America फिर से महान बनेगा इसके लिए दुनिया का कौन सा देश भेंट चढ़ेगा, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ट्रंप का काम क्या भारत के बिना चलेगा?

ट्रंप चुनाव में मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) के वादे के साथ उतरे हैं। उनकी नीतियां इसी के इर्द-गिर्द होंगी। इसमें भारत की क्या भूमिका होगी, इससे विदेश नीति का खाका काफी कुछ तय होगा। हालांकि, वह कहते हैं कि संरक्षणवाद में बढ़ोतरी और भारतीय निर्यात में टैरिफ वढ़ाने की आशंका से डरना बिजनेस के प्रति पारंपरिक सोच से पैदा हुआ डर है।
सेफ अमेरिका, पॉवरफुल अमेरिका, प्रॉउड अमेरिका, ग्रेट अमेरिका यानी भांति भांति की खूबियों से लैस अमेरिका ट्रंप लेकर आने वाले हैं। अपने भाषण के एक डेढ़ मिनट के भाषण में उन्होंने 7 प्रकार के अमेरिका बनाने की बात कही। एक ही सांस में तीन बार फाइट-फाइट-फाइट और तीन बार विन-विन-विन जिस तरह कहा और नेवर ऐवर का उद्घोष करते हुए सरेंडर से इनकार कर दिया। उससे लगता है कि कुछ बदले न बदले ट्रंप के आने से हिंदी फिल्मों के डॉयलाग भी अंग्रेजी में लिखे जाने लगेंगे। ट्रंप के इस अंदाज से चीन हो या कनाडा, ईरान हो या रूस सभी के दिल धड़क रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। सारे घर के बल्ब बदलने के अंदाज में ट्रंप जिस तरह से अमेरिका को बदलने की बात कर रहे हैं उससे 78 साल के ट्रंप के भाषण इस तरह के होते हैं कि वो एक साथ अमेरिका में आशा और सिहरन दोनों पैदा कर देते हैं। लेकिन ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अमेरिका महान बनेगा तो उसके लिए इस बार दुनिया का कौन सा देश भेंट चढ़ेगा। एलन मस्क तो बार बार पहले से ही दूसरे देशों को धमका रहे हैं।
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अमेरिका में अब ट्रंप काल
शुरू हो गया है। जो बाइडे अपने कार्यकाल में द्विपक्षीय संबंधों को काफी कुछ देकर जा रहे हैं। जाते- जाते उन्होंने ना सिर्फ स्पेस बल्कि मिसाइल एक्सपोर्ट के साथ-साथ सिविल परमाणु सहयोग के क्षेत्र में भारत सरकार के साथ आगे का कदम बढ़ाया। हालांकि, धार्मिक आजादी और पन्नू मामले में दोनों देशों के संबंध असहज भी रहे। अव अपने पिछले कार्यकाल में अप्रत्याशित फैसले लेने वाले ट्रंप को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं। जानकार ये भी कहते हैं कि भारत से अच्छे संबंधों को रिपब्लिकन और डेमोक्रैट दोनों का समर्थन हासिल है। ऐसे में वाइट हाउस से निकलने वाली विदेश नीति में ज्यादा फर्क नहीं आएगा।
MAGA नीति से काफी कुछ तय होगा
इस बार ट्रंप चुनाव में मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) के वादे के साथ उतरे हैं। उनकी नीतियां इसी के इर्द-गिर्द होंगी। इसमें भारत की क्या भूमिका होगी, इससे विदेश नीति का खाका काफी कुछ तय होगा। हालांकि, वह कहते हैं कि संरक्षणवाद में बढ़ोतरी और भारतीय निर्यात में टैरिफ वढ़ाने की आशंका से डरना बिजनेस के प्रति पारंपरिक सोच से पैदा हुआ डर है।
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क्या भारत के बिना चलेगा काम
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते मजबूत हैं। पीएम नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच भी अच्छी समझ है। दक्षिण-पूर्व एशिया में भू-राजनीतिक नजरिये से भारत की अहम भौगोलिक स्थिति के बारे में अमेरिका जानता है। उसे पता है कि भारत अपने दम पर आर्थिक ताकत बना है। चीन के बढ़ते दबाव को देखते हुए ट्रंप के पास एक ही चारा है, भारत के साथ व्यापार बढ़ाना और अमेरिकी कंपनियों का निवेश कराना। पिछले पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में अमेरिका-भारत की रणनीतिक साझेदारी में वढ़ोतरी ही दिखी है। भारत से संबंधों में निवेश अमेरिका के दीर्घकालिक हितों में शामिल रहा है। जानकार कहते हैं कि ट्रंप के समय में भी अमेरिकी विदेश नीति में ज्यादा बदलाव दिखेगा।
दुनिया में चीन के बढ़ते दबदबे को रोकना
चीन ने समय के साथ सैन्य ताकत, आर्थिक नीति और कूटनीति के जरिए अपना दबदबा बढ़ाया है। आज वह सैन्य शक्ति में अमेरिका को टक्कर देने की स्थिति में है। उसने अपनी मुद्रा युआन का मूल्य दशकों तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कम रखा, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में फायदा हुआ। बेल्ट एंड रोड इनीशटिव के जरिए उसने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के 100 से अधिक विकासशील देशों में पहुंच बनाई कर्ज बांटे। इससे ग्लोबल साउथ के देशों में चीन का दबदबा बना है, तो यूरोपीय देशों के साथ भी मैत्रीपूर्ण संबंध कायम हुए। जानकार कहते हैं कि अगर चीन से व्यापार पर करार हो जाते हैं, तो भारत की जियोपॉलिटिकल हैसियत पर असर पड़ेगा। अमेरिका, चीन के साथ संबंध बेहतर करने में कामयाब हो जाता है तो हिंद-प्रशांत को लेकर गतिविधियां जो मौजूदा समय में दिख रही हैं, वे रुक जाएंगी और इन सबके केंद्र में भारत ही है।
शांति के लिए रूस-यूक्रेन को राजी करना
जानकार कहते हैं कि जिस तरह ट्रंप के सत्तानशी होने से पहले ही वेस्ट एशिया में सीजफायर लागू हो गया, इसे यूक्रेन-रूस के लिए एक संकेत की तरह देखा जाना चाहिए। ट्रंप, यूक्रेन को युद्ध के लिए आर्थिक मदद देने के पक्ष में नहीं हैं। अगर रूस-अमेरिका के संबंध बेहतर होते है तो ये भारत के लिए राहत भरी बात होगी। ट्रंप भले ही व्लादिमीर पुतिन के साथ दोस्ती का दावा करें लेकिन रूसी कब्जे में जा चुके यूक्रेनी इलाकों पर अपना दावा छोड़ने के लिए यूक्रेन को मनाना आसान नहीं होगा। ट्रंप ने शपथ ग्रहण के अगले ही दिन यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बातचीत के लिए बुलाया है।
कम होते जा रहे अमेरिकी रुतबे को बचाना
आज वह वक्त नहीं है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति अंतरराष्ट्रीय नियम- कायदों को ताक पर रखते हुए अपनी बात मनवा सकें। रूस, चीन और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ते कूटनीतिक रिश्तों से अब बहुध्रुवीय दुनिया आकार ले रही है।
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