जरांगे भले खुद को जीता हुआ मान रहे, असली खेल तो फडणवीस ने कर दिया, मराठा आंदोलन के पर्दे के पीछे कौन?

Fadnavis
ANI
अभिनय आकाश । Sep 3 2025 4:00PM

29 अगस्त को वो इस प्रदर्शन को शुरू करते हैं। फिर 2 सितंबर को इस अनशन को खत्म कर दियाजाता है क्योंकि फडणवीस सरकार उनकी बात मान लेती है। लेकिन जरांगे ने आंदोलन खत्म करने के बाद इसे अपनी बड़ी जीत बताया।

सुबह तक माहौल गर्म था, शाम होते होते शांति स्थापित हो गई। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन वापस ले लिया गया है। लेकिन सवाल है कि ये स्वत:स्फूर्त था या कुछ तो है जिसकी परदादारी है। क्या ये सब एकनाथ शिंदे ने किया ताकी फडणवीस की दिक्कतें बढ़ाई जा सके। या इसके निशाने पर खुद शिंदे थे और ये कवायद इसके ठाकरे बंधुओं की साझी रणनीति थी। क्या शरद पवार की भी किसी तरह की भूमिका थी? आंदोलन वापस लेने के बाद मराठा एक्टिविस्ट मनोज जरांगे की आगे की रणनीति क्या है? इस पूरी कहानी का पटापेक्ष किस तरह से होगा। मनोज जरांगे ने काफी वक्त से आंदोलन छेड़ा हुआ था। इस आंदोलन को मराठा आरक्षण आंदोलन नाम दिया गया। कहा गया कि वो मराठाओं के आरक्षण के लिए अपनी आवाज को बुलंद कर रहे हैं। 29 अगस्त को वो इस प्रदर्शन को शुरू करते हैं। फिर 2 सितंबर को इस अनशन को खत्म कर दियाजाता है क्योंकि फडणवीस सरकार उनकी बात मान लेती है। लेकिन जरांगे ने आंदोलन खत्म करने के बाद इसे अपनी बड़ी जीत बताया। 

इसे भी पढ़ें: Maratha reservation: महाराष्ट्र सरकार ने कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया की आसान, ऐसे कर सकते हैं आवेदन

आंदोलन की शुरुआत

1997 में मराठा आरक्षण के लिए पहला बड़ा आंदोलन है। मराठा महासंघ और मराठा सेवासंघ ने शुरुआत की। कहा गया कि मराठा कथित उच्च जातियों से नहीं बल्कि कुनबी समुदाय से आते हैं। मराठा को खेती- किसानी वाला समुदाय माना जाता है। 2008 से 2014 के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्रियों का मराठा आरक्षण की मांग को समर्थन किया। पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार और विलासराव देशमुख ने मराठा आरक्षण की मांग का समर्थन कर दिया। जून 2014 में पृथ्वीराज चौगान की सरकार ने एक प्रस्ताव स्वीकार किया जिसके तहत सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। नवंबर 2014 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस आरक्षण पर रोक लगा दी। 

कमीशन का गठन

जून 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठों की सोशल, एजुकेशनल और फाइनेंशियल स्टेटस की स्टडी के लिए स्टेट बैकवर्ड क्लास कमीशन का गठन किया। नवबंर 2018 में कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर महाराष्ट्र विधानसभा में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित हो गया। दिसंबर 2018 में इस कानून को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन था, जिसके मुताबिक 50 % रिजर्वेशन की सीमा तोड़ी  नहीं जा सकती। 

कोर्ट में तब क्या हुआ

जून 2019 में मराठों को आरक्षण देने वाले कानून की संवैधानिक वैधता पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी। हालांकि इसे 17 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत करने का सुझाव दिया गया। मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार  दिया। 

इसे भी पढ़ें: Maratha quota protest: मुंबई पुलिस ने मनोज जारांगे को जारी किया नोटिस, कहा- तुरंत खाली करें आजाद मैदान

जरांगे की एंट्री 

2023 में इसमें एक अहम पड़ाव आया। जरांगे ने 29 अगस्त 2023 को जालना के अपने गांव में पहली बार अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की। तब से ये उनका सातवां विरोध प्रदर्शन था। जरांगे ने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले कई विरोध रैलियां और भूख हड़तालें की थी। 20 फरवरी 2024 को एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठों को 50 प्रतिशत की सीमा से उपर 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए एक विधेयक पेश किया। इस साल जनवरी में भी राज्य सरकार की ओर से भाजपा विधायक के हस्तक्षेप के बाद जरांगे ने छठे दिन भूख हड़ताल समाप्त कर दी। मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर मनोज जरांगे पाटिल सड़कों पर उतरे तो लेकिन उसमें उन्हें सिर्फ विपक्षी पार्टी के नेताओं का मिला। आम जनता को इस बात का पता है कि देवेंद्र फडणवीस की सरकार पहले से ही आरक्षण दे रही है। 2024 की बात है। फडणवीस ने 10 फीसदी मराठा आरक्षण का बिल पास करवाया था। सुप्रीम कोर्ट में ये चैलेंज भी हो चुका है। जरांगे की मुख्य मांग ओबीसी कैटेगरी के तहत कुनबी स्टेटस थी। इससे मराठाओं को ओबीसी कोटा यानी 27 फीसदी में शामिल किया जा सकता है, जो ज्यादा फायदेमंद हैं। फडणवीस ने जरांगे को राजनीतिक बताते हुए उनकी आलोचना की थी। लेकिन इस बार कैबिनेट सब कमेटी ने इन मांगों को मान लिया। 

विपक्ष को मिला मुद्दा 

महाराष्ट्र में बीएमसी के चुनाव होने हैं और उससे पहले अभी कोई मुद्दा हाल फिलहाल नजर नहीं आ रहा। महाराष्ट्र में तमाम हिंदुओं ने विधानसभा चुनाव में साबित कर दिया था। जो मौलाना ये चाहते थे कि जहां जहां बीजेपी का कैंडिडेट खड़ा हो वहां हराया जाए, उन सब को जवाब दिया। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में महायुति को जो प्रचंड बहुमत मिला। उद्धव ठाकरे को निराशा हाथ लगी। वो बताने के लिए काफी था कि महाराष्ट्र की जनता किसके साथ है। विपक्षी दलों की नेताओं की टेंशन बढ़ गई। बाला साहेब के सिद्धांतों को लेकर कहीं न कहीं मौजूदा सरकार आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है। महाराष्ट्र कई चीजों में आगे बढ़ता नजर आ रहा है। शायद यही वजह है कि विपक्षी दल को लगा कि चाहे लोकल लेवल के मुद्दे हो या बड़े स्तर के मसले हो, कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिससे सरकार को घेरा जा सके। 

मराठी बनाम हिंदी बनाने की कोशिश 

कुछ दिन पहले मराठी बनाम हिंदी देखा गया। इसे जबरदस्त तरीके से मुद्दा बनाया गया। लेकिन उस मुद्दे को बहुत ही होशियारी के साथ देवेंद्र फडणवीस सरकार ने हैंडल कर लिया। उस मुद्दे को ज्यादा हाइप नहीं मिल पाया। जिस फैसले पर तंज कसा जा रहा था और मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही थी। उस फैसले को वापस लेते हुए फडणवीस सरकार ने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया। विपक्षी दलों के सारे मुद्दे धराशायी हो गए। फिर मैदान में जरांगे की एंट्री होती है। वो ये बताने की कोशिश में हैं कि मराठाओं की लड़ाई वही लड़ रहे हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि लड़ लड़ाकर 2024 में खुद फडणवीस सरकार ने 10 प्रतिशत आरक्षण का बिल पास कराया था।

All the updates here:

अन्य न्यूज़