जय सियाराम के साथ ही PM मोदी ने राजनीति की दिशा को उसकी दूसरी यात्रा पर आगे बढ़ा दिया, विपक्ष की राह और कठिन

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अभिनय आकाश । Aug 10 2020 12:38PM

जय सियाराम नारे के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने राम के नाम पर राजनीति की दिशा को भी उसकी दूसरी यात्रा पर आगे बढ़ा दिया है। जिसके बाद पहले से ही असहाय दिखने वाले विपक्ष की जगह को और भी तंग कर दिया है।

वो आए तो सबने कहा- आने दो देख लेंगे, उसने देखा तो सबने कहा- देखने दो कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन उसने जीत लिया तो सबने कहा- भारतीय लोकतंत्र का इतिहास नेपोलियन हिटलर को देख रहा है। लेकिन इन सब बातों से बेपरवाह उसने वो पुरानी कहावत को सोलह आने सच साबित करके दिखाया कि ‘''वो आया, उसने देखा और जीत लिया''। अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर की आधारशिला रखते और भूमिपूजन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लोगों को संबोधित करना शुरू किया तो राम मंदिर आंदोलन के चिर-परिचित नारे, जय श्रीराम से परे उन्होंने सियावर रामचंद्र की जय और जय सियाराम का नारा ही बार-बार दोहराया। ये तो सभी जानते और मानते हैं कि पीएम मोदी यूं ही नहीं कोई बात बोलते हैं और उनके कहे हरेक कथन के अपने आप में मायने होते हैं। पीएम मोदी का जय सियाराम बोलना अनायास नहीं था बल्कि इसके पीछे बीजेपी की सोची-समझी रणनीति है। जय श्री राम का नारा उद्घोष था एक आंदोलन का और बाबरी विध्वंस से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक के सफर में जय श्रीराम के नारे से जो कुछ हासिल किया जा सकता था, वो किया गया। पांच अगस्त के भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए भूमि-पूजन के साथ कई राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी की कमंडल की सियासत के समाप्त होने का आंकलन करते नजर आए। लेकिन पीएम मोदी ने अपने जयसियाराम के उद्घोष के साथ ही वापस उसी राम पर लौटने के संकेत दिए जो जनमानस की चेतना और व्यवहार का हिस्सा रहे हैं। इसी नारे के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने राम के नाम पर राजनीति की दिशा को भी उसकी दूसरी यात्रा पर आगे बढ़ा दिया है। जिसके बाद पहले से ही असहाय दिखने वाले विपक्ष की जगह को और भी तंग कर दिया है। अब किसी दीवार पर लिखी इबारत जैसा दिखने लगा है कि प्रधानमंत्री मोदी एक घेरा खींचते जा रहे हैं और उसके इर्द-गिर्द घूमना विपक्ष की मंजूरी मजबूरी बन गई है। 

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कथित सेक्युरिज्म से राम नाम पर आने की मजबूरी

 इसे जनमानस के मिजाज के अनुरूपव ढलने की मजबूरी कहे या राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए जरूरी कि कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ट्वीट कर राम मंदिर के अनुष्ठान में खुद को शामिल होने का संदेश देती हैं । जिसके बाद तो कमलनाथ हो या गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हार्दिक पटेल सभी खुद को राम भक्त सिद्ध करने में लग जाते हैं। गर्भ गृह का ताला खोलने का श्रेय से लेकर चांदी की ईंट दान देने तक की होड़ लग जाती है। ममता से लेकर मायावती, अखिलेश यादव के बयान तक में 5 अगस्त को आए उसमें कहीं भी सरकार से सवाल की कोई झलक नहीं दिखी, सभी भक्ति भाव में डूबे दिखें।

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लगातार बढ़ता मोदी का कद

गुजरात की चौहद्दी से निकले नरेंद्र मोदी ने एक बड़ी लकीर खींच दी थी जिसके सामने सब अपने आप छोटे हो गए। भारतीय भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि जहां किसी प्रधानमंत्री को सवालों से परे मान लिया गया है। जनता मोदी पर उठे हर सवालों को खारिज कर चुकी है और इतनी ही नहीं उन्हें हर सवाल का जवाब मान चुकी है। विपक्ष की यह सोच भी गलत साबित हुई है कि मोदी का जादू कुछ वक्त के लिए है, फिलहाल उस जादू के असर खोदने की कोई उम्मीद नहीं दिखती। यह तो तय है कि मोदी तो मोदी हैं और मोदी जैसा कोई नहीं।

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