एमनेस्टी इंटरनेशनल के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं?

Amnesty International
अभिनय आकाश । Oct 5 2020 3:06PM

भारत में मानवाधिकारों पर अकसर बहस चलने लगती है और एमनेस्टी इंटरनेशनल समय-समय पर रिपोर्टें जारी कर मानवाधिकारों के हनन के मामले प्रकाश में लाती रहती है। भारत सरकार का विरोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल अवैध फंडिंग और एनजीओ की आड़ में गैर कानूनी धंधों को बढ़ावा देने को लेकर संदेह के घेरे में हैं।

आपने देखा होगा कि भारत में जब भी कोई बड़ा मुद्दा होता है चाहे वो आपके हित में ही क्यों न हो, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी रहते हैं कि इधर मुद्दा उठा और उधर बिना वक्त गंवाए उसके खिलाफ झंडा उठा लेते हैं। कभी मानवधिकारों के हनन के नाम पर तो कभी अधिकारों के दमन के नाम पर। ये ऐसे लोग हैं जिनका पेशा ही सरकार के विरोध में प्रदर्शन करना है। आप अगर ध्यान से याद करेंगे तो खुद ही महसूस करेंगे की ऐसी कई घटनाएं ऐसी हुई जिसके खिलाफ पेशेवर प्रदर्शनकारियों के गुट ने मोर्चा खोल दिया हो। भारत में मानवाधिकारों पर अकसर बहस चलने लगती है और ह्यूमैन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल समय-समय पर रिपोर्टें जारी कर मानवाधिकारों के हनन के मामले प्रकाश में लाती रहती है। भारत सरकार का विरोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल अवैध फंडिंग और एनजीओ की आड़ में गैर कानूनी धंधों को बढ़ावा देने को लेकर संदेह के घेरे में हैं।  जब इस संस्था की जांच शुरू हुई तो खुद पर उठते सवालों का जवाब देने की बजाय इस अंतरराष्ट्रीय संस्था बोरिया बिस्तर बांधकर भारत से खिसकने की बात सामने आई। एमनेस्टी इंटरनेशनल का इस तरह के विवादों से पुराना रिश्ता रहा है। कभी टॉर्चर के खिलाफ काम करने के लिए नोबेल पीस प्राइज मिला, तो कभी सरकारों ने इन पर केस भी किया। आज के इस विश्लेषण में आपको बताएंगे- एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है? क्या आरोप इसपर लगे हैं और सरकार पर इस संस्था ने क्यों सवाल उठाए हैं। 

सबसे पहले आपको पांच लाइनों में बताते हैं कि- एमनेस्टी इंटरनेशनल है क्या?

  • एमनेस्टी इंटरनेशनल एक अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था है जो अपना उद्देश्य "मानवीय मूल्यों, एवं मानवीय स्वतंत्रता, को बचाने एवं भेदभाव मिटाने के लिए शोध एवं प्रतिरोध करने एवं हर तरह के मानवाधिकारों के लिए लड़ना बताती है।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल की स्थापना 1961 में लंदन में गलत आरोपों पर जेलों में सजा काट रहे कैदियों की रिहाई के लिए एक अभियान के तहत हुई थी। 
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल करीब 150 देशों में काम करती है। भारत में संस्था के पहले निदेशक पूर्व रक्षा मंत्री जॉज फर्नांडीज थे।
  • 1974 में संयुक्त राष्ट्र ने इनके टॉर्चर के खिलाफ प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल के सदस्य सीन मैकब्राइड को इसी काम के लिए नोबेल पीस प्राइज दिया गया।
  • भारत में इससे पहले भी एमनेस्टी को कई बार अपने कामकाज को बंद करना पड़ा है। 

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अब आपको बताते हैं कि एमनेस्टी इंटरनेशनल के आरोप क्या हैं?

एमनेस्टी का कहना है कि 10 सितंबर को उसे पता चला कि उसके सारे बैंक खातों को सरकार ने फ्रीज कर दिया है। इस वजह से संस्था को अपने सभी कर्मचारियों की नौकरियां खत्म करनी पड़ी हैं। इसके साथ ही सभी अभियान और शोध भी बंद करने पड़े हैं।

भारत में एमनेस्टी के निदेशक अविनाश पांडेय का कहना है कि सरकार संस्था के पीछे इसलिए पड़ी है, क्योंकि वो लगातार सरकार के कामों में पारदर्शिता की मांग करती रही है। संस्था ने दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस की जवाबदेही स्थापित करने की भी मांग की थी।

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सरकार पर उठाए थे सवाल

एमनेस्टी ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा था कि फ़रवरी में दिल्ली में हुए दंगों में मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ था।

दिल्ली पुलिस ने रिपोर्ट का खंडन करते हुए अख़बार द हिंदू से कहा था कि एमनेस्टी की रिपोर्ट "एकतरफ़ा, पक्षपाती और विद्वेषपूर्ण" है।

इस साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म किए जाने के एक साल पूरा होने पर एमनेस्टी ने हिरासत में रखे गए सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को रिहा किए जाने और सामान्य इंटरनेट सेवा बहाल करने की माँग की थी।

2019 में एमनेस्टी ने अमरीका में विदेश मामलों की एक समिति के सामने दक्षिण एशिया में मानवाधिकारों की स्थिति पर सुनवाई के दौरान कश्मीर के बारे में अपनी पड़ताल को पेश किया था।

एमनेस्टी बार-बार ये कहते हुए सरकार की आलोचना करती रही है कि भारत में असंतोष का दमन किया जा रहा है।

केंद्र सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के झूठे दावों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने स्पष्टीकरण में एमनेस्टी इंटरनेशनल को करारा जवाब दिया है। पीआईबी की तरफ से  जारी बयान में साफ कहा गया है कि मानव अधिकारों की आड़ में देश के कानून नहीं तोड़े जा सकते। एक-एक करके केंद्र सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल की करतूतों की अपने बयान में पोल खोलनी शुरू की। केंद्र सरकार के बयान के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एफसीआरए के अंतर्गत केवल एक बार स्वीकृति पाई थी और वो भी 20 वर्ष पहले साल 2000 में। तब से आज तक एमनेस्टी इंटरनेशनल को एक बार भी एफसीआरए से स्वीकृति नहीं मिली है। लेकिन इस अधिनियम से बचने के लिए एमनेस्टी के यूके विभाग ने भारत में पंजीकृत 4 संगठनों को भारी मात्रा में पैसे भेजें जिसे उन्होंने विदेशी निवेश की संज्ञा दी। काफी धनराशि एफसीआरए के अंतर्गत गृह विभाग की स्वीकृति के बिना भेजे गए और देश के कानून के विरुद्ध भेजे गए। इससे पहले भी एमनेस्टी इंटरनेशनल को इन्हीं कारणों से भारत में अपनी गतिविधियां में रोक लगानी पड़ी थी क्योंकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने लंदन में स्थित मुख्य कार्यालय में फंड की आपूर्ति पर रोक लगाई थी। 2006 से 2 बार ऐसी याचिका निरस्त किया गया था। वित्तीय अनियमितताओं के कारण प्रवर्तन निदेशालय ने 2018 में बेंगलुरू स्थित एमनेस्टी के कार्यालय पर छापा भी मारा था।

''मानव अधिकार और सच्चाई की जो लोग दुहाई दे रहे हैं वह कुछ नहीं बल्कि अपने गतिविधियों से ध्यान हटाने की चाल है। इस तरह के बयान उक्त संगठन के विरुद्ध जांच पड़ताल पर भी काफी असर डालेंगे।''

यह संस्था जितना अपने कार्य के लिए जानी जाती है उतना ही इसका नाता एक खास तबके के लिए भी दिखता है। इस संस्था पर कई बार आरोप लगे हैं कि यह पश्चिमी देशों के हित में कार्य करती है। भारत में 25 अक्टूबर को इस संस्था के निदेशक आकार पटेल के घर ईडी ने छापा मारा था जबसे ही यह संस्था चर्चा में है। 

भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल की सफलता और विवाद पर एक नजर डालते हैं

2010 में भारत सरकार ने ओडिशा के नियामगिरी पहाड़ियों में वेदांता कंपनी के बॉक्साइट प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया।

वहां की जनजाति ‘डोंगरिया कोंड’ ने इसके खिलाफ कैंपेन कर रखा था। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसमें बड़ी मदद की थी। क्योंकि इस प्रोजेक्ट से जनजातियों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा था।

भारत में ‘भूमि अधिग्रहण’ को लेकर भी एमनेस्टी इंटरनेशनल का एक विवाद हुआ। एक तरफ भारत सरकार मेक इन इंडिया कैंपेन चला रही थी वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत में भूमि अधिग्रहण से जुड़े किसानों के दर्द को पूरी दुनिया को दिखा रहा था।

एनजीओ ने कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ अभियान चलाया। 

26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब, संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन के समर्थन में भी एमनेस्टी ने दुनिया भर में अभियान चलाया था। 

भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर भी इस संस्था ने खूब बयान जारी किए थे।

विदेशों में भारत की छवि खराब करने पर फोकस।  

दिल्ली में इसी साल फरवरी में हुए दंगों के बाद एमनेस्टी ने बहुत संदिग्ध भूमिका निभाई थी। 

2016 के अगस्त में, एमनेस्टी इंडिया के ख़िलाफ़ ये आरोप लगाते हुए देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था कि उसके एक कार्यक्रम में भारत विरोधी नारे लगे। तीन साल बाद, एक अदालत ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था।

2018 के अक्तूबर में एमनेस्टी के बेंगलुरू स्थित दफ़्तरों पर ईडी ने छापा मारा था।  तब भी उसके खाते फ़्रीज़ कर दिए गए थे, लेकिन एमनेस्टी ने कहा कि अदालत के हस्तक्षेप के बाद उसे खाते से लेन-देन की मंज़ूरी मिल गई।

फिर 2019 में संस्था के अनुसार उसके दर्जनों चंदा देने वालों को इनकम टैक्स विभाग की ओर से नोटिस भेजा गया। इसी साल उसके दफ़्तरों पर फिर छापे पड़े, लेकिन इस बार ये छापे सीबीआई ने मारे।

एमनेस्टी इंटरनेशनल को इससे पहले कांग्रेस की अगुआई वाली गठबंधन सरकार के कार्यकाल में भी मुश्किल हुई थी।

2009 में भी उसने भारत में अपना काम स्थगित कर दिया था। तब संस्था का कहना था कि विदेशों से चंदा लेने के लिए उसका लाइसेंस बार-बार रद्द किया जा रहा था।

दुनिया के कई देश एनजीओ के इस खेल से परेशान

भारत ही नहीं, दुनिया के कई देश एनजीओ के इस खेल से परेशान हैं। रूस, इजराइल, हंगरी और इजिप्ट समेत 40 देशों ने इसके खिलाफ कड़े कानून भी बनाए हैं। अमेरिका में भी किसी विदेशी संस्था के वहां की घरेलू राजनीति में दखलंदाजी पर कड़ी रोक है। अब भारत सरकार भी उसी नीति को लागू कर रही है। 

विदेशी फंडिंग रोकने की मोदी सरकार ने क्या कोशिश की है?

हाल ही में राज्यसभा में फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट 2020 यानी FCRA बिल को पास किया गया है। नए बिल में अब गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के प्रशासनिक कार्यों में 50% विदेशी फंड की जगह बस 20 फीसदी फंड ही इस्तेमाल हो सकेगा। यानी अब इसमें 30% की कटौती कर दी गई है।

अब एक एनजीओ मिलने वाले ग्रांट को अन्य एनजीओ से शेयर भी नहीं कर सकेगी। इसके साथ ही एनजीओ को मिलने वाले विदेशी फंड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, नई दिल्ली की ब्रांच में ही रिसीव किए जा सकेंगे।

केंद्र सरकार का कहना है कि हमने इस बिल को इसलिए पेश किया है, ताकि विदेशों से मिलने वाले फंड को रेगुलेट किया जा सके। ये फंड किसी भी सूरत में देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल ना हों सकें।

कुल मिलाकर कहे तो एमनेस्टी हो या कोई भी दूसरी विदेशी संस्था, सबसे बड़ा सवाल है कि उन्हें हमारे देश में मानवाधिकार और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर प्रवचन देने का अधिकार किसने दिया है? ये एक तरह का वैचारिक उपनिवेशवाद है क्योंकि ये विदेशी संस्थाएं कई बार हमारी सरकारों और उनकी नीतियों को भी प्रभावित करने लग जाती है। -अभिनय आकाश

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