राम के नाम पर CM की कुर्सी कुर्बान करने वाला नेता, जिसने बीजेपी के खात्मे की दो बार खाई कसम

kalyan singh
अभिनय आकाश । Jan 5 2021 4:38PM

कल्याण सिंह का जन्म पांच जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ। कल्याण सिंह के एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनके पुत्र राजवीर सिंह बीजेपी से एटा से सांसद हैं और उनके पोते योगी सरकार में मंत्री है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक प्रयोगशाला है जिसमें जात, धर्म, सांप्रदाय लगभग हर तरह के राजनीतिक समीकरण पर प्रयोग होता है। साल 2014 का लोकसभा चुनाव, 2017 का विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एक बात तो साफ ही कर दिया की यूपी में योगी के टक्कर का कोई नहीं। योगी आदित्यनाथ को बीजेपी का फायर ब्रांड नेता माना जाता है। लेकिन वक्त ऐसा भी था जब उत्तर प्रदेश की सियासत में कल्याण सिंह की तूती बोलती थी। कल्याण सिंह का जन्म पांच जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ। कल्याण सिंह के एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनके पुत्र राजवीर सिंह बीजेपी से एटा से सांसद हैं और उनके पोते योगी सरकार में मंत्री है। 

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुआ करते थे। हिंदू साधु-संत अयोध्या कूच कर रहे थे। उन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी। प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था, इसके चलते श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं दिया जा रहा था। पुलिस ने बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी। कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई थी। पहली बार 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में 5 लोगों की मौत हुई थीं। इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, जो बाबरी मस्जिद के बिल्कुल करीब था। प्रशासन उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 30 अक्टूबर को मारे गए कारसेवकों के चलते लोग गुस्से से भरे थे। हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे। पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब ढेड़ दर्जन लोगों की मौत हो गई। ये सरकारी आंकड़ा है। जहां एक तरफ प्रशासन की ओर से कारसेवकों पर सख्त रूख अपनाया जा रहा था। ऐसे में बीजेपी ने उनके मुकाबिल कल्याण सिंह को खड़ा कर दिया। कहा जाता है कि उस दौर में कल्याण सिंह बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद दूसरे ऐसे नेता थे जिनके भाषणों को सुनने के लिए हुजूम उमड़ता था। उग्र तेवर में सीधा ललकार वाली अदा लोगों को खूब भाती थी। वक्त का पहिया घूमा और छह महीने बाद जून 1991 का दौर था। केंद्र से राजा साहब यानी वीपी सिंह की सरकार जा चुकी थी। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 425 विधानसभा सीटों में से 221 पर जीत दर्ज की। चारो तरफ राम लला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे गूंड रहे थे। अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर भारत के तीन धरोहर की धूम चारो ओर थी। इसी माहौल में कल्याण सिंह ने 24 जून 1991 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बतौर सीएम कल्याण सिंह का पहला कार्यकाल केवल एक वर्ष 165 दिन का रहा। उसके बाद आता है 6 दिसंबर 1992 का दिन। 1992- अयोध्या में बाबरी का विवादित ढांचा कुछ ही घंटों में ढहाकर वहां एक नया, अस्थायी मंदिर बना दिया गया। एक तरफ ध्वंस के उन्माद में कारसेवक और दूसरी ओर हैरान, सन्न-अवाक् विश्व हिन्दू परिषद व बीजेपी नेता। बूझ नहीं पड़ा कि यह सब अचानक कैसे हुआ? जिस वक्त ढांचे पर कारसेवकों ने हल्ला बोला, दिल्ली से लेकर लखनऊ तक राजनीति बेहद गर्म थी।

दिल्ली में प्रधानमंत्री सात रेसकोर्स के अपने घर पर टेलीविजन के सामने बैठे थे तो मुख्यमंत्री कल्याण सिंह लखनऊ में कालिदास मार्ग के सरकारी आवास की छत पर धूंप सेंक रहे थे। कल्याण सिंह ने बिना गोली चलाए परिसर को खाली कराने को कहा। हालांकि वे इस बात से नाराज थे कि अगर विहिप की ऐसी कोई योजना थी तो उन्हें भी बताना चाहिए था। विध्वंस प्रकरण के लिए कल्याण सिंह को जिम्मेदार माना गया। कल्याण सिंह ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन दूसरे ही दिन केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश को बर्खास्त कर दिया। उस वक्त त्यागपत्र देने के बाद कल्याण सिंह ने कहा था कि ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान हुई। मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के बाद कल्याण सिंह को जेल भी जाना पड़ा था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने और उसकी रक्षा न करने के लिए कल्याण सिंह को एक दिन की सजा मिली थी। प्रदेश चुनाव की दहलीज पर खड़ा हो गया। बीजेपी को पूरा यकीन था कि राम नाम की लहर में सत्ता पर वापसी तय है। लेकिन इस दौरान प्रदेश की सियासत भी बड़ी तेजी से करवट ले रही थी। बसपा सुप्रीमो कांशीराम और सपा के मुलायम सिंह यादव की नजदीकियां बढ़ रही थी। दोनों दलों ने गठबंधन किया औ बीजेपी के सामने नारा दिया मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम। 1991 में 221 सीटें जीतने वाली बीजेपी 177 पर ही रूक गई वहीं सपा ने 109 और सपा ने 67 सीटें हासिल कर गठबंधन कर सरकार बनाई।  1997 में कल्याण सिंह दोबारा यूपी के सीएम बने लेकिन उनका जलवा और हनक पहले जैसा नजर नहीं आया। प्रदेश कई नाटकीय घटनाक्रम से रूबरू हुआ। मायावती ने कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरानी चाही तो कल्याण सिंह ने दूसरी पार्टियों को तोड़ कर अपनी सरकार बना ली। फिर जगदंबिका पाल प्रकरण और अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ में अनशन। अंतत: कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कल्याण सिह सरकार की वापसी हुई। लेकिन आगे का रास्ता तो और भी कठिनाइयों से भरा रहा। असंतोष पर काबू पाने के लिए केंद्र को अंतत: कल्याण सिंह को हटाने का फैसला लिया।  1999 में कल्याण सिंह को पार्टी से निकाला गया और उन्होंने राष्ट्रीय क्रांति दल नामक पार्टी बनाई और बीजेपी को खत्म करने की कसम खाई। फिर 2004 में वापसी और 2007 में मोहभंग जैसी बातों के साथ कल्याण सिंह का बीजेपी में आना जाना लगा रहा।  जिसके बाद छह दिसंबर की घटना के लिए मुसलमानों से गिले शिकवे भुला कर दोस्ती करनी भी चाही और एक इंटरव्यू में कहा  कि मुसलमान भाई भी बीजेपी को खत्म करना चाहते हैं और हमने भी अपनी जिंदगी का यही मकसद बनाया है। चुनाव में वो खुद को तो खास फायदा नहीं दिला सके लेकिन बीजेपी का काफी नुकसान कर दिया। 2007 के चुनाव में बीजेपी ने कल्याण सिंह को सीएम चेहरा बनाया लेकिन पार्टी तीसरे स्थान पर खिसक गई। जिसके बाद बीजेपी और कल्याण सिंह के रिश्ते और तल्ख हो गए और उन्होंने बीजेपी को खत्म करने की कसम दोबारा खाई। कल्याण सिंह ने सपा के समर्थन से निर्दलीय लोकसभा का चुनाव भी जीता लेकिन मुस्लिम वोट छिटकने के डर से सपा ने भी कल्याण सिंह से किनारा कर लिया। 2014 आते-आते बीजेपी को एक बार फिर कल्याण सिंह की जरूरत हुई। इस बार उन्होंने कसम खाई कि आखिरी सांस तक बीजेपी में ही रहूंगा।  सितंबर 2014 में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। सितंबर 2019 में उन्होंने कार्यकाल समाप्त होने के बाद बीजेपी की सदस्यता ली। 

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नकल अध्यादेश

ये 1989 की बात है कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी को देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी मिलती है। जिसके बाद उनका एक आदेश इतिहास में चर्चा का केंद्र बना रहा। राज्य की सत्ता पर काबिज एडी तिवारी सरकार ने सपुस्तक शिक्षा प्रणाली का आदेश जारी किया। जिसके तहत बच्चे किताब लाकर परीक्षा में लिख सकते थे। इस आदेश को 9वीं कक्षा और 11वीं कक्षा के लिए लागू किया गया। उसी वर्ष मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बनते हैं और उन्होंने स्पुस्तक प्रमाली की जगह स्वकेंद्र व्यवस्था लागू कर दी। जिसके बाद बच्चों को अलग परीक्षा केंद्र में जाने की जरूरत नहीं होती थी जहां वो पढ़ रहे हैं वहीं परीक्षा दे सकते थे। इससे नकल माफियाओं को काफी सहूलियत हुई। सूबे में शित्रा व्यवस्था का ये रोचक खेल चल ही रहा था कि 1991 में बीजेपी की सरकार आ गई। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और यूपी में नकल अध्यादेश लागू हुआ। नकल अध्यादेश लाने के कल्याण सिंह के फैसले और मंत्री राजनाथ सिंह की शिक्षा जगत में काफी प्रशंसा की गई। उस दौर में नकल करते कई छात्र पकड़े गए। 10वीं में सिरिफ 14 फीसदी और 12वीं में 30 फीसदी बच्चे पास हुए। नकल करते पकड़े गए बच्चों को हथकड़ी बांधकर जेल भेजा गया। बच्चों के हाथ में हथकड़ी होने से उस वक्त सियासी गलियारों में तूफान भी मचा। 1993 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने लोगों से समाजवादी सरकार बनने पर अध्यादेश खत्म करने की बात कही। ये वो दौर था जब देश और उत्तर प्रदेश विवादित ढांचा विध्वंस और अन्य राजनीतिक उछल-पुथल से गुजर रहा था। 1993 का चुनाव बीजेपी हार गई और सपा-बसपा ने मिलकर सरकार बनाया। इस चुनाव में राजनाथ सिंह तक अपने विधानसभा क्षेत्र से हार गए थे। 

कल्याण सिंह को मिली क्लीन चिट

बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए बने लिब्राहन आयोग ने उस वक्त के पीएम रहे नरसिम्हा राव को तो राहत प्रदान की लेकिन कल्याण सिंह समेत कई नेताओं पर केस दर्ज किया। लेकिन इसी वर्ष सितबंर के महीने में सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बाबरी विध्वंस की घटना पूर्वनियोजित नहीं थी बव्कि आकस्मिक थी। सीबीआई आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने के मामले में पर्याप्त सबत पेश नहीं कर सकी इसलिए सबको बाइज्जत बरी किया जाता है।- अभिनय आकाश

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