सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशों से पर्यावरण सुरक्षा पर संकट? पूर्व अधिकारियों ने जताई गहरी चिंता

Aravalli mining
प्रतिरूप फोटो
social meida
Ankit Jaiswal । Dec 29 2025 9:19PM

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों, विशेष रूप से एक्स-पोस्ट फ़ैक्टो पर्यावरणीय मंजूरी और अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा बदलने के आदेशों पर पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने गहरी चिंता व्यक्त की है, जो पर्यावरण संरक्षण के संवैधानिक दायित्व को कमजोर कर सकते हैं।

पर्यावरण से जुड़े न्यायिक फैसलों को लेकर एक नई बहस खड़ी हो गई है। पूर्व नौकरशाहों के एक समूह, जो खुद को ‘संवैधानिक आचरण समूह’ (सीसीजी) कहता है, ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया आदेशों पर गंभीर चिंता जताई है। समूह का कहना है कि इन फैसलों से जीवन और प्रकृति की रक्षा करने की संवैधानिक जिम्मेदारी कमजोर पड़ सकती है।

बता दें कि इस समूह में कुल 79 पूर्व वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, जिनमें कैबिनेट सचिव, राजदूत, गृह व वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, पुलिस महानिदेशक और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे पदों पर रह चुके लोग शामिल हैं। इन सभी ने मिलकर एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें हालिया न्यायिक रुझानों पर सवाल उठाए गए हैं।

गौरतलब है कि पत्र में विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के 18 नवंबर 2025 के उस आदेश का जिक्र किया गया है, जिसमें तीन जजों की पीठ ने बहुमत से यह अनुमति दी कि पर्यावरणीय मंजूरी बाद में भी दी जा सकती है, जब तक इस मुद्दे पर बड़ी पीठ फैसला नहीं ले लेती। इससे पहले मई में अदालत की एक अन्य पीठ ने ऐसे ‘एक्स पोस्ट फैक्टो’ पर्यावरणीय क्लीयरेंस को गैरकानूनी बताया था।

मौजूद जानकारी के अनुसार, इस फैसले से केंद्र सरकार को पहले से चल रही परियोजनाओं को बाद में मंजूरी देने का रास्ता मिल गया है, जिसे पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंताजनक बताया है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस मामले पर बड़ी पीठ की सुनवाई कब होगी।

पत्र में अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़े एक अन्य आदेश पर भी चिंता जताई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए अरावली की नई परिभाषा तय करने की बात कही है, जिससे कथित तौर पर 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर्यावरणीय संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकता है। इससे खनन और निर्माण गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की आशंका जताई गई है, जो दिल्ली-एनसीआर के लिए प्राकृतिक धूल अवरोधक की भूमिका निभाने वाले इस क्षेत्र को कमजोर कर सकता है।

इसके अलावा, कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को अरावली क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक मैपिंग और टिकाऊ खनन योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। हालांकि, पूर्व अधिकारियों का कहना है कि यह प्रक्रिया भविष्य में पर्यावरणीय दोहन को वैध रूप देने का जरिया बन सकती है।

सीसीजी ने सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य आदेश पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की भूमिका कमजोर होती दिखाई दे रही है। यह समिति वर्ष 2002 में पर्यावरण मामलों पर अदालत को स्वतंत्र सलाह देने के लिए बनाई गई थी। समूह का आरोप है कि हाल के वर्षों में सीईसी सरकार के रुख के अनुरूप फैसलों का समर्थन करती नजर आई है।

पूर्व अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि उनका किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और उनका उद्देश्य केवल संविधान की मूल भावना, पर्यावरण संरक्षण और संस्थागत संतुलन को बनाए रखना है।

All the updates here:

अन्य न्यूज़