। एक बार राजस्थान के रेगिस्तान में एमजीआर और जयललिता की फिल्म की शूटिंग चल रही थी। फिल्म के एक गाने में जयललिता को नंगे पांव डांस करना था। उस गर्म रेत पर जयललिता के लिए चलना भी मुश्किल हो रहा था। यह देखकर एमजीआर ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया था। उस जमाने में जयललिता और एमजीआर को लेकर अखबारों में कई तरह के खबर छपते थे। लेकिन एक इंटरव्यू में जयललिता ने कहा कि उनके बीच वहीं रिश्ता था जो एक गुरु और शिष्य में होता है। 1987 में जब एमजी रामचंद्रन का निधन हुआ था तो उस वक्त उनके परिवार वालों ने जयललिता को घर में घुसने से रोक दिया था। एमजीआर के निधन की खबर सुनकर जब जयललिता उनके घर पहुंची तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला। जयललिता ने जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया। काफी देर के बाद जब दरवाजा खुला तो किसी ने उन्हें ये नहीं बताया कि एमजीआर का शव कहां रखा है। बाद में उन्हें पता चला कि एमजीआर के शव को राजाजी हॉल ले जाया गया है। जयललिता एमजीआर के शव के पास पहुंच कर उनके सिराहने के पास खड़ी हो गई। उनकी आंखों से आंसू तक नहीं निकले। कहा जाता है कि वो दो दिनों में करीब 21 घंटे तक एमजीआर के शव के पास खड़ी रहीं। इस दौरान एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन की समर्थक जानबूझकर चलते-फिरते उनके पैरों को कुचलती रही ताकि जयललिता घायल होकर वहां से चलीं जाएं। लेकिन जयललिता वहीं दो दिन तक खड़ी रहीं। जब एमजीआर के पार्थिव शरीर को शव वाहन पर ले जाया जा रहा था। जयललिता भी दौड़कर उस वाहन पर चढ़ने लगीं लेकिन तभी एमजीआर की पत्नी के भतीजे ने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया। और जययलिता वहां से वापस लौट आई। निधन के एक साल बाद एमजीआर को भारत रत्न सम्मान से भी नवाजा गया। तमिलनाडु की सियासत और रुपहले पर्दे का कनेक्शन हमेशा से रहा है। वर्तमान दौर में अभिनेता से नेता बने कमल हासन चुनाव में उतर रहे हैं और कहा जा रहा है कि वो इस बार दो विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। जिसमें से एक सीट वो है जहां से एमजीआर 9 साल तक विधायक रहे। एमजीआर तो अब नहीं रहे लेकिन उनकी चर्चा के बिना तमिल सियासत अधूरी सी है। इसका ताजा प्रमाण ये है कि बीजेपी ने अपने नेताओं को यह हिदायत दी है कि वे चुनावी सभाओँ में अपनी बात शुरू करने से पहले कामराज और एमजीआर को याद करते हुए उनके प्रति श्रद्धा सुमन जरूर अर्पित करे। बीजेपी को इससे फायदा हो या ना हो लेकिन इतना तय है कि पूरे चुनाव वह एआईएडीएमके और डीएमके नेताओं का बीपी बढ़ाए रहेगाी। - अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- मार्च 4, 2021 17:34
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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिसने किसी दौर में कहा- मैं कामराज हूं, बिस्तर पर लेट कर भी चुनाव जीत सकता हूं। फिर क्या हुआ ऐसा कि इस दिग्गज कांग्रेसी नेता ने इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस से बाहर कर दिया।
एक नेता जिसने सीएम की कुर्सी छोड़ दी सिर्फ और सिर्फ संगठन को मजबूत करने की चाह में, वर्तमान दौर में देखें तो पद और सत्ता का लोभ राजनेताओं को फेविकॉल की तरह कुर्सी से चिपका कर रखता है। आज बात ऐसे शख्स की करेंगे जिसने शास्त्री को भी प्रधानमंत्री बनाया और इंदिरा को भी कुर्सी तक पहुंचाया। आज की कहानी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिसने किसी दौर में कहा- मैं कामराज हूं, बिस्तर पर लेट कर भी चुनाव जीत सकता हूं। फिर क्या हुआ ऐसा कि इस दिग्गज कांग्रेसी नेता ने इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस से बाहर कर दिया। कामराज को मात देने के लिए इंदिरा ने आखिर क्यों अपने प्रतिद्ववंदी डीएमके से गठजोड़ कर लिया।
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पांच राज्यों के तारीखों का ऐलान हो चुका है। सभी पार्टियां बहुमत पाने के लिए चुनावी जद्दोजहद में लगी है। भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी जिसे प्रतीकों की राजनीति करना बखूबी आता है। याहे वो सरदार पटेल हो या आंबेडकर या फिर बीते दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस का पराक्रम दिवस। बीजेपी आए दिन इन देश के ऐतिहासिक धरोहरों के लिए एक तरह का इवेंट टाइम कार्यक्रम बना लाइमलाइट बटोर लेती है और यही विपक्षी दलों के लिए मुसीबत का सबब भी बन जाता है। तमिलनाडु में बीजेपी अब कामराज और एमजीआरप पर अपना हक जताने के मूड में आ गई है। जिससे तमिल सियासत करने वाली पार्टियां डीएमके और एआईडीएमके कि भौहें तन गई। दरअसल, तमिलनाडु के चुनाव के मौके पर बीजेपी अपनी रैलियों में कामराज और एमजीआर के कट आउट लगा रही है। वैसे तो वैचारिक तौर पर देखा जाए तो इन दोनों नेताओं का बीजेपी या संघ से कोई नाता नहीं रहा है। लेकिन बीजेपी तमिलनाडु में इनकी अहमियत को भली-भांति समझती है। इसलिए वह अपने को इनके साथ दिखाना चाहती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे नेता कि कहानी सुनाएंगे जिसके बड़े-बड़े कट आउट की जरूरत बीजेपी को भी चुनावों में महसूस हो गई। तमिलनाडु के तीन बार के मुख्यमंत्री के कामराज की।
कामराज प्लान जिसने 6 मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे दिलवा दिये
साल 1962 का आम चुनाव जिसमें कांग्रेस ने एक बार फिर ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की और देश की बागडोर एक बार फिर पंडित जवाहर लाल नेहरू के हाथों में थी। लेकिन कुछ वक्त बीते की भारत और चीन के बीच युद्ध हो गया। एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत बहुत कुछ गंवा चुका था। भारतीय सेना के 1383 सैनिक शहीद हुए थे। 1696 सैनिकों का कुछ पता ही नहीं चला और चार हजार सैनिकों को युद्ध बंदी बनने की यातना झेलनी पड़ी। पंडित नेहरू और कांग्रेस पार्टी की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई और नतीजा ये हुआ कि 62 में ऐतिहासिक दर्ज करने वाली कांग्रेस एक साल बाद 3 लोकसभा उपचुनावों में हार गई। कामराज ने वो किया था जिसके बारे में आज सोचना भी मुश्किल है। कामराज ने खुद ही तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और उनके इस्तीफे के बाद छह केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कुर्सी छोड़ कर पार्टी में काम करना पड़ा था। पद छोड़कर पार्टी में काम करने की इस योजना को ही 'कामराज प्लान' कहा जाता है। भारत चीन युद्ध के बाद कमजोर हो रही कांग्रेस को संकटपूर्ण स्थिति से बाहर निकालने के लिए कामराज ने पंडित नेहरू को सुझाव दिया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को मंत्री पद से इस्तीफा देकर संगठन को मजबूत करने में जुट जाना चाहिए। कामराज प्लान का मकसद मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी के लोगों के मन के भीतर से सत्ता के लालच को दूर करना था और इसके स्थान पर संगठन के उद्देश्यों और नीतियों के लिए एक समर्पित लगाव पैदा करना। उनका ये सुझाव नेहरू को काफी पसंद आया। नेहरू ने इस प्लान का प्रस्ताव कार्यसमिति के पास भेजने को कहा। सीडब्ल्यूसी ने इस प्रस्ताव को पास किया और इसके अमल में आते ही 6 मुख्यमंत्री और 6 केंद्रीय मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा। उस वक्त के मद्रास और वर्तमान के तमिलनाडु राज्य के सीएम पद से कामराज ने इस्तीफा दिया, इसके साथ ही उत्तर प्रदेश से चंद्रभानु गुप्ता, ओडिशा के बीजू पटनायक और मध्य प्रदेश के सीएम भगवंत राव मंडलोई ने भी इस्तीफा दिया। कामराज प्लान के तहत 6 केंद्रीय मंत्रियों को भी इस्तीफा देना पड़ा जिसमें लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई और बाबू जगजीवन राम जैसे दिग्गज नाम शामिल थे। कुछ ही दिनों बाद कामराज को 9 अक्टबर 1963 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया।
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नेहरू के बाद कौन?
हिन्दुस्तान के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के देहांत के बाद सवाल उठा नेहरू के बाद कौन? जवाहर लाल नेहरू के देहांत के महज दो घंटे बाद कांग्रेस के जाने-माने नेता गुलजारी लाल नंदा को केयर टेकर प्रधानमंत्री बना दिया गया। लेकिन नेहरू के बाद उनका असली उत्तराधिकारी कौन था? इस सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ एक आदमी के पास था- के कामराज। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के कामराज उस वक्त तक देशभर में लोकप्रिय हो चुके थे। 27 मई 1964 को कामराज के सामने कांग्रेस पार्टी के अंदर से एक ऐसे व्यक्ति को चुनने की चुनौती थी जिसे सब अपना नेता मान ले। दिल्ली के त्यागराज मार्ग के बंगले में माहौल कुछ अलग था। मोरारजी देसाई यहां रहा करते थे। मोरारजी देसाई कांग्रेस के बड़े नेता थे और पंडित नेहरू की सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे। उस वक्त गुजरात और महाराष्ट्र एक राज्य हुआ करता था। लाल बहादुर शास्त्री जब से नेहरू की कैबिनेट में मिनिस्टर विथआउट पोर्टफोलियो थे तब से ही उन्हें नेहरू के बाद उत्तराधिकारी माना जा रहा था। प्रधानमंत्री पद के लिए मोरारजी देसाई की दावेदारी जल्द ही अखबारों की सुर्खियां बन गई। जैसे ही मोरारजी देसाई की दावेदारी पब्लिक हुई कांग्रस अध्यक्ष कामराज का काम आसान हो गया। क्योंकि कामराज मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनने से रोकने का फैसला पंडित नेहरू के निधन से पहले ही कर चुके थे। 1963 के सितंबर महीने में कामराज तिरूपति पहुंचे थे। उस वक्त वो कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं थे और उनके साथ गैर हिंदी भाषी राज्यों के कई नेता भी थे। नीलम संजीव रेड्डी, निजालिंगप्पा, एसके पाटिल और अतुल्य घोष के साथ बैठक में मोररार जी देसाई के उम्मीदवारी को लेकर खिलाफत के बीज पड़ चुके थे। मोरारजी देसाई चाहते थे कि प्रधानमंत्री चुनने का काम संसदीय दल करेन कि पार्टी। लेकिन कामराज ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का वर्चस्व जारी रखा। कामराज ने कांग्रेस में आम राय बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और तीन दिन तक देशभर के कांग्रेस नेताओं से मुलाकत की। 1 जून 1964 को कामराज और मोरारजी से मुलाकात के बाद लाल बहादुर शास्त्री के रूप में कांग्रेस की राय का ऐलान हो गया। कहा जाता है कि कामराज इंदिरा गांधी के लिए राजनीतिक पिच तैयार कर रहे थे। नेहरू के निधन के बाद इंदिरा ने शोक में होने की बात कहते हुए पीएम पद को लेकर दावेदारी से स्वयं की अलग हो गईं थी। कामराज को लगता था कि मोरारजी देसाई से मुकाबिल शास्त्री जी कम महत्वकांक्षा रखने वाले राजनेता हैं। जिससे आगे चलकर इंदिरा की राह खुद ब खुद आसान हो जाएगी। लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके कैबिनेट में बतौर आईबी मिनिस्टर इंदिरा गांधी को जगह मिली। लेकिन ताशकंद में 11 जनवरी 1966 में शास्त्री जी का निधन हो गया। हिन्दुस्तान खबर पहुंची तो लोग हैरान हुए परेशान हुए। ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री खुद नहीं बल्कि उनका पार्थिव शरीर हिन्दुस्तान पहुंचा।
इंदिरा गांधी को ऐसे मिली पीएम की कुर्सी
दिल्ली में एक बार फिर कुर्सी की खींचतान तेज हो गई और इस बार इंदिरा गांधी पूरी तरह से सक्रिय हो गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज के मन में क्या चल रहा है ये जानने के लिए इंदिरा गांधी उनसे मिलने पहुंची। केयर टेकर प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा का जिक्र कर इंदिरा कामराज की मंशा भांपने की कोशिश में थीं। लेकिन वो उसमें नाकाम साबित हुई। कामराज का अगला कदम क्या होगा इसपर सभी की नजर थी। इंदिरा गांधी के समर्थक और सलाहकार डीपी मिश्रा की किताब के अनुसार अतुल्य घोष और कांग्रेस सिंडीकेट के कई नेता कामराज पर प्रधानमंत्री बनने के लिए दवाब डाल रहे थे। कामराज के समर्थक उन पर फैसला लेने के लिए दबाव डाल रहे थे। कामराज ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मैं प्रधानमंत्री बन सकता क्योंकि मैं न हिंदी जानता हूं न अग्रेजी। जिसके बाद ये तय हुआ कि कामराज प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। इस बैठक से बेपरवाह इंदिरा के सामने ये सवाल कायम था कि क्या कामराज किंग की जगह किंगमेकर बनने के लिए तैयार थे?कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोरारजी देसाई सर्वसम्मति की बात इस बार नहीं माने और वो वोटिंग पर अड़ गए। इंदिरा गांधी को कामराज का समर्थन मिला। उस वक्त इंदिरा गांधी को मोरारजी देसाई के मुकाबले कमजोर माना जाता था लेकिन ये किंगमेकर कामराज का ही कमाल था कि कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर इंदिरा प्रधानमंत्री बन गई। कहा जाता है कि ये कामराज का आखिरी सफल दांव था।
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1967 का चुनाव और कामराज की हार
इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद रूपये के अवमूल्यन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इससे देश में महंगाई बढ़ गई। कामराज इंदिरा के इस फैसले से नाराज भी हुए लेकिन फिर वो कांग्रेस में नेहरू का सबसे अच्छा विकल्प इंदिरा को ही मानते थे। 1967 का चुनाव आता है जो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका सरीखा होता है। उन दिनों कामराज का पैर टूट गया था और उन्होंने बिस्तर पर से ही कहा था- मैं कामराज हूं, बिस्तर पर लेट कर भी चुनाव जीत सकता हूं। कांग्रेस यूपी, बिहार, पंजाब जैसे कई राज्यों में बुरी तरह से हारी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामराज खुद तमिलनाडु की एक विधानसभा से डीएमके की पार्टी के बैनर चले चुनाव लड़ रहे छात्र नेता से चुनाव हार जाते हैं।
दो भागों में विभाजित हुई कांग्रेस
मई 1967 में सर्वपल्ली राधा कृष्णन का कार्यकाल खत्म हो गया था। कांग्रेस की ओर से आंध्र प्रदेश के नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी बनाया गया। लेकिन इंदिरा गांधी ने उपराष्ट्रपति वीवी गिरी को पर्चा दाखिल करने के लिए बोला और चुनाव से ठीक एक दिन पहले कांग्रेसियों से अंतरआत्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की। कांग्रेस उम्मीदवार रेड्डी चुनाव हार जाते हैं और वीवी गिरी राष्ट्रपति बन जाते हैं। इंदिरा की इस हरकत से कांग्रेस के नेता निजीलिगप्पा, अतुल्य घोष, एसके पाटिल और कामराज नाराज होकर नवंबर 1969 में एक मीटिंग बुलाई और इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया। इंदिरा के इस्तीफा नहीं देने के बाद बहुमत साबित करने की नौबत आई और 229 सांसदों का इंदिरा को समर्थन मिला। जबकि कामराज के धुर विरोधी करुणानिधि की पार्टी डीएमके और वाम दलों ने भी इंदिरा का साथ दिया। कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं के सिंडिकेट ने इंदिरा पर शिकंजा कसना चाहा तो उन्होंने 1969 में पार्टी ही तोड़ दी। कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं के सिंडिकेट ने इंदिरा पर शिकंजा कसना चाहा तो उन्होंने 1969 में पार्टी ही तोड़ दी. इंदिरा की कांग्रेस को कांग्रेस रूलिंग यानी कांग्रेस आर कहा जाता था जबकि कामराज की कांग्रेस को कांग्रेस आर्गनाइजेशन यानी कांग्रेस ओ कहलाती थी। तमिलनाडु में ही कामराज कमजोर पड़े गए। उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव में हार मिलने लगी। कामराज की सेहत खराब रहने लगी। 2 अक्टूबर 1975 को कामराज का हार्ट अटैक के चलते निधन हो गया। कामराज के निधन के अगले साल ही इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।
मिड डे मील के जनक
बहुत ही कम लोग जानते हैं कि आज जिस मिड डे मील को लेकर चर्चा होती है। भारत में पहली मिड डे मील योजना कुमार स्वामी कामराज यानी के कामपाज ने मद्रास के मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू की थी। खुद गरीबी के चलते स्कूल नहीं जा पाने वाले कामराज ने ये संकल्प लिया कि मुझे हर बच्चे को स्कूली शिक्षा मुहैया करवानी है, उसे खाना देना और यूनिफार्म देनी है। मिड डे मील, फ्री यूनीफॉर्म जैसी कई योजनाओं के जरिये स्कूली व्यवस्था में कामराज ने इतने जबरदस्त सुधार किए की जो साक्षरता ब्रिटिश राज में महज 7 फीसदी थी वो 37 फीसदी तक पहुंच गई। चेन्नई के मरीना बीच पर कामराज का स्टेत्यू लगा है। वो उनके अकेले का नहीं बल्कि उनके बगल में दो बच्चों का स्टेच्यू भी है, जो कामराज के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए काम को एक श्रद्धांजलि है।
ये तो थी तमिलनाडु के दिग्गज नेता के कामराज की कहानी। अब अगर वर्तमान परिस्थिती की बात करे तो पीएम मोदी की रैली में कामराज और एमजीआर के प्रति सम्मान दिखाने के लिए दोनों नायकों के बड़े कटआउट के मुकाबले मोदी के छोटे कट आउट लगाए गए। तर्क दिया गया कि हम राष्ट्र नायकों को राजनीतिक पाले में बांट कर नहीं देखना चाहेत। जो राष्ट्र का है वह सबका है। एआईडीएमके और डीएमके दोनों पार्टियां इसके दूरगामी नतीजों को बखूबी जानती है। - अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- मार्च 3, 2021 18:53
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पांच बार का विधायक और हिस्ट्रीशीटर मुख्तार अंसारी के खिलाफ मऊ, गाजीपुर और लखनऊ समेत कई थानों में जंघन्य अपराधों के कई मामले दर्ज हैं। वो जेल में सजा काट रहा है।
माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को लेकर कांग्रेस की पॉलिटिक्स क्या है? प्रियंका गांधी रोज लगभग एक ट्वीट यूपी में अपराध के मुद्दे पर करती हैं। लेकिन पिछले पांच महीने से मुख्तारवादी आतंक पर दुनिया की सबसे बड़ा अपराध विरोधी कार्रवाई चल रही है तो मुख्तार को यूपी में कानून की चौखट तक लाने में पंजाब की कांग्रेस सरकार और पंजाब पुलिस बाधा पैदा कर रही है। मुख्तार के अपराध के हाथों अपनों को खोने वाले प्रियंका गांधी को चिट्ठी लिखकर मुख्तार को बचाने वाले आरोपी पंजाब सरकार से सवाल भी पूछा। उत्तर प्रदेश में अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण का दावा करने वाली कांग्रेस महसाचिव प्रियंका गांधी वाड्रा क्या दूसरों को ऊंगली दिखाती हैं और अपनों को छोड़ देती हैं। इन तमाम सवालों के पीछे की वजह है बाहुबली मुख्तार अंसारी जिसको लेकर दो राज्यों के बीच ठन गई है और मामला देश की सबसे बड़ी अदालत की दहलीज पर आ खड़ा हुआ।
सबसे पहले आपको बताते हैं कि मुख्तार अंसारी कौन है?
पांच बार का विधायक और हिस्ट्रीशीटर मुख्तार अंसारी के खिलाफ मऊ, गाजीपुर और लखनऊ समेत कई थानों में जंघन्य अपराधों के कई मामले दर्ज हैं। वो जेल में सजा काट रहा है। आप कहेंगे कि मामले उत्तर प्रदेश में तो फिर वो पंजाब में क्या कर रहे हैं। इस जावब के लिए थोड़ा पीछे लिए चलते हैं। 9 जुलाई 2019 को मुन्ना बजरंगी नाम के अपराधी की बागपत जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई। मुन्ना बजरंगी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में आरोपी था। उस वक्त मुन्ना बजरंगी मुख्तार का खास शूटर माना जाता था। हालांकि बाद में दोनों के संबंध खराब हो गए थे। मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद मुख्तार की जान को खतरा बताया गया और सुरक्षा की मांग की गई। लखनऊ और गाजीपुर में ये बातें भी चलती हैं कि मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद ही मुख्तार को पंजाब जेल में शिफ्ट करने का प्लान बनाया गया। पंजाब में रियल स्टेट का काम करने वाले होम लैंड के सीईओ ने मोहाली पुलिस को शिकायत दी कि 9 जनवरी 2019 को उनसे दस करोड़ की रंगदारी मांगी गई और रंगदारी मांगने वाले ने अपना नाम यूपी का कोई अंसारी बताया। पुलिस ने मामला दर्ज किया और आरोपी बनाया बांदा के पते पर रहने वाले अंसरी को। मुख्तार अंसारी उस वक्त बांदा की जेल में बंद था। केस दर्ज होने के 15 दिनों के भीतर पंजाब पुलिस प्रोजक्शन वारंट लेकर पहुंची और मुख्तार को ले आई। तब से मुख्तार रोपड़ जेल में बंद है। योगी सरकार मुख्तार की कस्टडी मांगती है तो पंजाब सरकार ये कह कर मना कर देती है कि स्वास्थ्य कारणों से मुख्तार को यात्रा करने से मना किया गया है। बीजेपी का आरोप है कि पंजाब सरकार जानबूझकर मुख्तार को संरक्षण दे रही है और यूपी नहीं भेज रही है। 2 फरवरी को गाजीपुर से बीजेपी विधायक और कृष्णानंद राय की पत्नी अल्का राय ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा कि आपने और आप की पंजाब सरकार ने मेरे पति के हत्यारे मुख्तार और उसके बेटे को राज्य अतिथि के रुप में शरण दे रखी है। अल्का राय ने कहा कि मैं चाहती हूं ऐसे अपराधियों का मत मदद करिए, ऐसे अपराधी को पेशी पर आने दीजिए। अल्का कई बार प्रियंका गांधी को चिट्ठी लिख चुकी हैं। 29 नवम्बर 2005 को करीमुद्दीनपुर थाना क्षेत्र गोडउर गांव निवासी भाजपा विधायक कृष्णानंद राय क्षेत्र के सोनाड़ी गांव में क्रिकेट मैच का उद्घाटन करने के बाद वापस अपने गांव लौट रहे थे। शाम करीब चार बजे बसनियां चट्टी पर उनके काफिले को घेरकर ताबड़तोड़ फायरिंग हुई थी। एके-47 से गोलियों की बौछार कर विधायक समेत सात लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हमले के दौरान करीब 500 से अधिक गोलियों का प्रयोग किया गया था। इस मामले में विधायक मुख्तार अंसारी समेत और मुन्ना बजरंगी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। बाद में दिल्ली की अदालत ने मुख्तार और अन्य छह को इन आरोपों से बरी कर दिया था।
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योगी सरकार ने कहा कि मुख्तार अंसारी को 2019 में एक मामूली केस में पेशी के लिए यूपी की बांदा जेल से पंजाब की रोपड़ जेल लाया गया था। तब से वह वहीं है। यूपी पुलिस की तमाम कोशिशों के बाद भी रोपड़ जेल सुपरिटेंडेंट उसे भेजने से मना करते रहे हैं। यूपी सरकार ने मुख्तार को उत्तर प्रदेश ले जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक और कोशिश की थी। हलफनामा डाला था। सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर अपली की गई और दलील दी गई कि न्याय के हित में अपनी विशेष शक्ति का इस्तेमाल कर मुख्तार को वापस यूपी भेजे। मोहाली में मुख्तार के खिलाफ दर्ज केस को भी मोहाली से प्रयागराज ट्रांसफर किया जाए। प्रयागराज में एमपी/एमएलए कोर्ट में अपराध के 10 मुकदमें दर्ज हैं। बांदा जेल सुपरिटेंडेंट ने बिना एमपी/एमएलए कोर्ट की अनुमति के पंजाब पुलिस को सौंपा। मुख्तार के खिलाफ कई बार पेशी वारंट जारी हुआ। लेकिन रोपड़ जेल अधिकारी उसे बीमार बताते रहे। मोहाली मामले में दो साल से चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है लेकिन फिर भी मुख्तार अंसारी वहां जमानत नहीं मांग रहा है। मिलीभगत साफ दिख रही है। मुख्तार अंसारी 15 साल बांदा की जेल में था जहां उसको सभी मेडिकल सुविधा प्रदान की गई थी। यूपी सरकार मुख्तार अंसरी की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर प्रतिबद्ध है।
मुख्तार पर प्रियंका मेहरबान
मुख्तार अंसारी को कांग्रेस शासित राज्य पंजाब सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश की कोर्ट में पेशी नहीं देने की अनुमति देने को लेकर सोशल मीडिया पर कांग्रेस की जमकर किरकिरी हुई। ट्वीटर पर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा को भी निशाना बनाया गया। यहां तक की ट्विटर पर मुख्तार पर मेहरबान प्रियंका टॉप ट्रेंड में भी रहा था।
यूपी में योगी के खौफ का बुलडोजर चल रहा है
माफियाओं पर योगी सरकार का स्ट्राइक लगातार जारी है। मुख्तार से लेकर अतीक तक सब टागरेट पर हैं। योगी ने कैसे यूपी के भू-माफियाओं से 67 हजार हेक्टेयर जमीन खाली करवा ली गई। उत्तर प्रदेश के माफियाओँ में इस वक्त जिसका खौफ चल रहा है वो नाम है योगी आदित्यनाथ। यूपी में न उन अपराधियों की खैर है जो बल और बंदूक के दम पर कभी दहशत का खेल खेलते थे। न उन भूमाफियाओं का जिन्होंने गरीबों और किसानों की जमीनें हड़प ली। यूपी के हर माफिया पर योगी का हंटर नॉनस्टॉप चल रहा है। माफियाओँ के खिलाफ योगी सरकार का ये एक्शन साल 2017 से जारी है। अब तक 67 हजार हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन इन माफियाओं से खाली करवाई जा चुकी है। इन जमीनों पर मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे कई गैंगस्टर का कब्जा था। योगी सरकार इन जमीनों पर मिनी स्टेडियम, पंचायत घर और टॉयलेट बनवा रही है। अब तक कुल 1 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जब्त की गई है। यूपी के माफियाओं को योगी का मैसेज बहुत साफ है। यूपी में गुंडा-गर्दी नहीं चलेगी।
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पंजाब जेल में ऐश करने का आरोप
यूपी के बाहर भी मुख्तार के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद से माना गया कि मुख्तार पर शिकंजा कस रहा है। लेकिन बाद में इस बात का पता चला कि यूपी के साथ तो बड़ा खेल हो गया। बेहद ही चतुराई के साथ मुख्तार यूपी से बाहर हो गया। इसके साथ ही मुख्तार के पंजाब की जेल में ऐश-ओ-आराम के साथ रहने की भी खबरें आई। जिसके बाद यूपी सरकार के कान खड़े हुए और उन्होंने अपने यहां दर्ज केस के सिलसिले में मुख्तार की वापसी की मांग करना शुरू कर दिया। लेकिन पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी तो पंजाब सरकार भी नामचीन वकीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट आ खड़ी हुई।
मुख्तार में पंजाब सरकार की दिलचस्पी के मायने
पंजाब में कांग्रेस सरकार है और मुख्तार का कांग्रेस के कोऊ राजनीतिक रिश्ता नहीं है। वह बीएसपी के विधायक हैं लेकिन इसके बावजूद अंसारी के लिए सुप्रीम कोर्ट तक कांग्रेस सरकार की लड़ाई से कई सवाल खड़े हुए। खबर तो ये भी है कि मुख्तार अंसारी के पंजाब सरकार के कुछ प्रभावशाली लोगों से अच्छे संबंध होने की बात भी कही जाती है। - अभिनय आकाश
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