चीनी, कम्युनिस्ट पार्टी और भारत: माओ के बराबर की शक्तियां क्यों चाहते हैं जिनपिंग, क्या है कांग्रेस की बैठक के मायने
कांग्रेस के लिए चल रहे घटनाक्रम से, ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग को महासचिव के रूप में तीसरे कार्यकाल के लिए मंजूरी दी जाएगी। वैसे राष्ट्रपति के रूप में पुन: पुष्टि औपचारिक तौर पर मार्च में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में होगी।
शी जिनपिंग को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के महासचिव और चीन के राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल मिलना तय है। 16 अक्टूबर को बीजिंग में शुरू होने वाली सीसीपी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस चीन की राजनीति में एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण है, जिसके निहतार्थ दुनिया के लिए भी बेहद अहम रहने वाले हैं। कांग्रेस के लिए चल रहे घटनाक्रम से, ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग को महासचिव के रूप में तीसरे कार्यकाल के लिए मंजूरी दी जाएगी। वैसे राष्ट्रपति के रूप में पुन: पुष्टि औपचारिक तौर पर मार्च में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में होगी। ऐसे में अंतराष्ट्रीय मामलों में दिलचस्पी रखने वालों के मन में ये जिज्ञासा जरूर होगी कि आखिर चीन के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है? जिनपिंग ने पहली बार कब सत्ता संभाली? तीसरी बार फिर से उनकी ताजपोशी औपचारिक तौर पर कब होगी? माओ के बराबर की शक्तियां क्यों चाहते हैं जिनपिंग? सबसे अहम अगले पांच सालों में भारत को लेकर क्या नया देखने को मिल सकता है?
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ये असामान्य क्यों है?
पूर्व नेता देंग शियाओपिंग की छोड़ी विरासत जिसमें सीसीपी महासचिव पांच साल के दो कार्यकाल के बाद पद छोड़ दिया करते थे। पूर्व महासचिव जियांग जेमिन और हू जिंताओ ने इसी नक्शेकदम पर चलते हुए ऐसा ही किया। हालांकिक शी जिनपिंग इस अलिखित नियम की धज्जियां उड़ाते नजर आ रहे हैं और तीसरे कार्यकाल को हासिल करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
तीसरे कार्यकाल के लिए क्यों इच्छुक हैं जिनपिंग ?
2012 में महासचिव का पद संभालने के बाद से शी जिनपिंग ने दो बहुत महत्वपूर्ण सुधार शुरू किए हैं। पहला, वो चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार करने का प्रयास कर रहे है ताकि एक विनिर्माण अर्थव्यवस्था से एक नवाचार-आधारित, विचार-आधारित अर्थव्यवस्था स्थापित हो। हालांकि जिनपिंग का ये प्लान अभी प्रगति पर है और शी को काम पूरा करने के लिए और समय चाहिए। दूसरा, शी ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को आधुनिक, युद्ध लड़ने वाली मशीन बनाने के लिए बदलना शुरू कर दिया है। यह सुधार भी प्रगति पर है।
पिछले एक दशक में चीन का प्रदर्शन कैसा रहा है?
चीन ने विकास जारी रखा है, यद्यपि प्रति वर्ष धीमी दरों पर है। लेकिन वो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है,और उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमेरिका को नंबर 1 की स्थिति से बाहर कर देगा। हालांकि, इसकी अर्थव्यवस्था में संतुलन कायम रखने की जरूरत है, शी ने सुधार शुरू कर दिए हैं, जिन्हें पूरा करने में समय लग सकता है। चीन विश्व पटल पर अपनी ताकत झोंक रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपनी प्रतिस्पर्धा में चीन को अन्य देशों को स्पष्ट रूप से दिखाने की आवश्यकता है कि वह अपने आप में एशिया की बड़ी शक्ति है। कुल मिलाकर, शी के नेतृत्व में चीन के प्रदर्शन के मुद्दे पर परिणाम अभी भी बाहर है। यही कारण है कि वह सीसीपी के महासचिव की कमान संभालने से पहले अपने द्वारा शुरू किए गए काम को पूरा करना चाहते हैं।
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देंग से इतर शी के 'नए युग' की विशिष्ट विशेषताएं क्या हैं?
महासचिवों के अलिखित दो-अवधि के नियम को बदलने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि शी ने अर्थशास्त्र और राजनीति दोनों में निर्णय लेने के डेंग के विकेंद्रीकरण को काफी पीछे छोड़ दिया है। बीजिंग में योजना आयोग के नियंत्रण से अर्थशास्त्र को विकेंद्रीकृत करने के डेंग के दृष्टिकोण ने व्यक्तिगत किसानों और उद्योगों को यह तय करने की अनुमति दी कि वे क्या उत्पादन कर सकते हैं, कितनी मात्रा में कर सकते हैं और फिर इसे बाज़ार में बेच सकते हैं। इस विकेंद्रीकरण ने "चीन के आर्थिक चमत्कार" को जन्म दिया, और इसकी जीडीपी 40 साल की अवधि में प्रति वर्ष औसतन 10 प्रतिशत की दर से बढ़ी। शी हाल ही में आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरह के निर्णय लेने का काम कर रहे हैं। एक मायने में यह चीन को माओत्से तुंग युग की ओर वापस ले जा रहा है, हालांकि अब यह आर्थिक विकास के एक पूरी तरह से अलग स्तर पर है।
चीनी इतिहास में शी खुद को कैसे देखते हैं?
ये स्पष्ट है कि शी जिनपिंग सोचते हैं कि उन्हें कम्युनिस्ट चीन को एक महान और शक्तिशाली देश के ऐतिहासिक भाग्य का नेतृत्व करने के लिए चुना गया, जो अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में किसी से भी कमतर नहीं है। यही शी का "चाइना ड्रीम" है और वो अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर जोखिम उठाने को तैयार हैं। ऐसा कुछ जो पिछले महासचिव करने को तैयार नहीं थे। शी की दृष्टि में चीन के सपने को साकार करना है यानी बीजिंग को एक बार फिर मध्य साम्राज्य बनाना है। चीनी कम्युनिस्ट एरा में माओ और देंग की बराबरी के लिए शी ताइवान को मुख्य भूमि के साथ एकजुट करने के लिए मजबूर करने का प्रयास और तेज करेंगे। ताइवान के लिए खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। शी का मानना है कि उन्हें चीन के शीर्ष नेता के रूप में अपने देश के परिवर्तन और चीन के सपने को साकार करने के लिए और समय चाहिए। चीन का आक्रामक अंतरराष्ट्रीय व्यवहार जारी रहेगा। अगले तीन से चार दशकों में भूराजनीति चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा की विशेषता होगी। अन्य सभी राष्ट्रों को इस वास्तविकता के साथ तालमेल बिठाना होगा।
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चीन में कैसे होता है चुनाव?
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, लेकिन वहां राष्ट्रपति यानी पार्टी महासचिव के लिए चुनाव होता है। पार्टी का महासचिव ही राष्ट्रपति के पद पर आसीन होता है। इसकी एक पूरी वैधानिक प्रक्रिया है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना (सीपीसी) देश भर से प्रतिनिधियों को नियुक्त करती है। कम्युनिस्ट पार्टी के कुल मिलाकर साढे नौ करोड़ सदस्य हैं। इस पार्टी के अधिवेशन में 2280 डेलाीगेट्स शामिल होंगे। डेलीगेट्स उन लोगों को कहा जाता है जो अलग-अलग क्षेत्रों और प्रांतों में पार्टी का नेतृत्व करते हैं। जब भी कोई ऐसा अधिवेशन होता है तो वहां इन लोगों को वोट देने के लिए बुलाया जाता है। ये सभी 2280 डेलीगेट्स कम्युनिस्ट पार्टी की सेट्रल कमेटी के 204 और इसके अलावा अलग से 172 सदस्यों को चुनेंगे। जब सेंट्रल कमेटी के सदस्यों को चुन लिया जाएगा। उसके बाद पोलित ब्यूरो के सदस्यों का चुनाव होगा, जिनकी संख्या 25 होती है। पोलित ब्यूरो सदस्यों के बाद पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी के सात सदस्यों को चुना जाएगा। ये कमेटी कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण, सबसे शक्तिशाली और सबसे बड़ी कमेटी होती है।
कम्युनिस्ट पार्टी को दो तरह से बदल रहे हैं जिनपिंग
ऐसा कहा जा सकता है कि चीन की सरकार ये कमेटी ही चलाती है, जिसमें सात लोग होते हैं। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार इस बार इस अधिवेशन में सेंट्रल कमेटी के दो तिहाई नए सदस्यों को चुना जाएगा। यानी इस बार बहुत बड़ा बदलाव होगा। यानी अगर 204 सदस्य हैं तो उनमें से 136 सदस्य नए होंगे। इसके अलावा पोलित ब्यूरो और पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी के भी आधे सदस्य इस बार रिटायर हो जाएंगे और उनकी जगह नए सदस्य आएंगे। यानी शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी को दो तरह से बदल रहे हैं। एक तरफ वो पार्टी में खुद को सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। दूसरी तरफ वो पार्टी संगठन में नए लोगों को ला रहे हैं। ऐसे लोग जो कम उम्र के हो, ज्यादा पढ़े-लिखे हों और सबसे अहम जो चीन की सेना पीएलए का भी नेतृत्व कर सकें। ये सारे शी जिनपिंग के लोग होंगे वो आगे चलकर उनकी खिलाफत नहीं कर सकी।
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शी जिनपिंग के पांच और साल भारत के लिए क्या लेकर आएंगे?
भारत एक विशाल, आबादी वाला देश है। लेकिन जिस तरह से भारत की संरचना की गई है वह चीनी तरीके के विपरीत है। भारत कानून के शासन पर आधारित एक खुला, पारदर्शी, लोकतांत्रिक राष्ट्र है। चीन इसके ठीक विपरीत है। भारत और चीन के मौलिक मूल्य एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। प्रत्येक राष्ट्र के हितों को उनके मूल मूल्यों द्वारा तेजी से निर्धारित किया जाएगा। इसलिए, भारतीय हित चीनी हितों के साथ संघर्ष में होंगे। यह पहले से ही चल रहा है। यही कारण है कि शी भारत और उसकी प्रगति से सावधान हैं। दुर्भाग्य से भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ना तय है। भारत रणनीतिक धैर्य के माध्यम से और समय के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाकर चीन द्वारा पेश की गई चुनौती का सामना करने में पूरी तरह सक्षम है। -अभिनय आकाश
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