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नरम से गरम हुए सुशासन बाबू, क्यों बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं...
- अभिनय आकाश
- जनवरी 16, 2021 15:49
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सुशासन बाबू को इतने ही गुस्से में रैलियां के दौरान देखा गया। उस वक्त का तनाव समझ में आ रहा था कि डर था कि चुनाव में जीत होगी या नहीं। लेकिन अब सत्ता मिल गई। फिर नीतीश बात-बात पर इतना गुस्सा क्यों हो रहे हैं। ये सवाल बिहार से लेकर दिल्ली तक पूछा जा रहा है।
32 दांतो के बीच में जीभ कैसे रहती होगी। ये बहुत पुरानी कहावत है। जब इंसान बेबसी में काम करता है तो ऐसी कई मिसालें दी जाती है। बिहार के मुख्यमंत्री, पीएम मैटेरियल वाले मुख्यमंत्री, सुशासन बाबू के उपनाम वाले मुख्यमंत्री, बिहार में बहार हो का नारा देने वाली पार्टी के मुख्यमंत्री। नाम- नीतीश कुमार। इन दिनों पहचान एंग्री मैन के रूप में हो रही है। सुशासन बाबू को शायद ही इससे पहले इतने गुस्से में देखा गया हो। लेकिन बीते कुछ महीने से चाहे वो चुनावी रैलियों की बात हो या पत्रकारों के सवाल नीतीश बात-बात पर भड़क जाते हैं। कमियों को दूर करने की बजाए सवाल पूछने वालों को ही पार्टी विशेष का समर्थक करार दे देते हैं। डीजीपी को सबके सामने फोन पर फटकार लगाते हैं। विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर फूट पड़ते हैं। इस बार छोटे भाई की भूमिका में आए नीतीश के तेवर पिछले कुछ वक्त से ही बदले-बदले नजर आ रहे हैं।
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अक्सर भाषण देते हुए अपनी बात शांति से रखने वाले नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक खासियत यही मानी जाती थी कि वो बेहद ही नपा-तुला बोलते थे। कड़वी से कड़वी बात भी मुस्कुराते हुए इस अंदाज में बोल जाते कि विरोधी भी यह समझ नहीं पाते कि आखिर नीतीश पर निशाना साधे तो साधे कैसे? याद कीजिए 2015 का चुनाव जब एनडीए से बाहर होकर चुनाव मैदान में उतरी जेडीयू के सामने भव्य आभा कौशल वाले नरेंद्र मोदी खड़े थे। नरेंद्र मोदी उस चुनाव में नीतीश कुमार पर हमलावर रहते। लेकिन पीएम की रैली के बाद नीतीश बेहद ही सौम्यता के साथ एक घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तर्कों और तथ्यों के साथ उनकी कही हर बात को काटते थे। लेकिन पिछले कुछ समय से लोग एक अलग ही नीतीश कुमार को देख रहे हैं। जो बात-बात पर अपना आपा खो रहे हैं। कमियों को दूर करने की बजाये सवाल पूछने वालों पर ही सवाल उठाने लग रहे हैं। सुशासन बाबू को इतने ही गुस्से में तब देखा गया था जब वो रैलियां कर रहे थे। उस वक्त का तनाव तो समझ में आ रहा था कि डर था कि चुनाव में जीत होगी या नहीं। लेकिन अब सत्ता मिल गई। फिर आखिर क्यों नीतीश बात-बात पर इतना गुस्सा हो रहे हैं। ये सवाल बिहार से लेकर दिल्ली तक पूछा जा रहा है।
कभी उन्हें इसकी आदत नहीं रही। साल 2005 से वो मुख्यमंत्री रहें वो और जो भी फैसले किए अपनी मर्जी से अपने दम पर किया। चाहे वो सीएम पद छोड़ जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना हो या बीजेपी के लिए डिनर कैंसिल करना। लालू का साथ छोड़ बीजेपी के साथ आ जाना जो भी फैसला करते पूरे दमखम के साथ करते।
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नीतीश सुलझे हुए मुख्यमंत्री माने जाते रहे हैं और गुड गवर्नेंस के मामले में उनकी सानी नहीं रही है तभी तो एक वक्त ऐसा भी था जब प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए में नीतीश के नहीं होने के बावजूद उनके गुड गवर्नेंस की तारीफ की थी। जिस ला एंड ऑर्डर को लेकर घर के अंदर और बाहर नीतीश कुमार पर सवाल उठ रहे हैं। चाहे वो एनडीए हो या विपक्ष कानून व्यवस्था को लेकर उनपर सवाल उठ रहे हैं
बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और जनता दल यूनाइटेड के कम सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोंकने की बजाय नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार बनाई। । आज नीतीश 43 विधायकों वाली छोटी पार्टी के अगुवा हैं। उनसे ज्यादा विधायक 74 सीटों की संख्या बीजेपी के पास है। यानी कि जो बड़ा भाई हुआ करता था वो अचानक से छोटा भाई हो गया। वो झुंझलाहट है मन में। इसके साथ ही बीजेपी के विरोध के आगे विवश होकर नीतीश को 15 साल से गृह सचिव रहे आमिर सुबहानी को हटाना पड़ा।
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सहयोगी भाजपा से छोटी पार्टी बन गई है। दूसरे, भाजपा की आंतरिक संरचना भी बदल गई है। सीएम नीतीश के साथ आदर्श और भरोसेमंद सहयोगी की भूमिका निभाने वाले सुशील मोदी को भाजपा ने राज्यसभा सदस्य बनाकर दिल्ली भेज दिया है। उनकी जगह दो उप-मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश को दोनों तरफ से घेरने की कोशिश की गई है। हालत यह हो गई है कि अब नीतीश कुमार को भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ डील करना पड़ रहा है। राज्य में भाजपा अब बिग बॉस की भूमिका में आना चाहती है लेकिन नीतीश उसे बिग बॉस मानने को तैयार नहीं और इसलिए छोटे दल के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ही नीतीश लगातार अपना कद बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। जार्ज फर्नांडीज को हटाकर शरद यादव को जेडीयू का अध्यक्ष बनवा दिया था। फिर ठीक पांच साल पहले नीतीश कुमार ने जनता दल यूनाइटेड का अध्यक्ष पद शरद यादव से जबरन हासिल किया था। वहीं नीतीश कुमार कहते सुनाई पड़े की पार्टी का कामकाज किसी फुल टाइम अध्यक्ष के हाथों में होनी चाहिए। नीतीश ने इतनी आसानी से अपनी कुर्सी छोड़ पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह को अध्यक्ष बना दिया। दरअसल, नीतीश के पास अब कोई रास्ता नहीं था कि वो पार्टी से ऐसा कोई नुमाइंदा चुने जो बीजेपी के नेताओं से बात करे। कहा तो ये भा जा रहा है कि नीतीश कुमार को भूपेंद्र यादव से बात करने के लिए इंतजार करना पड़ रहा था। नीतीश को ऐसे किसी शख्स की दरकार थी तो अधिकृत तौर पर बीजेपी से बात कर सके। नीतीश को बार-बार भूपेंद्र यादव या बीजेपी की दूसरी-तीसरी कतार के नेताओं से बात करने
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नीतीश कुमार की एक खासियत और रही है कि वो मीडिया से बहुत कम बात करते रहे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर विधानसभा तक, पत्रकार सवालों की झड़ी लगाते नजर आते थे लेकिन नीतीश मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर निकल जाया करते थे। लेकिन इस बार तो पटना का हर पत्रकार नीतीश कुमार के रवैये से काफी हैरत में नजर आ रहा है। पत्रकार जब भी कोई सवाल लेकर नीतीश का नाम लेते हैं तो नीतीश कुमार खुद ही रुक कर जवाब देना शुरू कर देते हैं। बीच में तो कई दिन ऐसे भी गुजरे जब दिनभर में नीतीश कुमार ने 4-5 बार पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए। साफ-साफ लग रहा है कि अपनी चुप्पी त्यागकर नीतीश खूब घूम रहे हैं, मीडिया से बात कर रहे हैं और हर सवाल का जवाब दे रहे हैं।
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नीतीश कुमार खुद को मजबूत करने की भी कवायद में लगे हैं। कभी वो मांझी को साथ लाते हैं। फिर रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा से नजदीकियां बढ़ाते हैं। यहां तक की रालोसपा और हम के जेडीयू में विलय की खबरें भी सामने आती है। कुल मिलाकर कहा जाए कि नीतीश बहुत दवाब में हैं। बिहार के नतीजों से नाखुश हैं। अपनों और विरोधियों के हमले से चितिंत हैं। लेकिन नीतीश को अपने सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के महान नेता, भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पंत्तियों ''क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही'' को पढ़ते हुए अपने रास्ते में आगे बढ़ना होगा। नीतीश सोलह साल से मुख्यमंत्री हैं तो चाहे वो कानून व्यवस्था की बात हो या फिर बढ़ते अपराध की, सवाल तो उन्हीं से पूछे जाएंगे। इसमें झुंझलाना और बिफरना सेहत के लिए भी खराब है और कुर्सी के लिए भी। - अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- मार्च 1, 2021 16:40
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केंद्र सरकार सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए गाइडलाइंस का मसौदा लेकर आई है। सरल भाषा में कहें तो फेसबुक, ट्विटर., ऐमजॉन प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के लिए गाइडलाइन। मतलब कि आप क्या पोस्ट करेंगे, क्या ट्वीट करेंगे और क्या देख पाएंगे इन सब के लिए एक तरह का दिशा-निर्देश।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बारे में संसद में उठाई गई चिंताओं का हवाला देते हुए, सरकार ने सोशल मीडिया, डिजिटल न्यूज मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) सामग्री प्रदाताओं को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। सोशल मीडिया, डिजीटल मीडिया और ओटीटी को सेफ और सेक्योर बनाने के लिए सरकार ने नई गाइडलाइन को पेश किया। आज हम आपको बताएंगे सरकार द्वारा लाए गए नियमन की दशा और दिशा के बारे में।
केंद्र सरकार सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स को लेकर गाइडलाइन्स का ड्राफ्ट लेकर आ गई है. सादी भाषा में – फेसबुक, ट्विटर, ऐमज़ॉन प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के लिए गाइडलाइन. माने आप क्या पोस्ट करेंगे, क्या ट्वीट करेंगे और मनोरंजन के लिए क्या देख पाएंगे, उसके लिए गाइडलाइन
केंद्र सरकार सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए गाइडलाइंस का मसौदा लेकर आई है। सरल भाषा में कहें तो फेसबुक, ट्विटर., ऐमजॉन प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के लिए गाइडलाइन। मतलब कि आप क्या पोस्ट करेंगे, क्या ट्वीट करेंगे और क्या देख पाएंगे इन सब के लिए एक तरह का दिशा-निर्देश। इनफार्मेशन टेक्नॉलाजी (इंटरमेडरी गाइडलाइन और डीजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल 2021 के नाम से सारे नियम बनाए गए।
सबसे पहले आपको सोशल मीडिया के बारे में बताएं तो सोशल मीडिया को अब दो अलग-अलग कैटेगरी में डिवाइड कर दिया गया है।
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पहली है इंटरमेडरी सोशल मीडिया, दूसरी है सिग्निफिकेंट इंडेमडरी सोशल मीडिया- सोशल मीडिया कंपनियों को शिकायतों के लिए एक अधिकारी रखना होगा और इसका नाम भी बताना होगा। अब तीन के ऑफीसर को एपाउंट करना होगा। चीफ कंपलाइंस ऑफीसर, ग्रिवलेंस ऑफीसर और एक लोकल नोडल ऑफीसर। लोकल नोडल ऑफीसर को 24 घंटे को लॉ एजेंसियों के साथ टच में रहना होगा ताकि अगर किसी तरह का कंटेट उनके प्लेटफॉर्म पर आता है तो जल्द से जल्द उस पर एक्ट किया जा सके।
सोशल मीडिया कंपनी को अब यूजर्स से 24 घंटे के अंदर-अंदर शिकायत को दर्ज करना होगा। कंपनियों को हर महीने एक रिपोर्ट देनी होगी कि कितनी शिकायत आई और उन पर क्या कार्रवाई हुई। उन्हें 15 दिन के अंदर इस शिकायत को साल्व भी करना होगा। न्युडिटी के मामलों में शिकायत पर 24 घंटे के भीतर उस कंटेट को हटाना होगा। गलती होने पर ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी अन्य सभी की तरह माफी प्रसारित करनी होगी।
अगर कोर्ट या सरकारी एजेंसी किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कोई जानकारी होस्ट करने या पब्लिश करने से मना करती है तो उसे वो मानना होगा। इस जानकारी में देश की एकता-अखंडता को खतरे में डालने वाली, कानून व्यवस्था को भंग करने वाली मित्र देशों से रिश्ते खराब करने वाली जानकारी शामिल हो सकती है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म के नियम
ओटीटी प्लेटफॉर्म को टीवी और अखबार की तरह एक सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी। इसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या कोई और गणमान्य व्यक्ति होंगे। इसके जरिए शिकायत निवारण सिस्टम भी शुरू करना होगा।
सरकार ने कहा है कि ओटीटी के लिए कोई सेंसरशिप नहीं लगाई जा रही। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपने स्तर पर ही दर्शकों की उम्र के हिसाब से कॉन्टेंट को अलग-अलग कैटेगरी में रखना होगा, जैसे 13 प्लस या 16 प्लस या वयस्कों के लिए।
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डिजिटल न्यूज़ मीडिया के लिए नियम
डिजिटल न्यूज मीडिया को अपने बारे में विस्तृत जानकारी देनी होगी। टीवी और अखबार की तरह उन्हें भी रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा।
डिजिटल न्यूज मीडिया को बताना होगा कि उसका मालिक कौन है और उसमें किसने पैसा लगाया है।
इन दिशानिर्देशों की पृष्ठभूमि क्या है
प्रेस कॉन्फेंस में, कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वेशन और 2019 के एससी के ही आदेश का हवाला दिया। राज्य सभा में एक बार 2018 में और फिर 2020 में समिति द्वारा रखी गई रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आईटी मंत्री ने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म यूजर्स को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए सशक्त बनाने और उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामले में जवाबदेही की आवश्यकता बताया। सरकार तीन वर्षों से इन दिशानिर्देशों पर काम कर रही थी। हालांकि, 26 जनवरी को लाल किले में हिंसक घटनाओं के बाद इसमें और तेजी आई, जिसके बाद सरकार और ट्विटर के बीच कुछ खातों को हटाने के लिए विवाद भी देखने को मिला था।
दुनिया के देशों में सोशल मीडिया के हालिया घटनाक्रम
सोशल मीडिया ने सीधे तौर पर लोकतंत्र और लोगों को प्रभावित करना भी शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया व्यापक स्तर पर संचार सुविधाओं का लोकतंत्रीकरण करता जा रहा है। विश्वभर के अरबों लोगों ने अब सूचना को संरक्षित रखने और इसका प्रसार करने के पारंपरिक माध्यमों को चलन से लगभग बाहर कर दिया है। सोशल मीडिया के उपभोक्ता अब मात्रा उपभोक्ता ही नहीं हैं, वे अब इस पर प्रसारित होने वाली साम्राग्री को तैयार करने वाले प्रसारकर्ता भी बन गए हैं।
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जब टिक-टॉक ने दीं गलत सूचनाएं
टिक-टॉक ने पिछले साल जुलाई और दिसबंर के बीच ऐप ने 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और कोरोना वायरस महामारी के बारे में गलत जानकारी देने के लिए अपने हजारों वीडियो हटा दिए हैं। यह तो यही साबित करता है कि टिक टॉक गलत जानकारी साझा कर चुका था। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने चुनाव में गलत सूचना या मीडिया को साझा किए 347,225 वीडियो बाहर निकाले। अतिरिक्त 441000 क्लिप को ऐप की सिफारिशों से हटा दिया गया क्योंकि सामग्री आपत्तिजनक थी।
फेसबुक की म्यांमार में भूमिका
फेसबुक इंक ने म्यांमार की सेना से जुड़े पृष्ठों पर प्रतिबंध लगा दिया और संबद्ध वाणिज्यिक संस्थाओं से विज्ञापन पर रोक लगा दी है। जिससे दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र में तख्तापलट का विरोध बढ़ रहा है। म्यांमार की सत्तारूढ़ सरकार ने इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को फेसबुक तक पहुंच को अवरूद्ध करने का आह्वान किया।
सरकार के मांगने पर देनी होगी जानकारी
नई गाइडलाइंस के अनुसार इंड टू इंड एनक्रिप्शन देने वाली व्हाट्सएप के सामने एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। भारत की संप्रभुता, सुरक्षा, विदेशों से संबंध, दुष्कर्म जैसे अहम मामलों पर सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से अब सोशल मीडिया कंपनियों को शरारती कंटेंट फैलाने वाले शख्स के बारे में भी जानकारी देनी होगी। नियम के अनुसार विदेश से शुरू होने वाले कंटेंट को भारत में पहले किसने शेयर या ट्वीट किया है। इसकी जानकारी देनी होगी। कोर्ट के आदेश या सरकार द्वारा पूछे जाने पर सोशल मीडिया कंपनियों को उस शख्स की जानकारी साझा करनी होगी। इसी के साथ सरकार ने फेक अकाउंट्स के लिए कंपनियों को कहा है कि वे खुद से ऐसा नियम बनाए, जिससे यह न हो सके। इसके लिए वह आधार कार्ड लें या फिर मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करें।
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तीन महीने में कानून
नई गाइडलाइंस के अनुसार फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम, नेटफिलक्स, अमेजन प्राइम, न्यूज वेबसाइट, व्हाट्सएप और लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को सरकार की ओर से मांगे जाने पर कंटेंट की जानकारी देना जरुरी हो गया है।
भारत और अन्य देशों में डाटा संरक्षण कानून
अनुमान के अनुसार साल 2023 तक यग संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुंच जाएगी।
भारत में साल 2019 तक 574 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता थे। इंटरनेट प्रयोग करने के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर हैं।
फिलहाल भारत के पास किसी व्यक्ति के डाटा की सुरक्षा को लेकर कोई सख्त कानून या विशेष प्रावधान नहीं है।
अमेरिकी के पास विशिष्ट डाटा सुरक्षा कानून और नियम हैं जो अमेरिकी नागरिकों के डाटा के लिए राज्य स्तरीय कानून के तहत काम करते हैं। -अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- फरवरी 27, 2021 18:30
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भारत के भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी को लंदन की अदालत से तगड़ा झटका लगा है।वेस्ट विंसर की कोर्टने नीरव मोदी के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने भारत में न्याय नहीं मिलने और सेहत के आधार पर नीरव मोदी की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया।
25 फरवरी को वो तारीख जब लंदन की कोर्ट ने वो बात कह दिया जो हम कोहिनूर के लिए बरसों से सुनना चाहते थे। मतलब, इसे भारत को लौटा दो। नीरव मोदी और माल्या के लिए भी हम ऐसा ही कुछ सुनना चाहते थे। हमारे देश का भगौड़ा नीरव मोदी कब आएगा? कितने किंतु-परंतु हैं उसके आने में लेकिन 25 फरवरी 2021 ब्रिटेन से खबर आई नीरव मोदी से जुड़ी की कोर्ट ने कह दिया है अपनी इसे ले जाओ। उसके बाद तो ऐसा हल्ला मचा कि मानों रात होते-होते नीरव मोदी को कॉलर पकड़कर भारत की जेल में ठूस दिया जाएगा। लेकिन जानकारों ने बताया इतना उत्तेजित होने की आवश्यकता नहीं है। अभी बहुत समय लगने वाला है। तो आइए मामला समझते हैं।
पहला सवाल- लेटेस्ट क्या हुआ जो विपक्षी दलों की धराधड़ प्रतिक्रिया आने लगी?
कांग्रेस के नेता और पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने सवाल किया कि यह भारतीय एजेंसियों की सफलता है या ब्रिटेन के कानून की। उन्होंने कहा कि हम इसका स्वागत करते हैं। यूके कानून बधाई का पात्र है। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफजल ने कहा कि खबर के अनुसार ऐसा लग रहा है कि जैसे बहुत बड़ी कामयाबी भारत सरकार को मिल गई है और वो बहुत जल्द उसको वापस ले आएंगे। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि ये खबर ठीक नहीं है।
जवाब- नीरव मोदी भाग गया भारत से 2018 में तब से बातें चल रही थी सरकार वापस लाएगी। नीरव मोदी वापस आएगा। किसरे नीरव मोदी की करीबी हैं नीरव मोदी ने किसके राज में पैसा बनाया है आदि इत्यादि। फिर मोदी जी ने नया नियम बनाया। दिवालिया कानूननका बहुत ही शानदार नियम और इसी के तहत नीरव मोदी भगोड़ा घोषित किया गया। फिर हमारी सरकार ने अंग्रेजों की सरकार से कहा नीरव मोदी हमारा मुजरिम है, हमें सौंप दो। मामला ब्रिटेन की कोर्ट पहुंचा। वहां भारत के भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी को लंदन की अदालत से तगड़ा झटका लगा है।वेस्ट विंसर की कोर्टने नीरव मोदी के भारत प्रतर्पण को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने भारत में न्याय नहीं मिलने और सेहत के आधार पर नीरव मोदी की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने माना की भारत में नीरव मोदी की कई मामलों में जवाबदेही है।
फैसला सुनाते हुए लंदन की कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से संतृष्ट हैं कि नीरव मोदी को दोषी ठहराए जाने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं।
शानो-शौकत वाले हीरा व्यापारी से लेकर भगोड़े तक का सफर
25 फरवरी को भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के प्रत्यर्पण मामले में ब्रिटेन की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को जब निर्णय सुनाया तो वह अपने विरोधाभासों से भरे जीवन के 50 साल पूरे करने से महज दो दिन दूर था। गुजरात के एक हीरा कारोबारी का सदस्य नीरव मोदी यूरोप के आभूषणों के केंद्र बेल्जियम के एंटवर्प में बड़ा हुआ था पहले उसकी बड़ी बड़ी हस्तियों के साथ जान पहचान थी और उसके हीरों के डिजायन संबंधी कार्यक्रम में बड़े बड़े सितारे शामिल होते थे। पिछले साल प्रत्यर्पण सुनवाई के दौरान बड़े फ्रांसीसी ज्वैलरी विशेषज्ञ थीरी फ्रिटस्क ने कहा, ‘‘ मैं (भारत में) कार्यशाला में शिल्पकारिता से बहुत प्रभावित था।..’’ अदालत में सुनवाई के दौरान नीरव मोदी के वकीलों ने उसके अवसाद और मानसिक स्थिति को लेकर भी तमाम दलीलें दीं।
क्या-क्या आरोप हैं
हीरा व्यापारी नीरव मोदी पर आरोप है कि उसने पंजाब नेशनल बैंक के साथ लगभग 11 हजार 345 करोड़ रुपये का घोटाला किया। इसके अलावा उसके खिलाफ भारत में मनी लॉन्ड्रिंग के भी केस पेंडिंग हैं। भारत लगभग दो साल से नीरव मोदी के प्रत्यर्पण की कोशिश कर रहा है। नीरव मोदी इस प्रत्यर्पण के खिलाफ ब्रिटेन में कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। 2018 में भारत से भागने के बाद नीरव कई अज्ञात स्थानों पर रहा है। बाद में पता चला कि वो ब्रिटेन में है। उसे मार्च 2019 में प्रत्यर्पण वारंट पर गिरफ्तार किया गया। ब्रिटेन में निचली अदालत या उच्च न्यायालय से जमानत प्राप्त करने के उसके प्रयास विफल रहे। इस वक्त वो लंदन की एक जेल में है। लंदन की कोर्ट ने नीरव मोदी की सभी दलीलें खारिज कर दी। नीरव मोदी ने बैंक पीएनबी के साथ इस तरह के लेन-देन किए।
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कोर्ट यहां तो कोर्ट कचहरी वहां क्यों?
साल 2018 में भारत से भागने के बाद नीरव मोदी के ब्रिटेन में होने की खबर आई। ब्रिटेन की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस ने 13 मार्च 2019 को लंदन से उसे गिरफ्तार किया। मध्य लंदन में एक बैंक की शाखा से 19 मार्च 2019 को एक प्रत्यर्पण वारंट पर गिरफ्तार किया गया था। वह उस समय बैंक शाखा में नया खाता खुलवाने का प्रयास कर रहा था। वह लंदन में सेंटर प्वाइंट के पेंटहाउस इलाके में रह रहा था। वह नियमित रूप से अपने कुत्ते के साथ समीप की एक नयी ज्वैलरी दुकान में जाता था। बाद में सामने आया कि लंदन में वेस्टमिनिस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में हिरासत सुनवाई के दौरान उसने बुटिक लॉ एलएलपी की सेवा ली थी। तब से वह साउथ वेस्ट लंदन की वैंड्यवर्थ जेल में बंद है। नीरव ने अपने खिलाफ आए प्रत्यर्पण आदेश को अदालत में चुनौती दी थी। हमारे यहां से एक आदमी बैंकों का इतना पैसा लेकर भागा है इसे पकड़कर हमें दे दीजिए। टेक्निकल शब्दों में इसे ही प्रत्यर्पण कहा जाता है। दो साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद डिस्टि्किट जज सैम्यूल गूजी ने फैसला सुनाया कि नीरव के खिलाफ कानूनी मामला है, जिसमें उसे भारतीय अदालत में पेश होना होगा।
अब आगे क्या
यूके की कोर्ट के इस फैसले से ही नीरव मोदी को भारत वापस लाया जा सकेगा? जवाब है नहीं। कई कानूनी पेंचीदगियां अभी बाकी हैं। मजिस्ट्रेट कोर्ट का फैसला अंतिम फैसला नहीं होगा। वेस्ट मिनस्टर कोर्ट के फैसले के बाद प्रत्यर्पण की फाइल को अब ब्रिटेन की गृह मंत्री के पास भेजा जाएगा। प्रत्यर्पण के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी है। वहीं नीरव मोदी के पास प्रत्यर्पण के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने का अधिकारभी है। इन सब में कई महीने लग सकते हैं और हर जगह से हार चुकने के बाद भी वो विजय माल्या की तरह असायलम यानी शरण के लिए आवेदन कर सकता है ताकी उसे और समय मिल जाए। इन असायलम वाली याचिका पर निर्णय आने में कई महीने लग जाते हैं। इसका सीधा अर्थ है कि इस पूरी प्रक्रिया में अभी एक से दो साल और लग सकते हैंष अगर नीरव मोदी इस फैसले को चुनौती नहीं देता है को उसे एक महीने के भीतर ही भारत लाया जा सकेगा।
सब हो जाएगा और नीरव मोदी को भारत लाया जाएगा तो क्या होगा। पंजीरी तो खिलाएंगे नहीं जेल भेजेंएंगे। मुंबई की प्रिवेंसन ऑफ मनी लॉऩ्ड्रिंग एक्ट के हिसाब से भगोड़ा नीरव मोदी, बैकों को 11 हजार कोरड़ का चूना लगाने वाला नीरव मोदी जिसके पीछे सीबीआई, ईडी जैसी देश की प्रमुख एजेंसियां पड़ी हैं। एक बार इनको भारत आने तो दीजिए इतने मुकदमें चलेंगे कि शानो शौकत में जिंदगी बिताने वाले हीरा कारोबारी को देश की बैंकों का पैसा लेकर फरार होने का इल्म हो जाएगा।
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चलते-चलते आपको नीरव मोदी केस से जुड़ी और एक दिलचस्प जानकारी देते हैं। दरअसल,
यूकी के जज ने भारत के सेवानिवृत जज अभय थिप्से और मार्केंडेय काटजू की तरफ से भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के समर्थन में एक्सपर्ट के रूप में राय को पूरी तरह से खारिज कर दिया। यूके जज ने मार्कडेय काटजू की गवाही पर भी सवाल खड़े किए। बता दें कि काटजू ने वेस्टमिंस्टर कोर्ट में एक्सपर्ट के रूप में नीरव मोदी के पक्ष में बाते कही थीं। उन्होंने कहा था कि भारत के जूडिशरी का अधिकांश हिस्सा भ्रष्ट है और जांच एजेंसिया सरकार की ओर झुकाव रखती हैं। लिहाजा नीरव मोदी को भारत में निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिलेगा। जिसके बाद बारी थी यूके के जज गूजी के बोलने की और उन्होंने न केवल काटजू की टिप्पणी को अनुचित और हैरान करने वाला बताया बल्कि कहा कि मेरी नजर में उनकी राय निष्पक्ष और विश्वसनीय नहीं थी। यूके जज ने कहा कि काटजू ने भारतीय जूडिशरी में इतने ऊंचे ओहदे पद पर काम किया है। इसके बावजूद उनकी पहचान ऐसे मुखर आलोचक के रूप में रही है जिनका अपना एजेंडा होता है। मुझे उनके सबूत के साथ ही उनका व्यवहार भी सवालों के घेरे में लगा।
बहरहाल, नीरव मोदी को लेकर ब्रिटेन की कोर्ट का फैसला आ गया और इसको लेकर देश में राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई। लेकिन इन सब के बीच नीरव मोदी के लिए भारत में जेल भी तैयार रखा गया है।
आर्थर रोड जेल में रखा जाएगा
नीरव मोदी के प्रत्यर्पण के पक्ष में एक ब्रिटिश अदालत का फैसला आ जाने के साथ ही मुम्बई की आर्थर रोड जेल ने उसे रखने के लिए एक विशेष कोठरी तैयार कर ली है। एक अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। जेल अधिकारी ने बताया कि नीरव मोदी को यहां लाये जाने के बाद उसे अतिसुरक्षा वाले बैरक नंबर 12 की तीन कोठरियों में से एक में रखा जाएगा। -अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- फरवरी 26, 2021 17:51
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चीन के बाद पाकिस्तान के साथ शांति की एक पहल दिखाई दे रही है। ये साउथ ईस्ट एशिया ही नहीं बल्कि एशिया पेसेफिक के लिए भी बड़ी बात है। लेकिन क्या हो गया आखिर ऐसा कि दोनों देशों के बीच इतनी आसानी से सहमति बन गई।
भारत और पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी नहीं करने पर राजी हो गए हैं। दोनों देशों के बीच साल 2003 का युद्ध विराम समझौता अब सख्ती के साथ लागू होगा। दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच बात हुई और युद्ध विराम पर नए सिरे से सहमति बनी। युद्ध विराम का समझौता दोनों देश मानेंगे। चीन के बाद पाकिस्तान के साथ शांति की एक पहल दिखाई दे रही है। ये साउथ ईस्ट एशिया ही नहीं बल्कि एशिया पेसेफिक के लिए भी बड़ी बात है। लेकिन क्या हो गया आखिर ऐसा कि दोनों देशों के बीच इतनी आसानी से सहमति बन गई। एक रिपोर्ट की मानें तो इस्लामाबाद में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनके समकक्ष ने सीमाओं पर शांति सुनिश्चित करने के लिए बैक-चैनल बातचीत करने के एक महीने बाद भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशकों के बीच बैठक में संघर्षविराम को लेकर फैसला किया गया है। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एनएसए डोभाल और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के नेशनल सिक्योरिटी डिविजन के स्पेशल असिस्टेंट मोईद सईद सीधे या फिर इंटेलिजेंस के वार्ताकारों के माध्यम से संपर्क में रहे हैं। दोनों देशों के डीएमआरओ के संयुक्त बयान इन वार्तालापों का पहला परिणाम है जिसमें किसी तीसरे देश में कम से कम आमने-सामने की बैठक भी शामिल थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर सहित सरकार के शीर्ष नेताओं को ही केवल इस बात की जानकारी थी। पहला संकेत जो कि बैक-चैनल वार्ता के ट्रैक पर होने का पहला संकेत इस महीने की शुरुआत में आया था, 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने भारत के खिलाफ अपने कड़े बोल जारी रखे थे। लेकिन अचानक से 2 फरवीर को जनरल बाजवा ने भारत के साथ शांति का राग छेड़ दिया। जनरल बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान और भारत को कश्मीर मुद्दे को गरिमापूर्ण और शांतिपूर्ण तरीके से हल करना चाहिए। इसके साथ ही हाल के हफ्तों में जम्मू और कश्मीर में सीमा पर संघर्ष विराम उल्लंघन में कमी आई है।
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जिसके बाद ये समझौता सामने आया। दोनों देशों की सेना के एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों ही पक्ष नियंत्रण रेखा और दूसरे सेक्टर्स में सभी समझौतों, आपसी समझ और संघर्ष विराम का 24-25 फरवरी की मध्यरात्रि से सख्ती से पालन करेंगे। भारत और पाकिस्तान के डॉयरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) के बीच 2003 के बीच भी सीजफायर को लेकर सहमचि बनी थी। साल 2018 में इसी तरह के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते की बड़ी बातें आपको बताते हैं।
पाकिस्तान और भारत नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम, सभी समझौते, सहमति का कड़ाई से पालन करने और मौजूदा व्यवस्था के जरिए किसी भी ‘‘अप्रत्याशित स्थिति का समाधान करने या गलतफहमी को दूर करने’’ पर राजी हुए हैं।
दोनों पक्ष बुधवार मध्यरात्रि से सभी समझौते, सहमति और एलओसी तथा अन्य क्षेत्रों में संघर्षविराम का कड़ाई से पालन करने पर सहमत हुए।
दोनों पक्ष ने दोहराया कि ‘‘किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने या गलतफहमी दूर करने के लिए’’ हॉटलाइन संपर्क और ‘फ्लैग मीटिंग’ व्यवस्था का इस्तेमाल किया जाएगा।
‘डॉन’ अखबार ने पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार के हवाले से कहा है, ‘‘1987 से ही भारत और पाकिस्तान के बीच हॉटलाइन स्तर पर संपर्क हो रहा है। इस स्थापित तंत्र के जरिए दोनों देशों के डीजीएमओ संपर्क में रहते हैं।’’
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अब एलओसी पर नहीं चलेगी गोली
- पिछले साल पाकिस्तान ने 5133 बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया था।
- पिछले वर्ष पाकिस्तानी गोलीबारी में 21 नागरिकों की मौत हुई थी।
- पिछले वर्ष की पाकिस्तानी गोलीबारी में 71 नागरिक घायल हुए थे।
- 2020 से सीमा पार से गोलीबारी में सुरक्षाबलों के 24 जवान शहीद हुए।
- 2020 में सीमा पार से गोलीबारी में 126 जवान घायल हुए।
जम्मू कश्मीर में सीजफायर उल्लंघन
2018 2019 2020
2140 3479 5133
2003 में मुशर्रफ और वाजपेयी के बीच हुआ था समझौता
90 के दशक में कश्मीर आतंकवाद के दौर से गुजर रहा था और पाकिस्तान इसका खुलकर समर्थन भी कर रहा था। पीओके और भारतीय सीमा से सटे पाकिस्तानी इलाकों में पाक सेना खुद आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप चला रही थी। इसी दौरान भारत और पाक सेनाओं के बीच लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाएं सामने आ रही थी। साल 2002 का दौर था भारत और पाकिस्तान कारगिल के बाद एक और जंग की ओर बढ़ रहे थे। इसकी वजह थी दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हमला। भारत ने पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई पर हमले की साजिश का आरोप लगाया था। जुलाई 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी और परवेज मुशर्रफ आगरा सम्मेलन के दौरान मिले। इस सम्मेलन के बाद दोनों देशों के बीच तनाव में कुछ कमी देखने को मिली। आगरा समिट के बाद हुए संसद हमले के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी की पहल के बाद भारत और पाकिस्तान ने साल 2003 में एलओसी पर एक औपचारिक युद्धविराम का ऐलान किया था। भारत और पाकिस्तान के बीच 25 नवंबर 2003 की आधी रात से युद्धविराम लागू हुआ था। हालांकि सीजफायर की इन बढ़ती घटनाओं के बीच बीते 5 सालों में इसका कोई खास महत्व नहीं रह गया था। 25 नवंबर 2003 की आधी रात से भारत और पाकिस्तान के बीच लागू हुए युद्धविराम का मकसद एलओसी पर 90 के दशक से जारी गोलीबारी को बंद करना था। ये समझौता 450 मील लंबी एलओसी, इंटरनेशनल बॉर्डर और सियाचिन ग्लेशियर पर भी लागू हुआ। इस समझौते से दो दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मीर जफरुल्ला खान जमाली ने ईद के मौके पर युद्ध विराम की पेशकश की थी। युद्ध विराम के बाद ईद की मिठाईयां भी बांटी गई थी। नवंबर 2003 में वाजपेयी की पहल पर भारत ने जो सीबीएम पेश किए थे उनमें हवाई, रेल और समुद्री संपर्क के अलावा खेल-कूद संबंध जिनमें क्रिकेट श्रृंखला भी शामिल थे। दिल्ली और लाहौर के बीच ज्यादा बसें और श्रीनगर से पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद तक बस सेवा शुरू करना शामिल था। जनवरी 2004 को अटल बिहारी वाजपेयी सार्क की बैठक के लिए पाकिस्तान गए और दोनों देशों ने मिलकर एक साझा बयान भी जारी किया था। लेकिन पाकिस्तान की तरफ से लगातार इसका उल्लंघन होता रहा। अब एक बार फिर से बातचीत के बाद ये ठोस सहमति बनी है।
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चीन से पेंगोंग पर समझौता
भारत और चीन के बीच एलएसी पर चले आ रहे गतिरोध के बाद बीते दिनों पेंगोंगे लेकर को लेकर सहमति बन गई। चीन की सेनाों पिछले साल की स्थिति में लौट गई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में इस समझौते का ऐलान करते हुए कहा था कि दुनिया जान चुकी है कि हथियार की भाषा अब नहीं चलेगी। पेंगोंग में समझौते के बाद रिचीन ला और बाकी पोस्ट्स को लेकर भी भारत और चीन के सैन्य कमांडर्स के बीच बातचीत हो रही है ताकि सेनाओं को पिछले साल के हालात में लौटाया जा सके और तनाव कम किया जा सके।
घुसपैठ से बाज आएगा पाकिस्तान
डीजीएमओ लेवल की बातचीत के बावजूद भारत को सीमा पर चौकन्ना रहना होगा क्योंकि पीठ में खंजर घोपने और धोखबाजी की पाकिस्तान की पुरानी आदत है। अब भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या छल और धोखे के अपने पुराने इतिहास को क्या पाकिस्तान फिर दोहराएगा?- अभिनय आकाश
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