Zhao Lijian: भारत, अमेरिका और ताइवान पर हमले की ताक में रहने वाले Wolf Warrior से जिनपिंग ने क्यों किया किनारा, क्या कुछ बड़ा करने की फिराक में है चीन?
ट्विटर पर झाओ की अमेरिकी-विरोधी टिप्पणियां 2017 तक उनके ब्रांड का एक बड़ा हिस्सा बन गईं, जिससे सार्वजनिक कूटनीति की आक्रामक शैली के दरवाजे खोल दिया। 2017 में रिलीज़ हुई रेम्बो-शैली की चीनी फिल्म के बाद वुल्फ वैरियर के नाम की संज्ञा दे दी। 2019 में उन्हें उनके काम का इनाम भी मिला और प्रवक्ता पद पर पदोन्नति मिली।
एक ग्राफिक तस्वीर जिसमें मुस्कुराता हुआ सैनिक चाकू की नोक को एक बच्चे के गले पर रखा नजर आता है। बच्चे के हाथों में एक मेमना है। इस तस्वीर के साथ कैप्शन लिखा है- ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों द्वारा अफगानिस्तान के नागरिकों और कैदियों की हत्या से स्तब्ध हैं। हम इस कृत्य की निंदा करते हैं और इसके लिए जिम्मेदारी तय करने की मांग करते हैं। आप चिंता नहीं करें हम शांति के लिए आ रहे हैं। 30 नवंबर 2020 को पोस्ट की गई इस तस्वीर ने वैश्विक राजनीति में तूफान ला दिया। मामला जिस देश से जुड़ा था उसकी तरफ से प्रतिक्रिया देने खुद प्रधानमंत्री सामने आए। ‘झूठी' और ‘असंगत' तस्वीर पोस्ट करने के लिए माफी मांगने की मांग भी कर दी। अब थोड़ा आगे चलते हैं ब्रिटेन का प्रधानमंत्री चुनाव और डेमोक्रेट व रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं की बयानबाजी का दौर, तभी ऋषि सुनक की तरफ से ये दावा किया जाता है कि अगर ब्रिटेन के पीएम बनते हैं तो वो 'इस' देश के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएंगे। जिसका जवाब भी दो टूक आता है- मैं कुछ ब्रिटिश नेताओं को साफ बताना चाहता हूं कि गैर जिम्मेदाराना बयान देने से किसी की खुद की समस्या का समधान नहीं हो सकता। अब इससे थोड़ा और आगे बढ़ते हुए अगस्त के महीने में आते हैं। अमेरिकी हाउस ऑफ रेप्रजेंटेटिव नैंसी पेलोसी जिनके ताइवान दौरे को लेकर खूब हंगामा भी मचा। उसी दौरान एक बयान भी आया कि अमेरिका अगर ऐसा कदम उठाता है तो चीन निश्चित तौर पर अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बचाने के लिए दृढ़ और सशक्त कदम उठाएगा। हालांकि तमाम धमकी और चेतावनी के बावजूद भी नैंसी पेलोसी ताइवान का दौरा करतीं। बहरहाल, इतना बडा इंट्रो देने का मतलब है कि आज जिस शख्स की बात करने जा रहे हैं उनकी कूटनीति की चर्चा दुनियाभर के लिए चर्चा का विषय रही है और उसके ऊपर तो हमने पूरा एक एमआरआई का एपिसोड भी कर दिया है। लेकिन आज बात कूटनीति नहीं बल्कि कूटनितिज्ञ की करेंगे। यानी जिनपिंग सरकार को वो सिपहसालार जिसकी आक्रामक नीति को चीन ने न केवल अपनाया बल्कि सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) इसी नीति पर ही बाकी के एजेंडे तय भी करने लगी। हम बात कर रहे हैं शी जिनपिंग के वुल्फ वॉरियर झाओ लिजियान की।
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कौन हैं झाओ लिजियान
प्रमुख चीनी राजनयिक झाओ लिजियन ट्विटर पर अपने तथाकथित वुल्फ वॉरियर एजेंडे के लिए जाने जाते हैं। झाओ ने पहली बार 2015 से 2019 तक पाकिस्तान में चीन के मिशन के उप प्रमुख के रूप में ट्विटर पर एग्रेसिव मूव की वजह से सभी का ध्यान आकर्षित किया। सबसे पहले, उन्होंने ज्यादातर पाकिस्तानी लोगों को कैटर किया, स्थानीय संस्कृति की प्रशंसा की और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में चीन की भूमिका का बचाव किया। यहां तक कि उन्होंने अपना ट्विटर नाम बदलकर मोहम्मद लिजियान झाओ कर लिया। उनका रुख पाकिस्तानी जनता के साथ प्रतिध्वनित हुआ, लेकिन उइगर संस्कृति के दमन के हिस्से के रूप में शिनजियांग में इस्लामिक नामों पर प्रतिबंध के बीच अप्रैल 2017 में जब उन्होंने इसे उलट दिया तो उनका ये कदम उनपर ही उल्टा पड़ गया। उस समय जिनपिंग ने इस्लामिक नामों पर बैन लगा दिया था। ट्विटर पर झाओ की अमेरिकी-विरोधी टिप्पणियां 2017 तक उनके ब्रांड का एक बड़ा हिस्सा बन गईं, जिससे सार्वजनिक कूटनीति की आक्रामक शैली के दरवाजे खोल दिया। 2017 में रिलीज़ हुई रेम्बो-शैली की चीनी फिल्म के बाद वुल्फ वैरियर के नाम की संज्ञा दे दी। 2019 में उन्हें उनके काम का इनाम भी मिला और प्रवक्ता पद पर पदोन्नति मिली।
अब क्यो चर्चा में हैं?
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान को मंत्रालय के सीमा और महासागर मामलों के विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है। हालांकि उनके स्थानांतरण के बारे में यहां कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन उनका नाम चीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रवक्ताओं की सूची से हटाकर, सीमा व महासागर मामलों से संबंधित विभाग के उप महानिदेशक के रूप में जोड़ा गया है, जो मुख्य रूप से भारत-चीन सीमा सहित भूमि और महासागरीय सीमाओं से संबंधित चीन के दावों एवं समझौतों से संबंधित है। गौरतलब है कि उनका तबादला मौजूदा मंत्री वांग यी की जगह किन गेंग के नए विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति के दौरान हुआ है।
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लिजियान का इस तरह से हटना साधारण तो नहीं
2019 में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के रूप में कार्यभार संभालने वाले लिजियान ने मार्च 2020 में अमेरिकी सेना पर चीन में कोरोना वायरस लाने का आरोप लगाते हुए ट्वीट करके सुर्खियां बटोरी थीं। उस समय चीन वायरस के प्रकोप का सामना कर रहा था। मार्च 2021 में यूरोपीय संघ के राजनेताओं पर प्रतिबंधों जैसे चीनी सरकार के कार्यों से मेल खाता था, जिसने एक लंबी बातचीत वाली व्यापार डील को खत्म कर दिया। हालाँकि उनके पास राष्ट्रवादी अनुयायी थे। हालांकि झाओ को चीनी इंटरनेट पर हार्दिक आलोचना का भी सामना करना पड़ा। हालांकि कुछ विवादों में भी वो रहे जब उनकी पत्नी के वीबो अकाउंट से बीजिंग के कोविड-19 के प्रकोप के दौरान और विदेश यात्रा के दौरान बिना मास्क वाली तस्वीरें सामने आईं, जबकि अधिकांश चीनी घर पर ही अटके हुए थे। उनकी आक्रामक और उन्मादी शैली दुनिया से तेजी से अलग होते जा रहे चीन के मिजाज के अनुकूल लग रही थी। ऐसे में लिजियान का इस तरह से हटना साधारण तो कतई नहीं लगता।
बदलाव की क्या है वजह?
हाल के महीनों में, ऐसा लगता है कि कुछ चीनी नेताओं ने महसूस किया है कि वुल्फ वॉरियर डिफ्लोमीस देश की वैश्विक छवि के लिए एक समस्या बनती जा रही है। हो सकता है कि कहीं ये विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में समकक्षों को समझाने का एक ठोस प्रयास हो कि चीन अब बदलने को तैयार है। यह चीन की जीरो कोविड पॉलिसी से आर्थिक क्षति के साथ-साथ गंभीर अमेरिकी प्रयासों के कारण होने वाले झटकों से भी उतपन्न हुआ है। एक संभावित परिणाम: ऐसा लगता है कि चीन संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने नए राजदूत के रूप में अपेक्षाकृत उदारवादी नामित करेगा। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि अकेले इस कूटनीतिक बदलाव ने झाओ को उनके प्रवक्ता की नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इसे एक निर्वासित पत्रकार वांग झियान के पिछले महीने दिए बयान से भी जोड़कर देख सकते हैं जब नवंबर में जीरो कोविड पॉलिसी के विरोध के बारे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान झाओ की जुबान लड़खड़ाती नजर आई उन्होंने अपने कागजात में फेरबदल किया और अटक-अटक कर जवाब दिए।
ड्रैगन चल रहा कोई और चाल
यह भी स्पष्ट नहीं है कि आक्रामक कूटनीति से चीन का हटना रणनीति में बदलाव के विपरीत वास्तविक नीतिगत बदलाव को दर्शाता है या नहीं। इसे उदाहरण से समझें तो यूक्रेन पर चीन की स्थिति युद्ध की शुरुआत के बाद से मूल रूप से रूस समर्थक रही है। हालांकि इसके बावजूद वो संघर्ष को समाप्त कराना चाहता है। इस साल अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन चीन की यात्रा पर आने वाले हैं। इसके साथ ही जनवरी 2024 में ताइवान में राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं। चीन के मामलों को करीब से जानने वालों की मानें तो पिछले साल जून में जब चीन ने जीरो कोविड नीति को जारी रखने का फैसला किया तो उसी समय इस तरफ इशारा मिल गया था। हालांकि ऐसा लगता है कि चीनी अधिकारी यह भूल गए हैं कि उनके अमेरिकी समकक्ष आसानी से चीनी टीवी देख सकते हैं और चीनी समाचार पत्र पढ़ सकते हैं।- अभिनय आकाश
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